जयपुर:- राजस्थान के भरतपुर जिले में एक 20 महीने के बच्चे को ऐसी बीमारी ने जकड़ा है, जिसका इलाज भारत में तो संभव भी नहीं है। यह एक जेनेटिक स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी की जन्मजात बीमारी है। इसका इलाज दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन है। बता दें कि इस इंजेक्शन की कीमत 17.5 करोड़ रुपए है। भरतपुर के पहाड़ी थाने के एसएचओ नरेश शर्मा का कहना है कि उनका एक बेटा हृदयांश हैं, वो अभी साढ़े छह साल का है।
तीन अगस्त 2022 को उनके बेटे का जन्म हुआ था। बेटे के जन्म के बाद से परिवार में खुशियों का मौहाल था उन्होंने बताया कि जहां बाकि बच्चे 6 महीने की उम्र में हंसने खेलने कूदने बैठने व घुटने पर चलने लग जाते हैं। लेकिन हृदयांश 20 महीने बाद भी घुटने के दम पर नहीं चल पाता था। जिसके बाद परिवार के लोगों की चिंताएं बढ़ने लगी। इस को लेकर हृदयांश को जयपुर में डॉक्टरों को दिखाया तो पहले तो कमजोरी बताकर डॉक्टर इलाज करते रहे।
फिर जब हृदयांश को कोई फायदा नहीं मिला तो फोर्टिस हॉस्पीटल में जांच कराई। जहां पता चला कि उसे एक जेनेटिक बीमारी है। इस वजह से उसके पैरों में बिल्कुल जान नहीं है और वह न खड़ा हो सकता है और न चल सकता है। वह जेनेटिक स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी बीमारी से पीड़ित है। इसके इलाज के लिए जोलगेनेस्मा इंजेक्शन लगवाने की जरूरत है, जो की दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन है। लेकिन अब स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉपी से पीड़ित हृदयांश अब आम लोगों की तरह ही जिंदगी जी सकेगा।
अब उसे दुनिया का सबसे महंगा इंजेक्शन जोलगेनेस्मा लगने जा रहा है। हृदयांश का आज दोपहर बाद काभी भी इंजेक्शन लग सकता है। उसके लिए पेपर वर्क कंप्लीट किया जा रहा है। जेके लोन अस्पताल में इंजेक्शन आ चुका है। जिसे आज या कल में बच्चे को लगाया जाएगा। हृदयांश के चाचा स्वप्निल ने जानकारी देते हुए बताया कि इंजेक्शन बनाने वाली अमेरिकी कंपनी ने भी हृदयांश के इलाज में काफी मदद की है।
उन्होंने इंजेक्शन की 17.5 करोड़ रुपए की राशि को चार किश्तों में जमा कराने की छूट दी है। अब तक क्राउड फंडिंग से जमा हुए 9 करोड़ रुपए से इंजेक्शन की पहली किश्त जमा करा दी है। बाकी राशि को तीन किश्तों में एक साल में जमा कराया जाएगा।
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी एक जेनेटिक बीमारी है। इसके कारण हृदयांश का कमर से नीचे का हिस्सा बिल्कुल भी काम नहीं करता है। इस बीमारी का इलाज 24 महीने की उम्र तक ही किया जाता है। अगर इस बीमारी का समय पर इलाज नहीं हो तो यह पूरे शरीर में फैल जाती है। फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं। इससे जान का भी खतरा हाेता है। इसके लिए विदेश से विशेष प्रकार के इंजेक्शन की जरूरत होती है।
एसएमए बीमारी के विशेषज्ञ, जयपुर डॉ. प्रियांशु माथुर ने बताया कि हृदयांश को आज दोपहर तक तक या फिर कल इंजेक्शन लगेगा। इसके लिए ग्लोबली तौर पर पेपर वर्क कंप्लीट किया जा रहा है। इंजेक्शन लगने के बाद हृदयांश 24 घंटे डॉक्टर्स की निगरानी में रहेगा। इसके बाद दो महीने तक बच्चे के दवाईयां चलेगी। फिर बच्चा आम लोगों की तरह जीवन यापन कर सकेगा।