Monday , 1 July 2024
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राजस्थान में मतदान कम होना बताता है कि भाजपा नेताओं की योजनाओं पर अमल नहीं हुआ 

हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने की घोषणा का क्या हुआ? 

लोकसभा चुनाव के पहले चरण में 19 अप्रैल को राजस्थान के 12 संसदीय क्षेत्रों में भी मतदान हुआ। उम्मीद थी कि 2019 के मुकाबले में मतदान का प्रतिशत बढ़ेगा, लेकिन चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 12 संसदीय क्षेत्रों में 57.87 प्रतिशत ही मतदान हुआ। जबकि पिछले चुनाव में 63.71 प्रतिशत रहा था। यानी गत बार के मुकाबले में छह प्रतिशत मतदान कम हुआ। राजस्थान में कांग्रेस मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने में शुरू से ही इच्छुक नहीं दिखी। लेकिन मतदान के प्रतिशत को बढ़ाने के लिए भाजपा नेताओं ने अति उत्साह दिखाया। खुद मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने दावा किया कि इस बार सभी 25 सीटों पर भाजपा की जीत का अंतर पांच लाख मतों का रहेगा। यानी भाजपा के उम्मीदवार 5 लाख मतों से जीत दर्ज करेंगे। इसके लिए भाजपा ने प्रत्येक बूथ पर 370 वोट बढ़ाने की तैयारी की। चूंकि जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाया गया, इसलिए भाजपा ने हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का लक्ष्य अपने कार्यकर्ताओं को दिया, लेकिन गत बार के मुकाबले इस बार 6 प्रतिशत मतदान कम होना बताता है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने बूथ स्तर पर मेहनत नहीं की। हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने का काम भाजपा के कार्यकर्ता करते तो मतदान करीब 75 प्रतिशत होना चाहिए था। जाहिर है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने 2019 के मुकाबले में बहुत कम मेहनत की। जिन नेताओं और कार्यकर्ताओं के पास बूथ की जिम्मेदारी थी, उन्हें अब यह बताना चाहिए कि आखिर 370 वोट क्यों नहीं बढ़ाए जा सके? ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा के कार्यकर्ता अब स्वयं का बड़ा नेता समझने लगे हैं।

 

Low voting in Rajasthan shows that the plans of BJP leaders were not implemented

 

अधिकांश नेताओं को यह मुगालता रहा कि मतदाता मोदी के नाम पर अपने आप वोट डालने आ जाएंगे। भाजपा के रणनीतिकार माने या नहीं, लेकिन कांग्रेस विचारधारा वाले वोटों का प्रतिशत अच्छा रहा है। यानी जिस मतदाता को कांग्रेस को वोट देना था, उसने अपने साधनों से बूथ पर पहुंच कर वोट दिया। जबकि भाजपा की विचारधारा वाले वोट को भाजपा के कार्यकर्ता घरों से निकलने में ज्यादा सफल नहीं हुए। भाजपा स्वयं को कैडर बेस पार्टी का दावा तो करती है, लेकिन चुनाव में संबंधित उम्मीदवार ही अपने तरीके से बूथ पर एजेंटों को बैठाने का काम करता है। अलवर और बीकानेर में केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और अर्जुनराम मेघवाल भाजपा के उम्मीदवार है, लेकिन अलवर में भी 59.79 प्रतिशत मतदान हुआ जो 2019 के मुकाबले में 7 प्रतिशत कम है। इसी प्रकार बीकानेर में 53.96 प्रतिशत मतदान हुआ जो गत बार के मुकाबले में 5.28 प्रतिशत कम है। जबकि इन दोनों ही संसदीय क्षेत्रों में प्रत्याशियों ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। राजस्थान में भाजपा लगातार तीसरी बार सभी सीटें जीतती है या नहीं यह तो चार जून को नतीजे आने पर ही पता चलेगा, लेकिन कम मतदान भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं है। राजस्थान में शेष 13 संसदीय क्षेत्रों में द्वितीय चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि भाजपा के कार्यकर्ता 19 अप्रैल को हुए कमत मतदान से सबक लेंगे। यदि भाजपा कम मतदान को अपने पक्ष में मानती है तो फिर हर बूथ पर 370 वोट बढ़ाने और हर सीट पर पांच लाख मतों के अंतर से जीत के दावे क्यों किए जाते हैं? (एसपी मित्तल, ब्लॉगर)

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