अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के वैश्विक और प्रतिष्ठित पटल पर “एक शाम लंदन के नाम” कवि सम्मेलन का सवाई माधोपुर से वर्चुअल आयोजन किया गया। लंदन यूनाइटेड किंगडम यानी कि इंग्लैंड की राजधानी और सबसे अधिक आबादी वाला शहर है। ग्रेट ब्रिटेन द्वीप के दक्षिण पूर्व में थेम्स नदी के किनारे स्थित, लंदन पिछली दो सदियों से एक बड़ा व्यवस्थापन रहा है। लंदन राजनीति, शिक्षा, मनोरंजन, मीडिया, फ़ैशन और शिल्प के क्षेत्र में वैश्विक शहर की स्थिति रखता है। इस कार्यक्रम में लंदन से ऋचा जैन, तिथि दानी, आशुतोष कुमार और ज्ञान शर्मा, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश से इस संस्था के वैश्विक अध्यक्ष प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव और बाघों की नगरी सवाई माधोपुर से डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने भाग लिया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता पंडित सुरेश नीरव ने की तथा संचालन डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने किया। कवि आशुतोष कुमार ने कविता “रहनुमा ख़ुद ही नज़ारों का जो काइल हो गया, रास्ते मंज़िल हुए चलना भी मुश्किल हो गया। आठ दस इंग्लिश किताबें जब से बच्चों ने पढ़ीं, जिसने क ख ग सिखाया बाप जाहिल हो गया।” तथा “सुमिरन करूं हर पल मैं उनका, मेरे हृदय बसे श्री राम हैं।” प्रस्तुत की। ऋचा जैन जी ने कविता “मैं राधा ही तो हूं , यूँ गलबहियां डाले रहोगी तो तान कैसे लूंगा राधा, नहीं पता, कान्हा, पर तान के संग तेरे हृदय के कम्पन और श्वासों की आवाजाही ना गयी मेरे कानों में, तो वो तान अधूरी है रे मेरे लिए।” तथा “नाम नहीं था तब तक उसका, लगती गीली गीली थी। हिय के सोते से फूटी, वो बरखा एक पहेली थी।” प्रस्तुत की।
ज्ञान शर्मा ने कविता “कोई पास से जो गुजरे, सांसों को मैं रोक लेता हूं, इन इमारतों के शहरों में, बेदम सा हो रहा हूं मैं।” तथा “युग युगांतर से थी व्याकुल, राम के दर्शन को मैं, राम के आशीष से अब, खुद राम बनती, वो शिला हूं।” प्रस्तुत की। तिथि दानी ने कविता “मां ने पा लिया है अपना वजूद, तितली, झरने, कोयल, जंगल, जानवर, आज सब हैं उसके साथ, मां को कुछ, दे सकने की स्थिति में भी चाहती थी मैं,कुछ मांगना उससे, क्या अपनी यंत्रवत सी ज़िंदगी में, मेरे हाथों में, कभी किसी को, दिखेगा मेरा वजूद।” तथा “नीली शाम ने अपने दरवाजे खोल दिए थे, वक्त को अंदर आने की दी थी अनुमति।” प्रस्तुत की।
डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने कविता “पंथी पथ से परिचय क्या, दूर बहुत पाथेय प्राण का, अधिक फलों का संचय क्या।” प्रस्तुत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव जी ने कविता “घर जलाए हैं कितने बारिशों ने, आग बादल भी साथ लाते हैं।होगा जुनून जिनका पर्वतों सा, जलजले उनको आजमाते हैं। धड़कनों ने लिखे थे जो नगमे, हम चलो आज उनको गाते हैं। जब बुलाते हैं वो इशारों से, हम भी नीरव हैं, भाव खाते हैं।” तथा “मैं खुद हूं नेत्र तीसरा शंकर के भाल का, मैं हूं अनित्य नृत्य दिव्य महाकाल का।” प्रस्तुत की। रविवार देर शाम तक चले इस कवि सम्मेलन को देश विदेश के अनेक क्षेत्रों से असंख्य लोगों ने देखा सुना और सराहा।