1971 के भारत-पाक युद्ध को छाछरो युद्ध कहा जाता है। इस युद्ध की कमान जयपुर के तत्कालीन महाराजा ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह के हाथों में थी। ब्रिगेडियर सवाई भवानी सिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना की 10वीं पैरा कमांडो बटालियन के सैनिकों ने सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 80 किलोमीटर तक पाकिस्तान की सीमा में घुसकर छाछरो शहर पर कब्जा कर लिया था। इस युद्ध के अंत तक भारतीय सेना ने सिंध प्रांत के अमरकोट तक 13000 वर्ग किलोमीटर तक कब्जा कर इसे भारत में मिला लिया था। इस दरम्यान बाड़मेर जिला कलेक्टर का क्षेत्राधिकार जीते हुए क्षेत्र छाछरो तक बढ़ा दिया गया था। उस समय बाड़मेर के जिला कलेक्टर आई.सी. श्रीवास्तव थे।
परन्तु जीते हुए इस छाछरो क्षेत्र में हर कोई अधिकारी या कर्मचारी जाना नहीं चाहता था। तब कैलाश दान जी उज्ज्वल (IAS) को छाछरो के प्रशासक बनाकर छाछरो भेजे गए। उज्ज्वल साहब ने इस प्रस्ताव को बड़े ही सहस्त्र भाव से स्वीकार कर लिया तथा 7 दिसंबर 1971 को छाछरो हवेली पर भारतीय ध्वज (तिरंगा) फहराया। साथ ही अपने कार्यालय अधीक्षक भीम सिंह महेचा (चूली) को भी अपने साथ ले गए जिनको विशेष परिस्थितियों में कलेक्टर पावर के साथ कार्य करने का अधिकार दिया गया तथा बाड़मेर के पुलिस उपाधीक्षक सुखसिंह भाटी को छाछरो का एसपी नियुक्त किया गया।
वहां पर स्थापित पुलिस थाने के लिए बाड़मेर में विशेष चयनित 4 उपनिरीक्षक एवं 10 आरक्षक को भेजा गया। भोपाल सिंह राजपुरोहित उप निरीक्षक को थानेदार की जिम्मेदारी दी गई तथा उनके नेतृत्व में खुमाण सिंह सोढ़ा (छाछरो), अनोपसिंह व धनराज जोशी भेजे गए एवं 10 आरक्षक श्याम सिंह (मुंगेरिया), किशोर सिंह (चूली), आईदान सिंह (तारातरा), भेरुसिंह सोढ़ा (बावड़ी), छोटूराम विश्नोई (कूड़ी), आईदान सिंह सोढ़ा (बावड़ी), अखाराम राजपुरोहित (रामसर), कंवराज सिंह सोढ़ा (बावड़ी), तेजसिंह सोढ़ा (तामलोर) एवं खरताराम चौधरी (चोहटन) को भेजा गया।
वहां पर इन सभी की पोस्टिंग होने के बाद 2 जुलाई 1972 को हुए शिमला समझौते के बाद उक्त जीते हुए क्षेत्र को भारत सरकार ने पाकिस्तान को पुनः वापस लौटा दिया। इस प्रकार से कैलाशदान उज्ज्वल का छाछरो युद्ध में बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता।। आपका जन्म जैसलमेर जिले के ऊजलां गांव में हुआ था।
साभार- गिरधारी दान देथा (कोडा)