Monday , 1 July 2024
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शांति देवी ने सोचा भी नहीं था कि 38 साल पहले लापता हुए पति का इंतज़ार इस तरह ख़त्म होगा

उत्तराखंड निवासी लांस नायक चंद्रशेखर की बेटियां जब बचपन में अपनी मां से यह सवाल करती थी तो उनकी मां शांति देवी बड़े भरोसे एवं आत्मविश्वास के साथ कहा करती थी “पापा 15 अगस्त को आएंगे तथा उनके लिए ढ़ेर सारी चीज़ें लेकर आएंगे”

लेकिन हर बीतते साल के साथ शांति देवी भी इस बात को जानती थीं कि वो अपनी बेटियों को सिर्फ तसल्ली दे रही हैं। मन में बेचैनी थी, अशांति सी थी क्योंकि सेना की वर्दी पहन कर सीमा पर भारत की रक्षा का प्रण लेने वाले उनके पति चंद्रशेखर हरबोला अप्रैल, 1984 में सीमा पर गश्त लगाने के दौरान लापता हो गए थे। खोज ख़बर के नाम पर उनके परिवार को चंद्रशेखर हरबोला के लापता होने की जानकारी दी गई थी।

Shanti Devi did not even think that the wait for her husband, who went missing 38 years ago, would end like this.

लेकिन शांति देवी को हमेशा एक उम्मीद सी लगी रही कि उनके पति जिंदा हैं, शायद वे पाकिस्तान सेना के कब्जे में हों? उन्होंने अपनी दो छोटी-छोटी बेटियों को साथ लेकर अपने सैनिक पति के लौटने का इंतज़ार करते हुए अकेले ही संघर्ष भरा सफ़र शुरू करने का फ़ैसला लिया।

उत्तराखंड के हल्द्वानी में रहने वाली शांति देवी ने अपनी बेटियों के भविष्य को बेहतर बनाने की हर संभव कोशिश की। उन्होंने राज्य के स्वास्थ्य विभाग में सबसे पहले नर्सिंग की ट्रेनिंग ली। इसके बाद बागेश्वर जिले में नर्स की नौकरी की।

धीरे-धीरे उनकी ज़िंदगी पटरी पर लौटने लगी थी, लेकिन शांति देवी की नज़र हर उगते सूरज व ढलती शाम के साथ पति के लौटने की उस डगर पर हमेशा टिकी रहती थी, जहां वे छुट्टियों पर घर लौटते थे।

अपनी ज़िंदगी के संघर्ष की दास्तान सुनाते हुए नम आंखों से पति की तस्वीर निहारते हुए शांति देवी कहती हैं की, “मैं अपने बच्चों को ये तसल्ली देती थी कि उनके पिता एक दिन ज़रूर लौट कर आएंगे.”

बातों – बातों में शांति देवी पुराने दिनों की ओर लौट जाती हैं एवं बताती हैं कि कैसे वे अपने बच्चों के साथ उनके पिता की खोजबीन और उनके लापता होने की ख़बर को साझा करती थीं।

शांति देवी अपने बच्चों से कहती थी की, “शायद उन्हें कै़दी बना लिया गया होगा! हो सकता है उन्हें पाकिस्तानियों ने पकड़ लिया हो! ऐसे कई ख़्याल उनके मन में आते रहते थे.”

लेकिन शांति देवी को क्या पता था कि जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा होगा, उस वक़्त तक पति के लौटने की उम्मीद में 38 बरस का लंबा अरसा गुज़र चुका होगा। इस दौरान ख़ुद शांति देवी रिटायर हो गईं। उनकी 8 साल की बेटी कविता अब 46 साल की उम्र में अपना परिवार संभाल रही है, जबकि उनकी दूसरी बेटी बबीता चार साल की भी अब 42 साल की हो चुकी है।

चंद्रशेखर के लापता होने के 38 साल बाद परिवार को मिला शव:-

38 साल बीत जाने के बाद उनके परिवार को अचानक चंद्रशेखर हरबोला के मिलने की सूचना मिली। लेकिन उनके मिलने की इस ख़बर ने सबको सदमे में डाल दिया। शांति देवी को हमेशा की तरह यह उम्मीद थी कि उनके पति एक दिन घर जरूर लौटेंगे लेकिन ख़बर उनके शव मिलने की मिली। बीते चार पांच दिनों से उनका पूरा परिवार सदमे में डूब जाता है। मां और उनकी बेटियां रोते-रोते बेहोश हो जाती है।

38 साल बाद जब 17 अगस्त, 2022 को लांस नायक चंद्रशेखर अपने आवास पर लौटते है तो वो अपनी पत्नी और उनके परिवार से बात नहीं कर सकते थे। क्योंकि वो तिरंगे में लिपटे हुए थे। उनके रिश्तेदारों और आस-पड़ोस के लोगों की भीड़ उनके घर पर जमा हो गई थी। उनके घए कर चारों तरफ़ एक ही नारा गूँज रहा था “लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला अमर रहें।”

आमजन के बीच हल्द्वानी के इस सैनिक को श्रद्धांजलि अर्पित करने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी पहुंचे थे। उन्होंने 1984 में सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान मारे गए लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला के पार्थिव शरीर पर पुष्प चक्र अर्पित कर उन्हे श्रद्धांजलि दी।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा, “शहीद चंद्रशेखर जी के बलिदान को हमेशा याद रखा जाएगा। देश के लिए बलिदान देने वाले उत्तराखंड के सैनिकों की स्मृति में सैन्य धाम की स्थापना की जा रही है। शहीद चंद्रशेखर की स्मृतियों को भी सैन्य धाम में संजोया जाएगा।”

पुष्प चक्र अर्पित करने के बाद लांस नायक चंद्रशेखर का पार्थिव शरीर चित्रशिला घाट रानीबाग के लिए रवाना हुआ, जहां उन्हें पूरे राजकीय सम्मान और आर्मी बैंड की धुन के साथ भावभीनी विदाई दी गई। साथ ही सैकड़ों लोगों ने नम आंखों से उन्हें श्रद्धांजलि दी।

आखिर कौन थे लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला :-

लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाथीगुर बिंता निवासी थे। ऑपरेशन मेघदूत के दौरान सियाचिन में बर्फीले तूफान में जब वे लापता हुए थे तब उनकी उम्र केवल 28 साल थी। उनकी पत्नी शांति देवी उस समय दो बेटियों की मां बन चुकी थीं एवं 26 साल की थीं। 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत लाँच किया था। लांस नायक हरबोला भी ऑपरेशन मेघदूत टीम का हिस्सा थे, जो पॉइंट 5965 पर क़ब्ज़ा करने के लिए निकले हुए थे, लेकिन बर्फ़ीले तूफ़ान की चपेट में आने से 19 सदस्यों का ये गश्ती दल लापता हो गया था। सर्च टीम केवल 14 शवों को ही खोज पाई थी। पांच जवानों का पता नहीं चला था। इन्हीं पाँच जवानों में 19 कुमाऊँ रेजिमेंट के जवान चंद्रशेखर हरबोला भी शामिल थे। उनके लापता होने की ख़बर चंद्रशेखर के घर पहुंचा दी गई थी। सेना सर्च अभियान जारी रही। समय के साथ – साथ साल भी बीतते चले गए, उनके परिवार का इंतज़ार भी बना रहा और अब 38 साल बाद उनका शव बरामद हुआ।

 

 

इस तरह हुई लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला के शव की पहचान:-

लांस चंद्रशेखर हरबोला के शव की शिनाख़्त उनके डिस्क नंबर से हुई। चंद्रशेखर के शव के साथ सेना के कुछ और अधिकारी भी थे। इनमें से एक ने पहचान ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा की, “हम लोग खोए हुए जवानों की तलाश करते हैं और गर्मियों में सियाचिन ग्लेशियर की बर्फ़ पिघलनी शुरू हुई तो खोए हुए जवानों की तलाश शुरू की। इसी दौरान 13 अगस्त, 2022 को एक सैनिक का शव ग्लेशियर पर बने पुराने बंकर में मिला। शव की पहचान सैनिकों को सेना की तरफ़ से मिले आइडेंटिटी डिस्क नंबर 4164584 से हुई”। इस डिस्क नंबर का मिलान करने के बाद पता चला कि यह शव उत्तराखंड के रहने वाले लांस नायक चंद्रशेखर हरबोला का है। चंद्रशेखर के भतीजे हरीश चंद्र हरबोला ने बताया की, “13 अगस्त की रात को हमें ख़बर मिली की भर्ती के समय उन्हें जो आइडेंटिटी डिस्क मिलती है, उसके आधार पर परिवार से सम्पर्क किया गया। उसी से पता चला कि वो हमारे ताऊ ही हैं।”

चंद्रशेखर हरबोला के नहीं रहने पर उनका परिवार सदमे में तो है, मगर उन्हें गर्व इस बात का है कि उन्होंने अपनी जान देश के लिए क़ुर्बान कर दी। 

(सोर्स : बीबीसी न्यूज हिन्दी)

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