Wednesday , 3 July 2024
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शिक्षा मंत्री बोले – सरकारी स्कूल में अब बच्चे कौवे को कागला और मटकी को मटकों पढ़ेंगे

सरकारी स्कूल के छात्र-छात्राएं अब मातृभाषा के साथ स्थानीय भाषा में पढ़-सीख सकेंगे। इसे लेकर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा है कि जल्द ही ये नीति लागू हो जाएगी और अलग-अलग क्षेत्रों की स्थानीय भाषा के अनुसार ही पाठ्यक्रम को डिजाइन किया जाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया- जैसे कौवे को स्थानीय भाषा में कागला कहते हैं तो ऐसे ही भाषा को शामिल किया जाएगा, ताकि बच्चे आसानी से समझ सकें। इसके लिए 30 स्थानीय भाषाओं का सर्वे किया जा रहा है।

दैनिक बोलचाल वाले शब्दों को करेंगे शामिल

शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बताया की नई शिक्षा नीति में बदलाव करते हुए प्राथमिक कक्षाओं में मातृभाषा पर जोर देने की नीति लागू की जा रही है। इसके तहत स्थानीय बोली व भाषा के आधार पर शब्दकोश तैयार करवा कर पाठ्यक्रम तैयार करवा रहे हैं। जिसकी प्रक्रिया अभी चल रही है और संभवत नए सत्र में यह लागू भी कर दी जाएगी। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा कि कुछ शब्द ऐसे हैं जो हम दैनिक बोलचाल में बोलते हैं, जिससे बच्चों को सिखाने में जल्द मदद मिलती है, इससे बच्चे जल्द बोलना सीखते हैं। इसलिए मातृभाषा के शब्दों को नए पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है।

 

 

Education Minister said - Now children in government schools will read crow as Kagla and Matki as Matko

 

उन्होंने कहा- जैसे हाड़ौती में कहते हैं, कागलो आरो छ, बल्ली जा री छ तो इस तरह का एक शब्दकोष तैयार किया जाएगा। शब्दकोश में कौन को कुण, क्या को कांई, कद को कदै, पढ़ाया जाएगा। साथ ही, पशु-पक्षियों, प्रश्नवाचक शब्दावली, सप्ताह के नाम सहित कई शब्दों के स्थानीय भाषा में बोलचाल वाले शब्दों के चार्ट बनाए जा रहे हैं। शिक्षकों से भी भाषा की जानकारी ली जा रही है।

30 भाषाओं का होगा सर्वे

पाठ्यक्रम में स्थानीय स्तर पर बोले जाने वाली भाषा को शामिल किया जा रहा है। स्थानीय भाषा के कई शब्द है, जिन्हें ग्रामीण इलाकों में अलग तरीके से बोला जाता है। जैसे मटकी को मटको या कौवे को कागला और बिल्ली को बिलाई या बिल्लो, इस तरह के शब्दों को पाठ्यक्रमों में मूल शब्दों के साथ शामिल किया जाएगा, ताकि बच्चे इनका अर्थ समझ सके। शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने बताया कि नई शिक्षा नीति के तहत सर्वे में कक्षा एक के बच्चों तथा उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों से भाषा की जानकारी ली गई थी। इसमें बच्चों के नाम के साथ उनके घर की भाषा, शिक्षण की भाषा, स्कूल का माध्यम और भाषा को समझना व बोलने की विद्यार्थियों की क्षमता के स्तर आदि का सर्वे कर उसे स्कूल दर्पण पर अपलोड करवाया गया था। राजस्थान में अलग अलग 30 भाषाओं का सर्वे करवाया जा रहा है।

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