भारत सरकार पशुओं के निर्यात का विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। इस प्रस्तावित विधेयक का देशभर में अहिंसा प्रेमियों, पशु प्रेमियों और संस्कृति प्रेमियों द्वारा भारी विरोध किया जा रहा है। देश के लगभग 80 प्रतिशत राज्यों में गोवध पर प्रतिबंध है। ऐसे में राज्यों की लिखित सहमति के बगैर इस प्रकार का विधेयक लाना संवैधानिक भावनाओं के विरुद्ध है। वध के लिए जीवित पशुओं का निर्यात संविधान के अनुच्छेद 48 और 51-ए (जी) के विरुद्ध है। श्रमण डॉ. पुष्पेंद्र ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा इस प्रकार का विधेयक लाना मनमानी है। उन्होंने जीवित पशु पक्षियों को “वस्तु” की श्रेणी में लेने को भी अनुचित बताया है। उन्होंने कहा कि आयात निर्यात पशुपालन विभाग का कार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि मांस निर्यात तो गलत है ही, अब “जीवित मांस” का निर्यात भी क्रूरता और संवेदनहीनता का एक वीभत्स उदाहरण है।
देश में “पशुपालन मंत्रालय” चल रहा है पर अब उसका नाम पशुपालन नहीं अपितु “पशुमारण मंत्रालय” होना चाहिए। इस अवसर पर राजस्थान समग्र जैन युवा परिषद के अध्यक्ष जिनेन्द्र जैन ने बताया की इस निर्यात के बिल पर आश्चर्य जताते हुए प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में उन्हें स्मरण करवाया कि वर्ष 2013 में उन्होंने एक वक्तव्य में टिप्पणी की थी, ‘यदि कोई पिल्ला भी कार के पहिये के नीचे आ जाए तो उन्हें दुख होता है, फिर जीवित पशुओं का निर्यात क्यूँ किया जा रहा ? जैन ने देश के सभी धर्मावलंबियों, पशु प्रेमियों, विभिन्न धार्मिक संगठनों और जनसमुदाय को एक सक्रिय भूमिका निभाने के लिए अनुरोध किया। वरिष्ठ समाज सेवी राधेश्याम जैन ने बताया की देश ने सदैव नीति और अध्यात्म की बात की है। पशुओं के निर्यात को बढ़ावा देने की नीति एक मानवीय अन्याय है, जो हमारी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है। देशभर के अहिंसा प्रेमियों ने प्रधानमंत्री व पशुपालन मंत्रालय सेे मांग की है कि पशुधन आयात और निर्यात विधेयक 2023 पर तुरंत रोक लगाई जाए। यह विधेयक कृषि प्रधान और ऋषि प्रधान भारत की अहिंसा संस्कृति के विरुद्ध है।
ग्रामीण महिला विद्यापीठ, उ.मा. विद्यालय मैनपुरा, सवाई माधोपुर
माध्यम अंग्रेजी एवं हिन्दी
कक्षा – L.K.G. से 12वीं तक
संकाय – विज्ञान, कला (उर्दू साहित्य)
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