गुर्जर आरक्षण आंदोलन के प्रमुख कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का आज बुधवार को दुखद निधन हो गया। इससे समुचित गुर्जर समाज सहित प्रदेश भर में शोक की लहर छा गई है। कर्नल किरोड़ी बैंसला ने जयपुर के मणिपाल हॉस्पिटल में आज सुबह 7 बजकर 36 मिनट पर 82 साल की उम्र में आखरी सांस ली। गुर्जर आरक्षण के लिए कर्नल बैंसला ने 2006 से लड़ाई प्रारंभ की थी। तब से लेकर अब तक राजस्थान राज्य में 6 बार गुर्जर आंदोलन हुए।
देखा जाए तो उन्होंने समाज के आरक्षण के लिए कांग्रेस तथा बीजेपी दोनों ही सरकारों में आंदोलन किए। वहीं राजस्थान की राजनीति में कर्नल बैंसला एक कद्दावर नेता के रूप में उभर कर आए। हालांकि इस बीच वह बीजेपी के टिकट पर टोंक- सवाई माधोपुर लोससभा सीट से चुनाव लड़ा। परन्तु कांग्रेस के प्रत्याशी नमोनारायण मीणा से 317 वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद उन्होंने कुछ दिनों बाद ही बीजेपी पार्टी छोड़ दी थी। लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के बीच एक बार फिर कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला बीजेपी में शामिल हो गए थे।
एक नजर में जानिए कौन थे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला-
किरोड़ी सिंह बैंसला राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में जन्में थे। गुर्जर समुदाय से आने वाले कर्नल किरोड़ी सिंह ने अपने जिंदगी की शुरुआत एक शिक्षक के तौर पर की थी। वह पहली व्याख्याता बने। परन्तु पिता के फौज में होने के चलते उनका रुझान सेना की ओर रहता था। तब से ही उन्होंने भी फौज में जाने का मन बना लिया। पहली बार वह सेना में सिपाही के तौर में भर्ती हुए। बैंसला फौज की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे तथा फौज में रहते हुए 1962 के भारत और चीन तथा 1965 के भारत व पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से देश के लिए लड़ाई लड़ी। सिपाही से कर्नल तक का सफर किरोड़ी सिंह बैंसला एक पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे थे। उन्हें दो उपनामों से भी उनके दोस्त जानते थे। सीनियर्स उन्हें ‘जिब्राल्टर का चट्टान’ एवं साथी कमांडो ‘इंडियन रैम्बो’ कहकर पुकारते थे।
बैंसला ने 2006 में की गुर्जर आंदोलन की शुरूआत-
भारत में आरक्षण की चिंगारी तो आजादी के बाद से ही सुलग रही है। लेकिन राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की चिंगारी सर्वप्रथम वर्ष 2006 में सुलगी। तब से लेकर अब तक प्रदेश में 6 बड़े गुर्जर आंदोलन हो चुके हैं। इस बीच बीजेपी एवं कांग्रेस दोनों की सरकार रही। लेकिन किसी भी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकल सका। वर्ष 2006 में एसटी आरक्षण में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर राजस्थान के हिंडौन में सड़कों तथा रेल पटरियों पर उतरे थे। गुर्जर आंदोलन में वर्ष 2006 के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा महज एक कमेटी बना सकी, जिसका भी कोई नतीजा नहीं निकला।
दूसर गुर्जर आन्दोलन में 28 लोग मारे गए-
साल 2006 में हिंडौन में रेल पटरियां उखाड़ने वाले गुर्जर कमेटी बनने के बाद कुछ वक्त के लिए शांत जरूर हुए थे,। परन्तु चुप नहीं बैठे थे और गत 21 मई 2007 को फिर आंदोलन की घोषणा कर दी। गुर्जर आंदोलन साल 2007 के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया। वहीं इस आन्दोलन में यहां से होकर जाने वाले राजमार्ग को जाम कर दिया। इसमें आन्दोलन में शामिल 28 लोग मारे गए थे। इसके बाद चौपड़ा कमेटी बनी। जिसने अपनी रिपोर्ट में गुर्जरों को एसटी आरक्षण के अंदर लेने के लायक ही नहीं माना था।
लेकिन तीसरे आन्दोलन में बढ़ा मौतों का आकंड़ा-
पीपलखेड़ा पाटोली में गुर्जर आंदोलन किए जाने के सालभर बाद ही गुर्जरों ने फिर आन्दोलन का ऐलान कर दिया। सरकार से आमने-सामने की लड़ाई का ऐलान कर 23 मार्च 2008 को भरतपुर के बयाना में पीलूपुरा ट्रैक पर रेल रोकी। सात आंदोलनकारियों की पुलिस फायरिंग में जान गई। सात मौतों के बाद गुर्जरों ने दौसा जिले के सिंंकदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया। यहां भी यही नतीजा हुआ की 23 आंदोलनकारियों को जान गवानी पड़ी और गुर्जर आंदोलन 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढ़कर 58 हो गया,जो अब तक 72 तक पहुंच चुका है।
वहीं एक बार फिर साल 2009 में आंदोलन प्रारंभ हुआ। विधेयक पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर किए। लेकिन न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। साल 2010 में गुर्जर आंदोलन ने एक फिर गति पकड़ी। विशेष पिछड़ा वर्ग (एसबीसी) में 5 प्रतिशत आरक्षण देने पर सहमति बनी। साल 2008 में बीजेपी सरकार में राज्य सरकार ने विधेयक पारित कराया।
2009 में कांग्रेस शासन में राज्यपाल ने हस्ताक्षर कर विधेयक को मंजूरी दे दी। साल 2009 में एक फिर आंदोलन प्रारंभ हुआ। विधेयक पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर किए लेकिन वापस कोर्ट ने रोक लगा दी। साल 2010 में गुर्जरों ने फिर आंदोलन किया। इसके बाद 2019 में सवाई माधोपुर के मलारना डूंगर में पटरियां रोककर गुर्जर आंदोलन हुआ।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला के निधन पर पुरे गुर्जर समाज सहित प्रदेश भर में शोक की लहर छा गई है। कर्नल किरोड़ी ने फौज से सेवानिवृत्त होने के बाद समाज के उत्थान के लिए अपना जीवन समर्पित किया था। उन्होंने गुर्जर समाज के उत्थान के लिए आरक्षण दिलाने का बीड़ा उठाया। लेकिन खास बात यह है की आंदोलन की शुरुआत से पहले गांव-गांव जाकर जन जागरण किया। अपनी महिंद्रा डीआई जीप को चलाकर रात-रात भर गांवों में घूमते थे।
जीप के बोनट पर एक ही स्लोगन लिखा हुआ था की हम होंगे कामयाब। आखिरकार गुर्जर समाज की दिशा और दशा बदलने में कर्नल किरोड़ी सफल हो पाए। आंदोलन के दौरान कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला अक्सर साझा करते थे की जब गुर्जर की बेटी कलेक्टर बनकर अपने ऑफिस में मुझे पिलाएगी एक कप चाय। हालांकि साल 2009 में टोंक-सवाई माधोपुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ा। लेकिन उन्हें कांग्रेस प्रत्याशी नमोनारायण मीना के सामने पराजित होना पड़ा।
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का समाज को संदेश-
1. मुझे समाज में केवल अच्छा स्वास्थ्य और अच्छी शिक्षा चाहिए, हमें कुपोषित समाज नहीं चाहिए।
2. मुझे समाज में पढ़ी लिखी मां चाहिए। पढ़ी हुई मां एक तरफ 100 शिक्षक एक तरफ।
3. मुझे कर्ज में डूबा हुआ समाज नहीं चाहिए क्योंकि वह तीन पीढ़ियों को सत्यानाश करेगा।
4. अंग्रेजी सीखो और नशा मत करो।
5. 15 साल की इमरजेंसी लगा दो केवल शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा कोई खर्च नहीं।
6. कथा, भागवत और सामाजिक कुरीतियों को बंद करो जो बचत हो उसे शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर खर्च करो।