विजेताओं को “फातिमा शेख अवार्ड” से किया सम्मानित, फातिमा शेख को दी श्रद्धांजलि
वतन फाउंडेशन “हमारा पैगाम भाईचारे के नाम” की ओर से महान समाजसेविका फातिमा शेख के जन्मदिन के अवसर पर एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। फाउंडेशन के मीडिया प्रभारी मोइन खान ने बताया कि “फातिमा शेख” जयंती के अवसर पर खेरदा स्थित राजकीय विद्यालय की बच्चियों के बीच प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रश्नोत्तरी में विजेता छात्रों को “फातिमा अवार्ड” से सम्मानित किया गया तथा उपस्थित लोगों द्वारा फातिमा शेख को श्रद्धांजलि प्रस्तुत की गई। इस अवसर पर वतन फाउंडेशन की ओर से चलाए जा रहे मिशन दर्द का एहसास के तहत विद्यालय के बच्चों को गर्म कपड़े, टोपे तथा जरूरतमंदों को कंबल का भी वितरण किया गया।
कार्यक्रम में अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम बैरवा, सहायक प्रशासनिक अधिकारी शाकिर अली अतिथि के रूप में उपस्थित थे। इस अवसर पर वतन फाउंडेशन की महिला विंग की अध्यक्षा सुनीता मधुकर कहा कि फाउंडेशन एक अलग प्रकार से देश के महापुरुषों को श्रद्धांजलि प्रस्तुत करता है और इस श्रृंखला में महान आत्मा एवं देश की प्रथम महिला शिक्षिका फातिमा शेख की जयंती पर उनको याद किया है। अतिरिक्त जिला शिक्षा अधिकारी घनश्याम बैरवा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि समाज में नारी शिक्षा की क्रांति ज्योतिबा फूले, सावित्रीबाई फुले, उस्मान शेख़ और बहन फातिमा शेख ने मिलकर जलाई।
रूमा नाज ने कहा की फातिमा शेख ने देश का पहला बालिका स्कूल शुरू करने में अहम भूमिका निभाई। नतीजतन 1848 में महिलाओं के लिए देश का पहला स्कूल खोला। फातिमा शेख ने 1856 तक सावित्रीबाई के साथ पढ़ाना जारी रखा। अपना पूरा जीवन समाज सुधार में व्यतीत किया। फाउंडेशन के हुसैन आर्मी ने कहा कि फातिमा शेख वह महिला थीं, जिन्होंने सावित्रीबाई फुले के साथ भारतीय शिक्षा को नया स्वरूप दिया और पुनर्जीवित किया। 9 जनवरी को उनकी जयंती है। फातिमा शेख, ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले का सहयोग, मिलन और समन्वय भारतीय सांस्कृतिक विविधता का प्रतीक था। विद्यालय के संस्था प्रधान कैलाश सिसोदिया ने बताया कि हमारे इतिहास ने फातिमा शेख के साथ न्याय नहीं किया।
शिक्षक और समाज सुधारक फातिमा शेख के बारे में बहुत कम जानकारी है और उनकी जन्मतिथि पर भी बहस होती है। हालांकि फातिमा शेख जो सावित्रीबाई फुले और ज्योतिबा फुले के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी थीं। उन्होंने जीवन भर रूढ़िवादी रीति-रिवाजों के खिलाफ संघर्ष किया। उसने फुले के भिडेवाड़ा स्कूल में लड़कियों को पढ़ाने का काम किया, घर-घर जाकर परिवारों को अपनी लड़कियों को स्कूल भेजने और स्कूलों के मामलों के प्रबंधन के लिए प्रोत्साहित किया। इस अवसर पर सुनीता गोमे, मंजू गंगवाल, सुनीता मधुकर, रूमा नाज, नरेंद्र शर्मा, सलीम खान, अली हुसैन सहित अन्य लोग मौजूद रहे।