Monday , 19 May 2025

 रविंद्र भाटी सांसद बनने पर नरेंद्र मोदी को ही बनवाएंगे प्रधानमंत्री !

भाटी ने सीएम भजनलाल और कांग्रेस के पूर्व मंत्री अमीन खान की भी की तारीफ

(एसपी मित्तल):- राजस्थान के बाड़मेर जैसलमेर संसदीय क्षेत्र से निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी की राजनीति राजस्थान में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। रविंद्र भाटी का मुकाबला केंद्रीय मंत्री और भाजपा के उम्मीदवार कैलाश चौधरी तथा कांग्रेस के उम्मीदवार उम्मेदाराम बेनीवाल से है। 26 अप्रैल को मतदान होने के बाद 27 अप्रैल को रात 8 बजे एनडीटीवी (राजस्थान) पर एक लाइव डिबेट हुई। इस लाइव डिबेट में रविंद्र सिंह भाटी के साथ साथ मुझे (एसपी मित्तल) भी भाग लेने का अवसर मिला। एंकर राहुल भारद्वाज ने वे सब सवाल भाटी से पूछे जो आम लोग जानना चाहती हैं।

 

 

राहुल के सवाल के जवाब में रविंद्र भाटी ने स्पष्ट कहा कि सांसद बनने के बाद वे नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनवाएंगे! भाटी ने कहा कि मोदी जी का जो विजन है उसी से देश को आगे ले जाया जा सकता है। भाटी ने कहा कि मैं उम्मीदवार नहीं बना बल्कि बाड़मेर और जैसलमेर की जनता ने मुझे उम्मीदवार बनाया है। मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी अपने संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं से दूर रहे, इसलिए कैलाश चौधरी के प्रति लोगों में नाराजगी है।

 

 

If Ravindra Bhati becomes MP, Narendra Modi will be made the Prime Minister!

 

 

 

भाटी ने माना कि नामांकन से पहले मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से सौहार्दपूर्ण वातावरण में बात हुई थी। मैं आज भी मानता हूं कि भजनलाल शर्मा एक अच्छे मुख्यमंत्री हैं। शर्मा को शपथ लिए चार माह हुए हें, इस में से दो माह चुनाव आचार संहिता से गुजर रहे हैं। भाटी ने कहा कि वे कांग्रेस के पूर्व मंत्री अमीन खान के भी अहसानमंद हैं।

 

 

इस चुनाव में अमीन खान ने उन्हें पूरा समर्थन दिया है। हालांकि कांग्रेस ने अब उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया है, लेकिन मैं हमेशा अमीन खान के साथ खड़ा रहूंगा। भाटी ने कहा कि बाड़मेर जैसलमेर में राजपूत और मुस्लिम समुदाय के बीच भाईचारा है। मैं भी मुस्लिम समुदाय का सम्मान करता हूँ।

 

भाटी बोले मैं धमकियों से नहीं डरता:-

रोहित गोदारा द्वारा जान से मारने की धमकी दिए जाने पर भाटी ने कहा कि वह ऐसी धमकियों से नहीं डरते हैं। राजनीति में ऐसी धमकियां मिलती रहती है। यहां यह उल्लेखनीय है कि भाटी मौजूदा समय में शिव से निर्दलीय विधायक हैं। हाल ही में हुए चुनावों में भाटी को जहां करीब 80 हजार वोट मिले, वहीं कांग्रेस के अमीन खान ने 55 हजार से भी ज्यादा वोट प्राप्त किए थे।

 

 

तब निर्दलीय प्रत्याशी फतेह खान को 75 हजार से ज्यादा वोट मिले। भाटी ने आरोप लगाया कि लोकसभा चुनाव में प्रशासन ने राजनीतिक दबाव के तहत काम किया है। मैंने मतदान से पूर्व 400 संवेदनशील केंद्रों की सूची दी थी, लेकिन प्रशासन से इन केंद्रों पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं किए, उल्टे मेरे समर्थकों को वोट डालने से रोका गया।

 

कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों का जाट समुदाय का होने का फायदा क्या रविंद्र भाटी को मिलेगा? के सवाल पर भाटी ने कहा कि वे जाति की राजनीति नहीं करते हैं, वे निर्दलीय नहीं बल्कि सर्वदलीय हैं, इसलिए कांग्रेस के अमीन खान ने भी उन्हें समर्थन दिया है। भाटी ने जिस अंदाज में सवालों के जवाब दिए उससे प्रतीत होता है कि उनकी नाराजगी कैलाश चौधरी के प्रति है। भाटी की भाजपा और पीएम मोदी से कोई नाराजगी नहीं है।

 

 

कौन जीतेगा इसका पता तो चार जून को नतीजे आने पर ही चलेगा, लेकिन अमीन खान के भाटी को समर्थन से कैलाश चौधरी को भी फायदा हो सकता है। कैलाश चौधरी ने 2014 के चुनाव में 87 हजार 461 तथा 2019 के चुनाव में 3 लाख 23 हजार 808 मतों से जीता था। आठ में से पांच विधायक भाजपा के हैं। दो निर्दलीय में से एक निर्दलीय विधायक प्रियंका चौधरी ने भी कैलाश चौधरी को समर्थन दिया है।

 

तो क्या वैभव गहलोत को हार का डर है?

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पुत्र वैभव गहलोत जालौर-सिरोही संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार है। वैभव की शिकायत पर कांग्रेस ने युवा नेता बालेंदु शेखावत को पार्टी से निष्कासित कर दिया है। वैभव ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया कि शेखावत ने पार्टी विरोधी काम किया है।

 

 

 

यह उल्लेखनीय है कि बालेंदु विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष दीपेंद्र सिंह शेखावत के पुत्र हैं। राजनीतिक क्षेत्रों में चर्चा है कि वैभव गहलोत को हार का डर है। इसलिए वे पार्टी के नेताओं पर आरोप लगा रहे हैं। यदि वैभव गहलोत जीत के प्रति आश्वस्त होते तो ऐसे आरोप नहीं लगाते। वैसे भी यह चुनाव वैभव ने नहीं बल्कि उनके पिता अशोक गहलोत ने लड़ा है। तीन बार मुख्यमंत्री और तीन बार केंद्रीय मंत्री रहे अशोक गहलोत के सामने बालेंदु शेखावत की कोई राजनीतिक हैसियत नहीं है। क्या बालेंदु जैसे नेता की वजह से गहलोत चुनाव हार जाएंगे?

 

(सोर्स – एसपी मित्तल ब्लॉगर)

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