Thursday , 3 April 2025
Breaking News

धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध धीर – धीरे खत्म हो

एक देश एक विधान कानून लागू हुआ तो यह बदलाव देश के लिए बड़ा हितकर कर होगा। इसके लिए पहले आम सहमति बनानी आवश्यक है। यह बात राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सदस्या ज्योतिका कालरा ने डॉ. बी.आर. अम्बेडकर राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, राई सोनीपत द्वारा आयोजित “समान नागरिक संहिता” पर एक राष्ट्रीय पैनल चर्चा में कही। उनके साथ उपस्थित मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के अध्यक्ष डॉ. शमशुद्दीन एम. तंबोली ने कालरा का समर्थन करते हुए कहा कि यदि धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध खत्म होने चाहिए। समान नागरिक संहिता कानून प्रत्येक धर्म की कुरूतियों को दूर करने और अच्छी बातों के प्रावधानों के आधार पर बनना चाहिए। राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित इस कार्यक्रम में हरियाणा के महाधिवक्ता बलदेव राज महाजन, मुस्लिम राष्ट्रीय बौद्धिक मंच के सह-संयोजक एडवोकेट शिराज कुरैशी, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बी. बी. परसून, सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया से एडवोकेट सुबुही खान, भारतीय शिक्षण मंडल डॉ. बनवारी लाल नाटिया, पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट विपन भासीन, दिल्ली उच्च न्यायालय से कर्नल एन. बी. विशन व पंचनद शोध संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. अरुण मेहरा ने अपने उद्बोधन में समान नागरिक संहिता की प्रबल मांग करते हुए इसके लिए सामाजिक संस्थाओं द्वारा चर्चा करके एक दिशा – निर्देश तैयार करने की वकालत की।
ज्योतिका कालरा ने दिल्ली उच्च नयायालय का उदाहरण देते हुए कहा कि भारतीय समाज अब सजातीय हो रहा है। समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़ी बाधाएं मिटती जा रही है। अनुच्छेद 44 के कार्यान्वयन पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करते हुए कहा कि केंद्र सरकार को इसका संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यक्तिगत कानूनों को एक समान करने के लिए अलग से एक बेंच का गठन होना चाहिए। कालरा ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए आम सहमति बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। संविधान बने 70 साल बीत जाने के बाद भी इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। अभी अभी दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारत में समान नागरिक संहिता को लागू करने की वकालत की है। बलदेव राज महाजन ने कहा कि एक नागरिक संहिता की आवश्यकता है जिसके प्रावधान सर्वमान्य हो और समान रूप से पूरे देश में लागू हो। विवाह व उत्तराधिकार के क्षेत्र ऐसे है जहां एक समान कानून नहीं है। उनके अनुसार अलग-अलग धर्मों के पड़ोस में रह रहे लोग जिनमें सबकुछ समान होते हुए भी नागरिक कानून अलग-अलग है। यह बहुत छोटा सा क्षेत्र है जिसके लिए हम अभी तक समान कानून नहीं बना सके हैं लेकिन धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव लाना आवश्यक है। डॉ. शम्सुद्दीन एम. तंबोली ने पैनल चर्चा में कहा कि आधुनिक भारतीय समाज में धर्म, समुदाय और जाति के पारंपरिक अवरोध धीरे-धीरे खत्म हो रहे है। भारत के विभिन्न धर्मों, जातियों , जनजातियों एवं समुदायों से संबंधित युवाओं को जो अपना विवाह सम्पन्न करते है उन्हें विभिन्न व्यक्तिगत कानूनों, विशेष रूप विवाह और तलाक के संबंध में उत्पन्न होने वाली समस्याओं एवं अन्य मुद्दों से संघर्ष करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। कॉमन सिविल कोड के तहत सभी के लिए समान कानून विभिन्न पहलुओं के संबंध में समान सिद्धांतों को लागू करने में सक्षम बनाता है। देश में अभी हिंदूओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। पैनल चर्चा के दौरान यह बात एडवोकेट शिराज कुरैशी ने कही है। उन्होंने आगे कहा कि इसमें प्रॉपर्टी, शादी, तलाक और उत्तराधिकार जैसे मामले आते हैं। जो लोग मुसलमानों के लिए शरिया कानून का हवाला देकर समान आचार संहिता का विरोध करते हैं उन्हें चाहिए या तो मुसलमानों के लिए अपराधिक पक्षों में भी समान आचार संहिता लागू करवाएं जैसा की अरब देशों में है। वहाँ चोरी करने पर हाथ काट दिया जाए इत्यादि अन्यथा भारतीय संविधान के आधार पर धर्म निरपेक्ष कानूनों का समर्थन करें। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सभी धर्मों का एक ही पर्सनल लॉ होना चाहिए और मैं इसका समर्थन करता हूँ। न्यायमूर्ति बी. बी. परसून ने कहा कि यदि आपका देश जिंदा है तो कौन मर सकता है और अगर आपका देश मर गया तो आपको कोई नहीं बचा सकता।

The traditional barriers of religion, community and caste are gradually dismantled.

उन्होंने बड़ी बारीकी से यूनिफ़ोर्म सिविल कोड से संबंधित संविधान के प्रावधानों को परिभाषित करके अलग-अलग शब्दों का मतलब समझाया। अलग-अलग समुदाय और धर्म के लिए जो अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। इससे समाज में बहुत से विरोधाभास नजर आते है। उदाहरणतः मुस्लिम पर्सनल लॉ 4 शादियों की इजाजत देता है, जबकि हिंदू समेत अन्य धर्मों में एक शादी का नियम है। शादी की न्यूनतम उम्र क्या हो? इस पर भी अलग-अलग व्यवस्था है। मुस्लिम लड़कियां जब शारीरिक तौर पर बालिग हो जाएं तो उन्हें निकाह के काबिल माना जाता है। जबकि अन्य धर्मों में शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल है। जहां तक तलाक का सवाल है तो हिंदू, ईसाई और पारसी में पति-पत्नी न्यायालय के माध्यम से ही तलाक ले सकते हैं। लेकिन मुस्लिम धर्म में तलाक शरीयत लॉ के हिसाब से होता था। समान आचार संहिता संबधी कानून बनाना व उसे लागू करना बहुत जटिल समस्या है और इसके लिए हमें अत्यंत सूक्ष्म दृष्टि से अध्ययन करना होगा। संजीदगी से बनाना होगा व धैर्य से धर्म निरपेक्ष प्रावधानों को धीरे-धीरे अपनाना होगा। एडवोकेट सुबुही खान के अनुसार समान आचार संहिता एक धर्मनिरपेक्ष पग है जिसमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों की कमियों एवं कुरूतियों को दूर करने का प्रयास है। परंतु बदकिस्मती से एक ऐसा नैरेटिव बनाया जा रहा है जैसे यह केवल मुस्लिम है। देश विरोधी ताकते भी इसे उलझाने में सक्रिय हैं। एडवोकेट खान ने कहा कि मैं एक भारतीय हूँ और मैं भारतीय संविधान में विश्वास रखती हूं। और मैं एक धर्मनिरपेक्ष समान आचार संहिता के पक्ष में हूँ। पैनल चर्चा की इसी कड़ी में डॉ. बनवारी लाल नाटिया ने कहा कि भारत सरकार जो नई शिक्षा नीति लेकर आई है उसको जमीन पर लाने का हम सबका प्रयास है जैसे ही यह क्रियान्वयन हो जाएगी तो समाज को बहुत लाभ होगा। हमारे भविष्य के युवाओं का समान आचार संहिता जैसे मुद्दों पर सकारात्मक एवं राष्ट्रवादी सोच होगी। पैनल चर्चा में डॉ. अरुण मेहरा ने कहा कि समान आचार संहिता के विरोध का मुख्य कारण राजनीतिक है। राजनीतिक दल संकीर्ण राजनीति के आधार पर, धर्म के आधार पर लोगों को गुमराह करते हैं, साम्प्रदायिक वातावरण पैदा करते हैं और समर्थन जुटाते हैं। विभिन्न सरकारें भी धर्म के आधार पर विभिन्न वर्गों के तुष्टिकरण द्वारा समर्थन प्राप्त करने की चेष्टा करती हैं। यह अंतर्विरोध व संकीर्ण राजनीति समान आचार संहिता जैसे धर्म निरपेक्ष कानूनों के बनने में बाधा बन जाती है। एडवोकेट विपन भासिन ने बताया कि अनुच्छेद 44 के तहत भारतीय संविधान सरकार को देश के समस्त क्षेत्र के नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का निर्देश प्रदान करता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने विभिन्न मामलों में सरकार से इसे लागू करने के लिए कहा भी है। हमारे संविधान निर्माता समान नागरिक संहिता के माध्यम से भेदभाव और असमानता को मिटाना चाहते थे हालांकि इसके लागू होने पर समाज के कुछ वर्गों में विरोध है। उनकी आपत्तियां और आशंकाएं भी चर्चा का हिस्सा बनी हैं। पैनल में विद्वतापूर्ण और वस्तुनिष्ठ चर्चा की गई जो कि कानून निर्माण एवं नीति निर्माण के लिए उपयोगी होगी। कुलसचिव डॉ. अमित कुमार ने कहा कि भारतीय संविधान अनुच्छेद 44 राज्य नीति निर्देशक तत्वों तथा सिद्धांतों को परिभाषित करता है। इस अनुच्छेद में समान नागरिक संहिता की बात कही गई है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व से संबंधित कहा गया है कि ‘राज्य, भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता प्राप्त कराने का प्रयास करेगा’। पैनल में अनेक पहलुओं पर चर्चा की गई। इस अवसर पर कुलपति प्रो. विनय कपूर मेहरा एवं कुलसचिव डॉ. अमित कुमार ने अतिथिगणों का स्वागत किया। विश्वविद्यालय के कुलगीत ‘”जयति जय सत्यमेव जय” और राष्ट्रगान से कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। उप कुलसचिव रामफूल शर्मा ने सभी अतिथियों का परिचय कराया। कर्नल एन.वी. विशन से समफता पूर्वक पूरे पैनल की चर्चा का संचालन किया। कुलसचिव डॉ. अमित कुमार ने सभी अतिथिगणों एवं विश्वविद्यालय की पूरी टीम और मीडिया साथियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डिप्टी रजिस्ट्रार डॉ. वीना सिंह, डॉ. जसविन्द्र सिंह, असिस्टेंट रजिस्ट्रार डॉ. सतीश कुमार, डॉ. कपिल मंगला, पीआरओ अम्बरीष प्रजापति, पीएस टू वीसी रुचि दुग्गल, संदीप मलिक, चंदन अधिकारी, पंकज जैन आदि व अन्य कर्मचारी मौजूद रहे।

About Vikalp Times Desk

Check Also

Earthquake in Myanmar News update 29 March 2025

म्यांमार में 1002 लोगों की हुई मौ*त, 2300 से अधिक लोग घायल

म्यांमार: म्यांमार में शुक्रवार को आए भूकंप के कारण अब तक कम से कम 1002 …

The third installment for Hajj Pilgrimage-2025 will be deposited by April 3

हज यात्रा-2025 के लिए तीसरी किस्त 3 अप्रैल तक होगी जमा

जयपुर: हज कमेटी ऑफ इंडिया, मुंबई द्वारा सूचित किया गया है कि अन्तर्राष्ट्रीय सांगानेर एयरपोर्ट, …

India sent help after the earthquake in Myanmar

म्यांमार में आए भूकंप के बाद भारत ने भेजी मदद

नई दिल्ली: म्यांमार में आए भूकंप के बाद भारत ने उन्हें मदद भेजी है। भारतीय …

More than 37 thousand units removed from food security list in jaipur

खाद्य सुरक्षा सूची से हटाई गई 37 हजार से अधिक यूनिट्स

जयपुर: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के अंतर्गत लाभ प्राप्त करने वाले अपात्र व्यक्ति के लिये …

Amit Shah reaction on Rahul Gandhi's statement that he is not allowed to speak in Parliament

राहुल गांधी के ‘संसद में बोलने नहीं दिया जाता वाले’ बयान पर अमित शाह क्या बोले

नई दिल्ली: लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के सदन में नहीं बोलने दिया जाता …

error: Content is protected !! Contact Vikalp Times Team !