Tuesday , 20 May 2025
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विधानसभा चुनाव2023 : दांतारामगढ़ में कांग्रेस का पलड़ा रहा है भारी, भाजपा उलटफेर के मूड में

माकपा भी चौंका सकती है, जेजेपी का क्षेत्र में प्रचार शुरू, प्रमुख दावेदार रीटा सिंह

 

इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों का शंखनाद हो चुका है। चुनाव आयोग ने चुनाव तारीखों का ऐलान कर सभी राजनीतिक दलों को अपने-अपने उम्मीदवारों की सूची में लगा दिया है, हालाँकि कुछ छोटे दलों ने अपने कुछ उम्मीदवारों का नाम पहले ही तय कर दिया था, वहीं बात करें बड़े दलों की तो इनमें भाजपा व कांग्रेस मुख्य है, उसमें भाजपा ने बाजी मारते हुए 41 विधानसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये। वहीं कांग्रेस अभी इस पर मंथन कर रहा है। जहां तक देखें सीकर जिले की आठ विधानसभा सीटों की तो इसमें भाजपा ने दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़ व फतेहपुर से अपने नाम तय कर दिये है। इनमें लक्ष्मणगढ़ विधानसभा सीट से पूर्व अंदेशा था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया का तो वह ही नाम आगे आया।

 

 

वहीं इस बार फतेहपुर एवं दांतारामगढ़ सीट से जो उम्मीदवार घोषित किये, उसमें भाजपा ने सबको चौंकाते हुए ऐसे उम्मीदवार तय किये, जो हवाई फायर की तरह तो चल रहे थे पर अंत में वो ही नाम तय हुए जो राजनीति के इतने मंझे खिलाड़ी तो नहीं पर राजनीति उनके नस-नस में समाई हुई थी। इनमें फतेहपुर वाली सीट ने तो वहां आस लगाये बैठे भाजपा के कई टिकटधारियों की हवा उड़ा दी, साथ ही जेजेपी ने जो फतेहपुर तथा दांतारामगढ़ में आस लगाई थी और भाजपा की नाव में सवार होने का मन बनाया वो उसका मंसूबा कामयाब नहीं हो सका, उसको कमल वाली पार्टी ने जोर का झटका धीरे से दिया पर फतेहपुर में तो पूर्व विधायक नंदकिशोर महरिया ने अपनी ताल ठोक दी है, पर अब हम विचार करें दांतारामगढ़ विधानसभा सीट से भाजपा ने कुमावत समाज से गजानन्द कुमावत को चुनावी दंगल में उतार दिया है, वैसे भी कुछ दिनों पूर्व कुमावत-कुम्हार समाज ने एकता का परिचय देते हुए दांतारामगढ़ सीट के लिए अपने समाज के लिए विचार करने को कहा था, सो भाजपा के बड़े पदाधिकारियों ने उनकी चेतावनी को बड़ी चेतावनी समझते हुए कुमावत समाज को यह सीट देकर उनकी नाराजगी को दूर करने का प्रयास किया है, पर इससे पूर्व जो पिछले दो विधानसभा चुनाव दांतारामगढ़ में उसमें भी कुमावत समाज से प्रत्याशी थे।

 

 

हरीश कुमावत पर दोनों ही बार चुनाव तो हार गये वो भी बहुत कम मार्जिन से, पर अब इस बार जननायक जनता पार्टी भी यहां से चुनावी मैदान में उतरने को तैयार थी। पर भाजपा ने पहले ही उसकी गाड़ी को रोक लिया। अगर यह सीट समझौते में जाती थी, तो फिर मुकाबला कैसा है यह हम सबको मालूम था। पर अभी भी जेजेपी ने इस सीट पर अपने पत्ते पूरी तरह नहीं खोले है, वहीं सूत्र यह भी बताते है कि कुछ छोटे दलों का आपसी तालमेल हो सकता है, तो उसके साझा उम्मीदवार यहां से चुनावी मैदान में उतर सकते हैं व जिले की अन्य सीटों पर अपना राजनीतिक जौहर दिखा सकते है। पर जिस प्रकार जननायक जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने शनिवार को इस विधानसभा क्षेत्र के कई इलाकों का दौरा किया और पूर्व जिला प्रमुख भी दौर में उनके साथ थी उससे यही अंदाजा लगाया जा सकता है कि जननायक जनता पार्टी यहां से अपना उम्मीदवार उनको बनाचुकी है पर इसकी औपचारिक घोषणा होना बाकी है।

 

Assembly Elections 2023 Congress has the upper hand in Dantaramgarh; BJP is in the mood for an upset

 

वैसे दांतारामगढ़ सीट का 1951 में इतिहास जाने तो यहां पर पहली बार जो चुनाव हुए उसमें एक ऐसे बड़े राजनीति के पुरोधा ने जन्म लिया, जो बाद में प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर राजस्थान की कमान संभाली व देश के उपराष्ट्रपति भी बने। ऐसे बड़े नेता थे स्व. भैरोसिंह शेखावत उन्होंने भारतीय जनसंघ से चुनाव लड़ा वह विजयी होकर जो राजनीति का झण्डा गाड़ा वो इतिहास के पन्नों में अमर रहेगा। फिर 1957 में जो चुनाव हुए उसमें मदनसिंह ने अखिल भारतीय राम राज्य परिषद के बैनर तले चुनाव जीता फिर इलाके में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय हुआ। 1962 में जगनसिंह ने इंडियन कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर विजयी हुए। फिर जब 1967 के चुनाव हुए तब कांग्रेस अपनी सीट को बरकरार नहीं रख पाई। एक बार फिर भारतीय जनसंघ उम्मीदवार मदनसिंह ने जीत हासिल कर अपनी पार्टी की खोई हुई प्रतिष्ठा वापस दिलवाई। फिर 1972 में एक ऐसा दौर आया जब इसी दांतारामगढ़ सीट ने एक ऐसे बड़े नेता को चमकता सूरज बनाया, जो आज भी कायम है। भले ही उनके पुत्र ने उनका स्थान ले लिया। जो इस सीट पर वे ऐसे नेता है, जो यहां की जनता की नस-नस में समाहित दिलो दिमाग पर छाये हुए हैं। ऐसे ही बड़े नेता है किसानों के मसीहा सर्व समाज में लोकप्रिय चौधरी नारायणसिंह इनके पैर यहां जमते ही यहां की राजनीति पूरी तरह उथल पुथल हो गई। हालांकि पहली बार चुनावी मैदान में जीत हासिल करने के बाद वो 1977 में सीट को बहाल नहीं रख पाये और मदनसिंह ने निर्दलीय के तौर पर जीत हासिल कर उनको जो चुनौती दी, उस चुनौती को चौधरी नारायणसिंह ने विनम्रता से स्वीकार किया।

 

 

फिर 1980 में जो चुनाव हुए उसमें उन्होंने अपनी जीत का परचम लहराया, साथ ही कांग्रेस को एक बार फिर यहाँ से मजबूत कर दिया। 1985 में भी चौधरी नारायणसिंह ने इस सीट को बरकरार रखा। 1990 के दशक में इस सीट से एक ऐसे दल ने अपने कदम इस जमीन पर रखे जो हरियाणा के ताल्लुक रखता हो, यहां से जनता दल के उम्मीदवार अजयसिंह चौटाला ने भाजपा से हुए समझौते के तहत जो चुनाव लड़ा उसमें एक बार तो यहां की राजनीति में नया समीकरण उत्पन्न हो गया। देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल के परिवार से ताल्लुक रखने वाले अजयसिंह चौटाला ने चौधरी नारायणसिंह के विजयी रथ को रोक तो दिया पर वो इसके आगे उसे कायम नहीं रख पाये। कहते हैं काठ की हाण्डी एक ही बार चढ़ती है, तो यहां की जनता को जो इन पाँच सालों में हुई उसको वे जिंदगी भर नहीं भलू सकते। सन् 1993 में चौधरी नारायणसिंह ने फिर धमाकेदार वापसी की, फिर 1998 से 2003 तक वे ही यहां से चुनाव जीतते गये। इन तीन चुनावों में लगातार हेट्रिक लगाने के पश्चात वे जीत का चौका लगा पाते इस बीच यहां पर एक बार फिर ऐसे नेता ने एंट्री ली जो धोद विधानसभा क्षेत्र में ऐसा लाल झण्डा गाढक़र निकला जो दाँतारामगढ़ तक भी कायम रखा ये नेता थे कामरेड अमराराम, जब तक धोद विधानसभा क्षेत्र में थे, तब तक उनके पैर अंगद की तरह वहां पर कायम थे।

 

 

जब यह सीट आरक्षित हो गई तब उन्होंने दांतारामगढ़ की तरफ रूख किया और वहां भी 2008 के चुनावों में जीत हासिल की और माकपा को यहां से नई पहचान दिलाई। इस लाल झण्डे वाली पार्टी यहां पर वो करिश्मा नहीं दोहरा सकी, जो धोद विधानसभा क्षेत्र में दोहराती आई थी। 2013 के चुनावों में चौधरी नारायणसिंह फिर विजयी होकर अपनी हार का बदला ले लिया और जिस जीत के साथ उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखे उस जीत के साथ ही अपना अंतिम चुनाव समाप्त किया और अपनी क्षेत्र की जनता को यह संदेश दिया कि वे अब राजनीति से संन्यास ले रहे है, हालाँकि जनता उनके इस कदम से सदमे में थी, पर उनका जो निर्णय था व अंतिम निर्णय था।

 

 

इसलिए वहां की जनता ने 2018 के चुनावों में उनको ही वहां का प्रत्याशी मानकर उनके सुपुत्र चौधरी विरेन्द्रसिंह को विजयश्री का वर्णन करवाया तो चौधरी विरेन्द्रसिंह भी उनके जो कार्य जो थे विकास के सरकारी योजनायें थी गहलोत सरकार की उनको जनता के बीच सही रूप से पहुंचाया। पर अब जो चुनाव है 2023 के उसमें उनको अपने ही दल से सीताराम लाम्बा जो कि क्षेत्र के जाने माने नेता है उनसे चुनौती मिल रही है, साथ ही माकपा के साथ भाजपा तो है अन्य दल भी आगे सक्रिय हो सकते है, पर जहाँ तक टिकट का सवाल है तो कांग्रेस ने इस बार पूरे राजस्थान में कहीं पर भी प्रत्याशी घोषित नहीं किये है।

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