Friday , 5 July 2024
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एक शाम उत्तराखंड के नाम वर्चुअल कवि सम्मेलन का हुआ आयोजन

अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के प्रतिष्ठित वैश्विक फेसबुक पटल पर “एक शाम उत्तराखंड के नाम” कार्यक्रम का सवाई माधोपुर से वर्चुअल आयोजन हुआ। कार्यक्रम में सभी ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दीं। प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव की अध्यक्षता में आयोजित इस कार्यक्रम में श्रीनगर गढ़वाल से आरती रावत पुंडीर, कुमाऊं से डॉ. दमयंती शर्मा, हरिद्वार से नीरज नैथानी, श्रीनगर गढ़वाल से विमल बहुगुणा, गाजियाबाद से प्रज्ञान पुरुष पण्डित सुरेश नीरव और सवाई माधोपुर से डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने शानदार प्रस्तुतियां दीं। कवि सम्मेलन का संचालन डॉ. मधुमुकुल चतुर्वेदी ने किया। डॉ. मधुमुकुल चतुर्वेदी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। गत मंगलवार की शाम को इस कवि सम्मेलन को हजारों लोगों ने देश और विदेश से अंत तक रुचि पूर्वक सुना और आनंद लिया।

 

आरती रावत पुंडीर ने अपनी रचना की प्रस्तुत:-

 

गोमुख से विहार करती निकल पड़ी हरिद्वार को मैं
बिछड़ के मां के आंचल से कितना तरसी हूॅं प्यार को मैं।

 

 

नीरज नैथानी ने अपनी रचना की प्रस्तुत

 

कहने को हम पाती हैं, पर गिनती में ना आती हैं।

सिर्फ दंश के किस्से हैं, हर शूल हमारे हिस्से हैं।

झोंकों ने तनिक हिला दिया, तन को जरा सहला दिया।
हम मस्ती में आ जाती हैं, हम इतने पर इतराती हैं।
कहने को हम पाती हैं, पर गिनती में ना आती हैं।

 

One evening in the name of Uttarakhand program was organized

 

डॉ. दमयंती शर्मा ने एक सुंदर कुमाऊनी लोक गीत किया प्रस्तुत

 

उत्तरैणी कौतिक लागिरौ, सरयूका बगड़ मा….
तू लै ऐली, मै लै औंला, बागनाथ मंदिर में जौंला…
म्यरी सरूली…. म्यरा दीवाना….

 

डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने सुप्रसिद्ध कवि एवं साहित्यकार डॉ. हरिवंश राय बच्चन की पुण्यतिथि पर उन्हीं की पंक्तियों से उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा

 

“मैंने गाकर दुख अपनाए, कभी न मेरे मन को भाया,

जब दुख मेरे ऊपर आया, मेरा दुख अपने ऊपर ले, कोई मुझे बचाए,

मैंने गाकर दुख अपनाए।”

 

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव ने गजल
खुशबुओं के उपनिषद पहाड़ पढ़ें

 

दिव्य देवदार वेद बांचने लगे
सूरज के गांव में यज्ञ हो रहा
किरण बटुक बादलों से झांकने लगे।

देवों के तपोबल का अनुपम ध्वजवाहक है
हिमराज हिमालय तो शुभ लाभ प्रदायक है।
यहां पेड़ की बांहों में लिपटे रहते बादल
बल खाती हवाओं का चेहरा मनभावक है।
श्विमल बहुगुणा ने अपनी रचना
तरसयुं सरैल दीदा खुदयूं च प्राण
नाचण को ज्यूँ बोन्नु च लगेदे मंडाण
लगेद मंडाण गूंजे दे ब्रह्मनाद
चार दिना कि चांदना फिर अंधेरी रात।

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