400 करोड़ रुपए उधार हो जाने के कारण राजस्थान के पंप संचालक 5 मई से सरकारी वाहनों में पेट्रोल डीजल नहीं भरेंगे, इसके साथ ही 4 मई को जयपुर में प्रदेश भर के सरपंच प्रतिनिधियों ने शहीद स्मारक पर धरना प्रदर्शन दिया। 11 हजार से भी ज्यादा सरपंच गत 20 अप्रैल से ग्राम पंचायतों के कार्यों का बहिष्कार कर रहे हैं। मांगे नहीं मानी गई तो 15 मई को जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के सरकारी आवास का घेराव किया जाएगा। सरपंचों की संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक महेंद्र सिंह मझेवला और शक्ति सिंह रावत ने बताया कि एक ओर शिविर लगाकर महंगाई से राहत दिलाने के दावे किए जा रहे हैं तो वही गहलोत सरकार ग्रामीण विकास के 7 हजार करोड़ रुपए दबाए बैठी है।
ग्रामीण विकास के लिए ग्राम पंचायतों को केंद्र और राज्य वित्त आयोग से सालाना 3-3 हजार करोड़ रुपए मिलते हैं। राज्य ने गत वित्तीय वर्ष की दोनों किश्त यानी 3 हजार करोड़ रुपए का भुगतान नहीं किया है। इसी प्रकार अक्टूबर माह में केंद्र सरकार से मिली दूसरी किस्त 15 सौ करोड़ का भुगतान भी अभी तक नहीं किया है। मनरेगा के भी 2 हजार 200 करोड़ रुपए बकाया हो गए हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना में भी राज्य सरकार अपने हिस्से की 45 प्रतिशत राशि भी नहीं दे रही है। सरकार के इस असहयोग के कारण ही प्रदेश भर में ग्रामीण विकास ठप पड़ा हुआ है। गंभीर बात तो यह है कि 11 हजार सरपंचों के कार्य बहिष्कार का सरकार पर कोई असर नहीं हो रहा है। इससे सरपंचों में गुस्सा है। सरपंच के आंदोलन के संबंध में और अधिक जानकारी मोबाइल नंबर 9829736235 पर महेंद्र सिंह मझेवला और 9829648672 पर शक्ति सिंह रावत से ली जा सकती है।
मंत्रालयिक कार्मिक भी हड़ताल पर:- प्रदेश के मंत्रालय कर्मचारी पिछले 18 दिनों से हड़ताल पर हैं और जयपुर में धरने पर बैठे हैं। सचिवालय कार्मिकों की तरह पे स्केल देने की मांग को लेकर मंत्रालयिक कर्मचारियों का धरना 4 मई को भी जारी रहा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट महंगाई राहत शिविर को देखते हुए कर्मचारियों को उम्मीद थी कि सरकार वार्ता करेगी, लेकिन सरकार ने कोई वार्ता नहीं की ऐसे में नरम रुख अपनाते हुए हड़ताली कर्मचारियों ने, 3 मई को मुख्यमंत्री गहलोत के जन्मदिन पर एक हजार यूनिट रक्तदान भी किया। महापड़ाव स्थल पर जलदाय मंत्री महेश जोशी भी आए, लेकिन मुख्यमंत्री की ओर से कोई आश्वासन नहीं दिया। सरकार की बेरुखी के चलते मंत्रालय कर्मचारियों में भी रोष है। कर्मचारियों की हड़ताल की वजह से सरकारी दफ्तरों में कामकाज ठप है। लोगों को होने वाली परेशानी का ख्याल न तो सरकार को है और न ही कर्मचारियों को। सरकार तो कर्मचारियों से वार्ता करने को भी तैयार नहीं है।
शिविरों का कार्य ठेके पर:- सरपंचों के कार्य बहिष्कार और मंत्रालयिक कर्मचारियों की हड़ताल को देखते हुए मुख्यमंत्री ने महंगाई राहत शिविरों का कार्य पहले ही निजी फर्मों को ठेके पर दे दिया है। हालांकि शिविरों में सरकारी शिक्षक भी नियुक्त किए हैं, लेकिन सक्रियता निजी फर्म के युवाओं की ही है। शिविरों में उपलब्ध कंप्यूटर लैपटॉप प्रिंटर आदि सामग्री भी निजी फर्म की है। सरकार की ओर से निजी फर्म को डाटा भी उपलब्ध कराया गया है, सौ यूनिट घरेलू और दो हजार यूनिट कृषि भूमि के लिए रजिस्ट्रेशन हेतु विद्युत निगम का डाटा दिया गया है। चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा के लिए इंश्योरेंस कंपनी, एक हजार रुपए की पेंशन के लिए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, शहरी रोजगार गारंटी के लिए स्थानीय निकाय आदि का डाटा निजी फर्म को उपलब्ध कराया गया है। डटा होने के कारण ही शिविर में हाथों-हाथ रजिस्ट्रेशन हो रहा है।