सवाई माधोपुर:- अक्षय तृतीया एवं पीपल पूर्णिमा के अभूत सावों के साथ-साथ अन्य विशेष सावों पर बाल विवाह होने की सम्भावनाओं के मध्यनजर बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के अनुसार बाल विवाह अपराध होने के कारण इसकी रोकथाम हेतु निरन्तर निगरानी एवं जन जागरूकता के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
इसी कड़ी में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उप निदेशक गौरी शंकर मीना के निर्देशन में विभिन्न गैर सरकारी संगठनों, बाल अधिकारिता विभाग सहित अन्य एजेन्सियों के प्रतिनिधियों की बैठक का आयोजन आज गुरूवार को कार्यालय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ठींगला सवाई माधोपुर में हुआ।
उप निदेशक ने बताया कि बाल विवाह एक सामाजिक कुरूति है। इसका सबसे बड़ा दुष्परिणाम बच्चों के शिक्षा, खेलकूद आदि से संबंधित अधिकारों पर पड़ता है। खासकर लड़कियों को जो अधिकार मिलने चाहिए, उन्हें उन अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है और उन्हें छोटी उम्र में ही घर के कामों को सीखने और करने के लिए के लिए मजबूर कर दिया जाता है।
बचपन से वंचित:- यह एक ऐसी कुप्रथा है जो बच्चों से उसके बचपन को छीन लेती है। जो उम्र उनके खेलने-कूदने, अपने दोस्तों के साथ समय व्यतीत करने, मनोरंजन करने का होता है। तब उन्हें एक ऐसी जिम्मेदारी सौंप दी जाती है, जिसके बारे में उन्हें कुछ भी नहीं पता होता है।
जहां उन्हें गुड्डेदृगुड़ियों की शादी जैसे खेल खेलने चाहिए वहां उन्हें ही गुड्डेदृगुड़िया बनाकर उनका विवाह कर दिया जाता है। विवाह जैसे बंधन में बंधने के बाद उनके ऊपर एक ऐसी जिम्मेदारी डाल दी जाती है। जिससे उनके मानसिक, सकारात्मक एवं भावनात्मक विकास में वृद्धि नहीं हो पाती है।
निरक्षरता:- बाल विवाह के कारण लड़कियां घरेलू काम काजो में व्यस्त हो जाती है। उन्हें बीच में ही अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ती है। वह यदि पढ़ना भी चाहे तो उसे पढ़ने नहीं दिया जाता है। कम उम्र में विवाह के चलते हैं लड़कियां अशिक्षित ही रह जाती है। जिसके कारण वह अपने साथ हुए शोषण के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाती है। वह जीविका के लिए अपने परिवार के ऊपर निर्भर हो जाती हैं। समाज में नारी शिक्षा के अभाव होने के कारण उनका भरपूर शोषण होता है।
खुद अशिक्षित होने के कारण वह अपने बच्चों को भी शिक्षित नहीं कर पाती है। उन्होंने बताया कि इस कुप्रथा की प्रभावी रोकथाम के लिए सभी गैर संगठनों को ग्राम व तहसील स्तर पर पद स्थापित विभिन्न विभागों के अधिकारियों, थानाधिकारियों, पटवारियों, भू-अभिलेख निरीक्षको, ग्राम सेवको, कृषि पर्यवेक्षकों, महिला बाल विकास के परियोजना अधिकारियों, पर्यवेक्षको, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, महिला सुरक्षा सखी, शिक्षकों के साथ मिलकर कार्य करना होगा। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार कर आमजन में जन जागरूकता लानी होगी। उन्होंने बताया कि पंचायतीराज अधिनियम, 1996 के अन्तर्गत गांवों में बाल विवाह रोकने का दायित्व सरपंच पर है।
उप निदेशक सूचना एवं जनसम्पर्क हेमन्त सिंह ने बताया कि भारत में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का आरम्भ मुख्यतः मध्यकाल से हुआ है। भारत के आजादी के आन्दोलन के दौरान सामाजिक सुधार आन्दोलन भी साथ-साथ चला है। राय साहब हर विलास शारदा के नेतृत्व में 28 सितम्बर 1929 को भारतीय शाही विधान परिषद में पारित बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 के तहत लड़कियों की शादी की उम्र 14 साल और लड़कों की 18 साल तय की गई। 1949 में, भारत की आजादी के बाद, इसे लड़कियों के लिए 15 और 1978 में लड़कियों के लिए 18 और लड़कों के लिए 21 कर दिया गया।
परन्तु आजादी के 75 वर्ष बाद भी भारत में अभी भी बाल विवाह जैसी कुप्रथा समाज में व्याप्त है। इसकी रोकथाम हेतु विवाह निमंत्रण पत्र पर वर-वधु की जन्म तारीख अंकित करने पर बल दिया जाए। विद्यालयों में बाल विवाह के दुष्परिणामों व इससे संबंधित विधिक प्रावधानों की जानकारी विद्यार्थियों को लघु फिल्म आदि के माध्यम से प्रदान की जाए। सामुहिक चर्चा से मिली जानकारी के आधार पर गांव मौहल्लों के उन परिवार में जहां बाल विवाह होने की सम्भावना हो समन्वित रूप से समझाइश हो।
यदि आवश्यक हो तो कानून द्वारा बाल विवाह रूकवाया जाए। ऐस व्यक्ति या समुदाय जो विवाह सम्पन्न कराने में सहयोगी होते है यथा हलवाई, बैण्ड बाजा, पंडित, बाराती, टेन्ट वाले, ट्रांसपोटर्स इत्यादि से बाल विवाह में सहयोग न करने का आश्वासन लेकर इसके कानूनी जानकारी प्रदान की जाए।
उन्होंने ने बताया कि बाल विवाह की प्रभावी रोकथाम के लिए जिला नियंत्रण कक्ष दूरभाष नम्बर 07462-220201 स्थापित कर तहसीलदार निर्वाचन लक्ष्मण मीना 9694157071 को जिला नियंत्रण कक्ष का प्रभारी एवं सरकारी पैरोकार विनोद शर्मा 9460914430 को सहायक प्रभारी नियुक्त किया है। उन्होंने बाल विवाह की रोकथाम हेतु नियंत्रण कक्ष के साथ-साथ चाईल्ड हैल्पलाईन नंबर 1098, 181 कॉल सेन्टर पर तथा पुलिस नियंत्रण कक्ष के 100 नम्बर पर कॉल कर कभी भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।