संविदाकर्मी महिला को भी मिले मातृत्व अवकाश- हाईकोर्ट
जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने मातृत्व अवकाश को लेकर टिप्पणी कर कहा है कि मां एक मां है, चाहे वह नियमित कर्मचारी हो या संविदाकर्मी। संविदाकर्मियों के नवजात शिशुओं को नियमित कर्मचारियों के समान जीवन का समान अधिकार है। कोर्ट ने संविदाकर्मी महिला को केवल दो माह का मातृत्व दिए जाने को संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 का उल्लंघन माना है। हाईकोर्ट ने संविदाकर्मी महिला को छह महीने की मैटरनिटी लीव नहीं देने को गलत माना है।
जस्टिस अनूप ढंड की अदालत ने महिला संविदाकर्मी को राहत देते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिए हैं कि वह संविदाकर्मी के बकाया मैटरनिटी लीव के 4 महीने का वेतन उसे 9 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करें। वहीं, 17 वर्ष पुराने मामले में याचिकाकर्ता महिला को 4 माह की शेष अवधि के लिए अतिरिक्त वेतन 9% प्रति वर्ष ब्याज के साथ देने का निर्देश दिया। न्यायाधीश अनूप कुमार ढंड ने बसंती देवी की याचिका को मंजूर करते हुए यह आदेश दिया है। याचिकाकर्ता 2003 में नर्स ग्रेड-द्वितीय नियुक्त हुई, 2008 में बेटी को जन्म दिया। इसके लिए 6 माह के मातृत्व अवकाश का आवेदन किया था, लेकिन संविदाकर्मी होने के कारण उसे दो माह का अवकाश ही मंजूर किया।
याचिका में इसे चुनौती दी गई। कोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद-21 में जीने के मौलिक अधिकार में मां बनने का हक शामिल है। इसमें बच्चे को मां से पूर्ण प्यार और देखभाल प्राप्त करने का अधिकार भी शामिल है। मां बनने का अधिकार महिला संविदाकर्मी को समान अवसर से वंचित करने का कारण नहीं हो सकता। सरकार कामकाजी महिलाओं के बच्चे की सेहत के लिए हर सुविधा उपलब्ध कराने को बाध्य है। हर मां को समान मातृत्व अवकाश मिलना चाहिए, वह चाहे संविदा पर कार्यरत हो या एडहॉक आधार पर। किसी महिला को इस अधिकार से वंचित करने का प्रयास उसके मौलिक अधिकारों के साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के भी विपरीत है।