निरंकारी सत्संग भवन पर भक्ति पर्व समागम के अवसर पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए प्रचारक महात्मा ने अपने विचारों में कहा “भक्ति दिखावे का नाम नहीं, भक्ति पहरावे का नाम नहीं, भक्ति नाम समर्पण का भक्ति में शर्तें मंजूर नहीं” और इसी संदर्भ में सद्गुरु माता जी ने अपने प्रवचनों में बताया ‘प्रतिपल समर्पित भाव से जीवन जीने का नाम ही भक्ति है जिसमें जीवन का हर पल उत्सव के समान बन जाता है, संत निरंकारी आध्यात्मिक स्थल समालखा (हरियाणा) में आयोजित ‘भक्ति पर्व समागम’ के विशेष सत्संग समारोह के अवसर पर एकत्रित विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए गये।
मीडिया सहायक प्रज्जवल प्रजापति ने बताया की इस कार्यक्रम का लाभ लेने हेतु सवाई माधोपुर से भी काफी संख्या में संख्या में भक्तगण उपस्थित हुए और सतगुरु माता जी का आशीर्वाद प्राप्त किया। भक्ति की परिभाषा को सार्थक रूप में बताते हुए सत्गुरु माता जी ने बताया कि भक्ति का अर्थ तो सरल अवस्था में जीवन जीना है जिस पर चलकर आनंद की अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
इसमें चतुर चालाकियों का कोई स्थान नहीं। भक्ति तो संपूर्ण समर्पण वाली भावना है जिसमें समर्पित होना ही सर्वोपरि है। भक्ति स्वंय की यात्रा है इस दातार से जुड़ने का एक सरल मार्ग है। ऐसी भक्ति ही जीवन को सार्थक बनाती है और दुनियावी दिखावों से मुक्त करती है। भक्ति से सराबोर संत अपना जीवन साधारण रूप में जीता है और दुनियावी चकाचौंध का फिर उस पर प्रभाव नहीं पड़ता। वह दूसरों के दुख को समझते हुए उनके प्रति अपनत्व का भाव ही अपनाता है।
उसका जीवन एक नदी के समान प्रवाहित होने वाली एक अवस्था बन जाता है। भक्ति पर्व के अवसर पर निरंकारी राजपिता जी ने सत्गुरु माता जी से पूर्व अपने भावों को व्यक्त करते हुए कहा कि भक्त का जीवन तभी भक्ति भरा बनता है जब उसके आचरण एवं व्यवहार से प्रेम रूपी महक आए। स्वंय को सत्गुरु के आगे समर्पित करते हुए आनंदित एंव उत्सव वाला जीवन जीये। अपने कर्मो के प्रभाव से औरो के लिए प्रेरणा का स्रोत बनें। गुरू के बताये हुए वचनों को सत्यवचन मानकर जीवन जीना ही भक्ति है। हर पल में केवल शुकराने का भाव प्रकट करना ही सच्चे भक्त की अवस्था है।