मालवीय नगर विधानसभा सीट से लगातार दो चुनाव हारने के बाद कांग्रेस ने भाजपा के कद्दावर नेता कालीचरण सर्राफ के सामने अर्चना शर्मा को उतारा था। लेकिन इस बार भी अर्चना शर्मा को हार को सामना करना पड़ा और वह कालीचरण सर्राफ के सामने टिक नहीं पाई। हार के बाद उन्होंने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां करते हुए बहुत कुछ लिखा। पढ़िए उनकी भावुक पोस्ट….
डॉ. अर्चना शर्मा ने एक्स पर लिखा- मालवीय नगर की जनता का आदेश शिरोधार्य। आपसे 1999 में पारिवारिक रिश्ता बना, जब यह क्षेत्र जौहरी बाजार विधानसभा था, पार्टी ने पार्षद पद के लिये झालाना क्षेत्र में सामान्य वर्ग की सुशिक्षित महिला ना मिलने पर चुनाव लड़ने के लिये सोमेन्द्र महाराज को सुयोग्य प्रत्याशी ढूंढने को कहा और उनकी खोज मुझ पर जाकर समाप्त हुई। ना चाहते हुए भी मैंने चुनाव लड़ा और जीतकर नगर निगम में पार्टी का प्रतिनिधित्व किया। 2004 में तत्कालीन बनीपार्क विधानसभा के लालकोठी स्वेज फार्म क्षेत्र से पार्टी ने मुझे चुनाव लड़वाया और कहा कि बहुमत आने पर महापौर बनाएंगे, मैं तो विजयी हुई पर पार्टी निगम में बहुमत से बहुत दूर रही, पार्षद दल की नेता के रूप में 5 साल, रात-दिन पूरे जयपुर में कार्य किया। 2008 में राज्य में परिसीमन में मेरे द्वारा जीते गए दोनों क्षेत्र मालवीय नगर विधानसभा में आ गए जो नई विधानसभा सीट बनाई गयी थी। 2008 में इस क्षेत्र से टिकिट लेकर आये महानुभाव का (उस समय के प्रत्याशी) जब मेरी माता जी के निधन होने पर भी मैंने प्रचार समर्थन किया। 2009 में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी मुझे महापौर का टिकिट देने का निर्णय कर चुके थे परन्तु किसी और को टिकिट मिलने पर भी ना पार्टी का विरोध किया ना प्रत्याशी का और हृदय पर पत्थर रख कर समर्थकों सहित पार्टी प्रत्याशी को महापौर का चुनाव जितवाया। पार्टी ने एक वर्ष बाद पार्टी का प्रवक्ता और प्रदेश पदाधिकारी बनाकर जिम्मेदारी दी जिसका प्राण प्रण से निर्वहन किया। 2013 में पार्टी ने मुझे एमएलए का प्रत्याशी बनने का निर्णय किया लेकिन मैं मालवीय नगर से टिकट नहीं मांग रही थी, मेरी इच्छा विराट नगर से चुनाव लड़ने की थी, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष जी और तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने मालवीय नगर से पार्टी का टिकिट दिया तो अनुशासित योद्धा के रूप में 2013 का चुनाव लड़ा (जिनका मैंने 2008 में साथ दिया उन्होंने चुनाव में मेरी जमकर खिलाफत की) पार्टी मात्र 21 सीटों पर जीती और प्रचंड आंधी में 179 सीटों पर सभी हार गये और मैं भी हार गयी। फिर भी मैंने हिम्मत नहीं हारी और 2013 से 2018 तक रात-दिन पार्टी के लिये जमकर परिश्रम किया, फलस्वरूप 2018 में मालवीय नगर से टिकट दिया गया। मेरी भरपूर मेहनत के बाद ओर आपके जबरदस्त समर्थन मिलने पर भी मात्र 1704 मतों से चुनाव हरवा दी गई। मन टूट गया, हिम्मत जवाब दे गई, लेकिन समर्थकों एवं साथियों ने हिम्मत बंधाई। आप जनता जनार्दन ने कहा कि हौसला रखो, फिर मेहनत करो, अब की बार साथ देंगे। मुख्यमंत्री जी ने कहा पार्टी तुम्हें हारा हुआ नहीं मानती, जनता की सेवा करो, पार्टी तुम्हारा मान रखेगी। मैंने 2018 से 2023 तक ना दिन देखा ना रात, भूखी-प्यासी रहकर 24 घंटे, जनता की सेवा की, विधायक ना होते हुए भी 38 सालों में जो काम नहीं हुए थे, वो काम करवाए। करोड़ रुपए की सड़के, नालियां, सीवर, फुटपाथ, पार्क सब बनवाए, कोई त्योहार नहीं देखा, बच्चे परिवार, सब भूल कर मालवीय नगर की जनता को परिवार मान कर दिन रात काम किया, पैदल चली, एक एक गली एक एक घर जाकर सबसे मिली। आपके बताये निजी और सार्वजनिक काम किये। जिस विधानसभा में कांग्रेस का एक पार्षद नहीं जीतता था वहां 9-10 पार्षद जितवाए। पार्टी का नया संगठन खड़ा किया। परिणाम क्या मिला?? जिन्हें नेता बनाया, पार्षद बनाया, वो स्वार्थ में अंधे हो गये, जिन नेताओं को पार्टी ने पद दिया वो चुनाव लड़ने और टिकिट के लिये सारी सीमाएं लांघ कर चौराहे पर आ गये। विरोधियों से मिलकर षड्यन्त्र करने लगे। झूठे लेटरपैड तैयार किये गये, झूठे ऑडियो बनाये गये, फिर भी पार्टी ने मेहनत, काम, निष्ठा, लगन, अनुशासन सब देखकर तीसरी बार टिकिट दिया तो षड्यंत्रों की बाढ़ आ गई। मुझे हराने के लिये लाखों करोड़ों रूपए पानी की तरह बहाये गये। धार्मिक उन्माद फैला कर मेरे कामों पर, मेरे परिश्रम पर, मेरी तपस्या पर पानी फेर दिया गया। ना शुचिता देखी, ना व्यवहार, ना निष्ठा, ना 25 साल की तपस्या देखी, बस मेरी पार्टी पर एक वर्ग विशेष का पक्षधर होने का तमगा लगा कर धार्मिकता के आधार पर मुझे परीक्षा में फेल कर दिया। ये भी नहीं सोचा कि आपके इस एकतरफा फैसले से मेरा सार्वजनिक जीवन समाप्त हो जायेगा। 2009 में मुझे महापौर का टिकिट देने का फैसला करने के बाद ऐनवक्त पर मेरा टिकिट कटा तो मुझे बहुत ज्यादा दुख हुआ पर मैं टूटी नहीं, 2013 में बुरी तरह हारी पर मैं टूटी नहीं, हिम्मत रखी, 2018 में जीता हुआ चुनाव चंद वोटों से हारी तो राजनीति छोड़ने का मन हुआ, हिम्मत जवाब दे गई पर मन से टूटी नहीं। परन्तु अब जो आपने 25 सालों की तपस्या और परिश्रम को ठुकराया तो लगा जैसे धरती फट गई थी और जैसे सीता माता उसमें समा गई थी वैसे धरती फट जाये और मैं उसमें समा जाऊं। फिर लगा जैसे हार्ट अटैक होने वाला है, दिल बैठ गया, पर अटैक भी नहीं आया, इतनी बुजदिल नहीं कि आत्महत्या कर लूँ, पर आपने एक संस्कारी महिला की राजनीतिक हत्या कर दी। अब कोई क्यों किसी क्षेत्र में निस्वार्थ काम करेगा? क्यों कहीं विकास करवाएगा ? क्यों किसी के सुख दुख का साथी बनेगा? क्यों रात-दिन परिश्रम करेगा ? जब आप काम नहीं देखकर सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम करने वाले को, धार्मिक उन्माद फैलाने वाले को, झूठ बोलकर वोट लेने वाले को ही आशीर्वाद दोगे और एक महिला जो 25 साल से लगातार परिवार के सदस्य के रूप में जन सेवा को अपना ध्येय मानकर आपके लिये रात-दिन एक किये हुए है, उसे ठुकराओगे तो अब कौन इतनी मेहनत करेगा? खैर, धार्मिक उन्माद की इस आंधी में जिन 57 हजार भाई-बहनों ने मेरा साथ दिया उनका हृदय से आभार और जिन्होंने मुझे हराने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा था उन्हें बधाई। जो मेरी हार से बहुत ज्यादा खुश हैं, उन्हें उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं। आपका हृदय जीतने में असफल आपकी बहन, आपकी बेटी (डॉ. अर्चना शर्मा)