Monday , 16 June 2025

हस्तशिल्पी बाबूलाल ने दिलाई बांस टोरड़ा गांव को मूर्तिकलां के क्षेत्र में प्रसिद्धि

सवाई माधोपुर: राजस्थान कलां व संस्कृति के परिपूर्ण है। यहां के कलाकार ने सदियों से अपनी कलां का पर्चम देश-विदेश में लहराया है। राजस्थान का सवाई माधोपुर जिला भी बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकारों के ख्यात है। सवाई माधोपुर जिले के बौंली खण्ड का गांव बांस टोरडा मूर्तिकलां के लिए देश-विदेश में अपनी कलां से प्रदेश का नाम रोशन कर रहा है। बांस टोरड़ा के करीब 90 प्रतिशत से अधिक परिवारों की आजीविका का आधार संगमरमर (मार्बल) मूर्तियां बनाना है। बांस टोरड़ा गांव में मूर्तिकलां की शुरूआत सन 1980 में श्रीराम निवास गौड ने आदि ब्राहमण समाज को साथ लेकर की।

 

 

Handicraftman Babulal brought fame to bans Torda village in the field of sculpture Sawai Madhopur

 

 

 

पंडित रघुनाथ प्रसाद शर्मा ने उनके इस कार्य को आगे बढ़ाया। वर्तमान में बाबूलाल गौड यहां के प्रमुख मुर्तिकार है। जिन्होंने इस मूर्तिकलां को न सिर्फ जीवन्त रखा हुआ है बल्कि अपने हाथों के हुनर से इस कलां को देश प्रदेश में नई पहचान दी है। बाबूलाल गौड़ बताते है कि उनके यहां देवी देवताओं में रामलला, भगवान शंकर, पार्वती, सीता-राम, राधा-कृष्ण, हनुमान जी, गणेश जी, मां दुर्गा, मां सरस्वती, मां काली, भगवान महावीर, भगवान बुद्ध आदि वहीं महापुरूषों में महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, सरदार वल्लभ भाई पटेल, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे, वहीं पशुओं में बाघ, चीता, हाथी, घोड़े, हिरण, पक्षियों में मोर, हंस आदि की मूर्तियां बनाने के साथ-साथ पार्टियों द्वारा दिए गए ऑर्डर पर भी मूर्ति बनाने का काम किया जाता है।

 

 

 

 

उन्होंने बताया कि बड़ी मूर्ति बनाने के लिए पहले आवश्यकता अनुसार पत्थर को छांटा जाता है और फिर शुरू होता है उसे धो-साफकर मूर्ति के रूप में गढ़ने का कार्य किया जाता है। पत्थर को 5 से 6 कारीगर मूर्ति का आकार देते है अलग-अलग व्यक्ति का अलग-अलग कार्य होता है। इन कारीगरों में पुरूष व महिला दोनो ही होते है, मूर्ति का आकार तैयार होने के बाद महिलाओं द्वारा पॉलिस व पेंटिंग का कार्य किया जाता है। अलग-अलग तरीके से पत्थर काटने से लेकर पॉलिस करने, पेंटिंग कर पूर्णतः तैयार करने में करीब 3 माह का समय लगता है।

 

 

 

 

इसके लिए छैनी, हाथौड़ी, कटर मशीन, टूल मशीन सहित अन्य औजारों का प्रयोग कारीगर द्वारा किया जाता है। शिल्पी झिरी (दौसा), मकराना, (नागौर), भैंसलाना (जयपुर), चित्तौड़ अम्बाजी गुजरात, इटली तथा वियतनाम से भी कच्चा माल मंगाते है। अच्छी गुणवत्ता कम कीमत की मूर्तियां होने के कारण जयपुर सहित राज्य के अन्य जिलों तथा पड़ौसी राज्यों हरियाणा, पंजाब, गुजरात, कर्नाटक आदि राज्यों में मूर्तियों की आपूर्ति ऑर्डर के अनुसार की जाती है। मूर्तिकार बाबूलाल शर्मा मूर्तिकलां के ख्याती नाम शिल्पी है। वे राज्य एवं जिला स्तर पर सम्मानित हो चुके है।

 

 

 

 

वहीं इनकी बनाई गई मूर्तियों का प्रदर्शन भी प्रदर्शनियों में हो चुका है। मूर्तिकार बाबूलाल शर्मा को जिला कलक्टर सवाई माधोपुर द्वारा वर्ष 1995 में प्रशंसा पत्र, वर्ष 2003-4 में आयोजित जिला स्तरीय हस्तशिल्प प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार एवं भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के अन्तर्गत विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) एम एण्ड एसईसी जयपुर राजस्थान द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने इंग्लैण्ड की प्रिंसेज डायना तक का स्टेच्यू ऑर्डर पर बनाकर इंग्लैण्ड भेजा है।

 

 

बाबूलाल बताते है कि यहां के मूर्तिकलाकारों की मुख्य समस्या स्थान, कच्चा माल के साथ-साथ उनके उत्पाद को उचित बाजार की उपलब्धता है। अगर केन्द्र व राज्य सरकार इस कलां को प्रोत्साहन दे तो यहां के कलाकार न सिर्फ इस कलां को जीवित कर पायेंगे बल्कि देश-विदेश में प्रदेश का नाम भी रोशन कर सकेंगे।

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