आज हम बात करेंगे कांग्रेस पार्टी के बड़े चेहरों की, उनकी ताकत और कमजोरी की, पहला चेहरा है मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, अगर गहलोत की स्थिति को देखें तो एक कोट याद आता है। जो मैंने पहली बार शाहरुख खान से सुना था। “देयर आर नो ग्रेट मैन ओनली ग्रेट चैलेंजेस”, यानी कोई व्यक्ति महान नहीं होता। उनका चैलेंज बड़ा होता है। कुछ ऐसी ही हालत मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की है। जिन्होंने अपने ऊपर यह चैलेंज लिया है कि वह सरकार रिपीट करवाएंगे। हालांकि राजस्थान में ऐसा पिछले 30 सालों में नहीं हुआ है। वहीं जब भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सरकार जाती है। तो कांग्रेस पार्टी के विधायकों की संख्या बिल्कुल नीचे आ जाती है। गहलोत की पहली ताकत उनकी योजनाएं है। जो जनता में बहुत पॉपुलर रही है।
अशोक गहलोत की ताकत चुनावी नतीजों के बात उनकी कमजोरी भी साबित हो सकती है
अशोक गहलोत की ताकत चुनावी नतीजों के बात उनकी कमजोरी भी साबित हो सकती है। उन्हें स्कीम स्टार मुख्यमंत्री भी कह सकते हैं। चिरंजीवी योजना, गैस सिलेंडर योजना, बिजली माफी। इसके साथ ही 7 गारंटियों को लेकर भी गहलोत मैदान में हैं। गहलोत की दूसरी बड़ी स्ट्रेंथ हैं। उनका प्रचार तंत्र। इस बार मुख्यमंत्री ने ऐसा प्रचार तंत्र स्थापित किया है कि भारतीय जनता पार्टी दूसरे स्थान पर पहुंच गई है।
गहलोत की तीसरी बड़ी स्ट्रेंथ हैं। उनका माइक्रो मैनेजमेंट
एआईसीसी से लगाकर बूथ लेवल तक। कांग्रेस के सिस्टम में अशोक गहलोत के व्यक्ति हर जगह मौजूद है। इसके साथ ही उनकी चौथी ताकत है उनकी पॉलिटिकल सूझबूझ। वह एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं। जो आलाकमान से बगावत करने के बावजूद अभी भी मुख्यमंत्री बने हुए हैं और चुनाव की सारी कमान उनके हाथ में है। वह अपने सभी चहेतों को टिकट दिला कर ले आए, सिवाए महेश जोशी के।
अब बात करते हैं गहलोत की कमजोरी की
उनकी सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह सब कुछ अकेले कर रहे हैं। इस पूरे चुनावी रण में अशोक गहलोत अकेले खड़े हैं। अगर वह जीत जाते हैं। तो वह देश के बहुत बड़े नेता बनकर उभरेंगे जबकि हार उनकी और सिर्फ उनकी होगी। उनकी दूसरी बड़ी कमजोरी है उनके विधायक, जिन्होंने सरकार बचाने में उनका साथ दिया। लेकिन अब वह खुद मान चुके हैं कि विधायकों का खूब विरोध है। उनकी तीसरी और सबसे बड़ी कमजोरी है। उनके इर्द-गिर्द की कोटरी। गहलोत पहले सबसे एक्सेसिबल कहे जाने वाले मुख्यमंत्री थे। लेकिन इस कार्यकाल में एक्सेसिबल नहीं रहे।
सचिन पायलट आज भी गांधी परिवार की अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में जुटे है
सचिन पायलट आज भी गांधी परिवार की अपेक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में जुटे है। अब बात करते हैं सचिन पायलट की। उनकी सबसे बड़ी स्ट्रैंथ यह है कि वह युवाओं में बहुत पॉपुलर है। राजस्थान में करीब ढाई करोड़ से ज्यादा युवा मतदाता है। उनकी एक और बड़ी ताकत है कि वह एक मात्र ऐसे नेता हैं। जो पिछले तीन दशकों में मुख्यमंत्री गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अलावा पूरे प्रदेश में अपनी एक पहचान रखते हैं। लोग उन्हें उनके नाम से जानते हैं। पायलट की तीसरी बड़ी स्ट्रेंथ हैं। उनकी ऑरेटरी स्किल्स। उनके बोलने की जो शैली है। वह बहुत मजबूत है। वह बहुत अच्छे वक्ता है। एक और खूबी सचिन पायलट की यह रही कि उन्होंने साधारण कार्यकर्ताओं को मसूदा और विराटनगर जैसी विधानसभा का विधायक बनाया।
अब अगर पायलट की कमजोरी की बात करें। तो जिन विधायकों को वह जीता कर लाए। वह उनकी एक कमजोरी बन गए। क्योंकि पायलट जब संकट की घड़ी में थे या पायलट को जब उनका साथ चाहिए था। वह उन्हें छोड़कर मुख्यमंत्री की तरफ चले गए। ऐसे कई विधायक थे। दूसरी बड़ी कमजोरी यह है कि वह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के वादों में बहुत विश्वास रखते हैं। पहले राहुल ने आश्वासन दिया कि तुम्हें समय आने पर मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। यह वादा आज तक पूरा नहीं हुआ। विद्रोह हुआ और जब विद्रोह के बाद वह वापस आए। तब भी उन्हें सिर्फ आश्वासन ही मिला। सत्ता की कुर्सी नहीं।
ईडी की एंट्री के बावजूद राजस्थान में गोविन्द सिंह का कद लगातार बढ़ता जा रहा है
ईडी की एंट्री के बावजूद राजस्थान में गोविन्द सिंह का कद लगातार बढ़ता जा रहा है। अब बात करते हैं प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा की। तीसरी बार के विधायक गोविंद सिंह डोटासरा, जिन्होंने अपना पहला चुनाव महज 34 वोटों से जीता था। उनकी बड़ी स्ट्रैंथ यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने जब सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाया। तो वह प्रदेश में सबसे बड़े जाट नेता के रूप में उभरे। और उन्हें अपने समाज का बड़ा सपोर्ट मिला। डोटासरा की दूसरी बड़ी खूबी यह है कि उन्होंने हाल फिलहाल में अपने आप को इस तरह से प्रस्तुत किया है कि आज कांग्रेस के पोस्टर में मुख्यमंत्री गहलोत के साथ उनका चेहरा दिख रहा है।
कांग्रेस में गहलोत युग के बाद वह अपनी एक दावेदारी पेश कर चुके हैं। उन्होंने अपने कई चहेतों को टिकट भी दिलवाया है। डोटासरा की कमजोरी यह है कि उन पर रीट और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में हुए पेपरलीक में शामिल होने का आरोप है। इसके चलते हाल ही उनके दरवाजे तक ED भी पहुंच चुकी है। उनके परिवारजनों का आरपीएससी और अलग-अलग परीक्षाओं में जो चयन हुआ। उससे भी गलत संदेश गया। उनकी एक कमजोरी यह है कि जब वह शिक्षा मंत्री थे तो मुख्यमंत्री गहलोत ने बिड़ला ऑडिटोरियम में शिक्षकों से एक संवाद में सवाल पूछा था कि क्या ट्रांसफर और पोस्टिंग के पैसे लगते हैं। जिसका जवाब मिला हां। जिससे डोटासरा की साख पर प्रश्न चिन्ह लग गया।