अपने अंगों का दान कर तीन जरूरतमंदों को जीवन दान देने वाली राधारानी के परिजनों का किया सम्मान
राधारानी पूरे प्रदेश में इतनी कम उम्र में अंगदान करने वाली पहली बालिका बनीं
देश में इंसान के कल्याण और सुख के लिए लोगों के त्याग और बलिदान के अनेक किस्से कहानियां सुनने को मिल जाती हैं। ऐसे ही समाज और लोगों के जीवन की रक्षा के लिए अपने अंगदान कर आज के समय में भी बहुत से लोग दूसरे लोगों की जिंदगियां बचा रहे हैं। इसी फहरिस्त में नाम जुड़ा है हमारे जिले के भगवतगढ़ कस्बे की 14 वर्षीय राधारानी का। राधारानी प्रदेशभर में सबसे कम उम्र में अपने अंग दान कर तीन लोगों की जिंदगी बचाने वाली बालिका हैं।
3 अगस्त से 17 अगस्त तक संचालित हो रहे अंगदान जीवनदान जागरूकता महाअभियान के तहत मैं प्रियंका दीक्षित डिस्ट्रिक्ट आईईसी काॅर्डिनेटर पहुंच गई राधारानी के घर भगवतगढ, उनके माता पिता से उनकी कहानी जानने। राधारानी के बाहर पहुंचते ही देखा घर के दरवाजे पर उसका नाम लिखा था, अंदर कदम रखते ही उसके माता पिता, दादा, दादी, चाचा चाची सब मेरे पास आकर बैठ गए। पिता तुरंत बेटी की यादों से जुड़ी अलमारी खोल उसकी फोटो, प्रशस्ति पत्र, मोमेन्टो, समाचार पत्रों की कटिंग आंसूभरी आंखों और कांपते हाथों से मुझे दिखाने लगे।
एक एक चीज को बडे प्यार और आस से संभालते हुए पूरी कहानी बताने लगे। आज 8 वर्ष बीत जाने पर भी उसका जिक्र जुबान पर आते ही माता पिता की आंखों में आंसू भर आते हैं। पिता पुरूषोत्तम ने बताया कि राधारानी वर्ष 2015 में छत से गिर गई थी। परिजन पहले उसे जिला अस्पताल सवाई माधोपुर लेकर पहुंचे जहां चिकित्सकों ने उन्हें सवाई मानसिंह अस्पताल जयपुर के लिए रैफर कर दिया। एसएमएस में चिकित्सकों ने राधारानी को ब्रेनडेड घोषित कर दिया। अस्पताल में ही मौजूद एक समाजसेवी संस्था के सदस्य ने राधारानी के पिता पुरूषोत्तम जांगिड से संपर्क किया और उनकी ब्रेनडेड बेटी के अंगों को किसी जरूरतमंद को दान करने के लिए बात की।
अपनी बेटी को उस हाल में देखकर राधारानी के माता – पिता अपनी सुधबुध खो बैठे थे। ऐसे में अंगदान का फैसला ले पाना उनके लिए आसान नहीं था। संस्था के प्रतिनिधियों ने राधारानी के माता – पिता की दो दिन तक काउंसलिंग की जिसके बाद वो अपनी बेटी की दोनों किडनियों और लिवर को दान करने के लिए सहमति दे दी। यह सवाई मानसिंह अस्पताल का पहला कैडेवर किडनी प्रत्यारोपण था। प्रत्यारोपण के लिए करीब बारह घंटे ऑपरेशन चला था। उनकी बेटी के दान किए अंगों से तीन जरूरतमंद लोगों को जीवनदान मिला। उसके पिता को गर्व है कि मेरी बेटी ने मरणोपरांत तीन व्यक्तियों को जीवनदान दिया। तीनों ही मरीज आज भी स्वस्थ हैं। अब वो दूसरों को भी जागरूक करते हैं कि वो अपने अंगों को दोन करने का संकल्प लें ताकि कई जरूरतमंदों की जान बचाई जा सके।
इस अंगदान के बाद राधारानी पूरे प्रदेश में इतनी कम उम्र में अंगदान करने वाली पहली बालिका बनीं। राधारानी तो चली गई पर जाते जाते अपने नाम को अमर कर गई। उसके माता पिता ने हिम्मत दिखाई और मानवता की मिसाल कायम कर दी। उनके मन में आज भी संतुष्टि है कि उनकी बेटी तो चली गई पर उसके दान दिए अंगों के जरिए आज भी वो जीवन्त है। राधारानी के नाम पर राज्य के सबसे बडे राजकीय चिकित्सालय एसएमएस में पोस्ट ट्रांसप्लांट वाॅर्ड का नाम रखा गया है साथ ही भगवतगढ सीएचसी का नाम बदलकर राधारानी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रखा गया है। आइए आप भी राधारानी और उनके परिवार की चलाई इस परिपाटी को आगे बढाने का संकल्प लें।
जिला स्तरीय स्वतंत्रता समारोह में राधारानी के माता पिता को जिला कलेक्टर सुरेश कुमार ओला व जिला पुलिस अधीक्षक हर्ष अगरवाला द्वारा प्रशस्ति देकर सम्मानित किया गया। मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. धर्मसिंह मीना ने बताया कि गुरूवार को अभियान का समापन जागरूकता रैली के माध्यम से किया गया। रैली को जिला कलेक्ट्रेट परिसर से अतिरिक्क्त जिला कलेक्टर जितेन्द्र सिंह नरुका ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, जो कि मुख्य मार्गों से होते हुए रेल्वे स्टेशन जाकर सम्पन्न हुई। इसके साथ ही जिला कलेक्ट्रेट में ही राधारानी के परिजनों व अभियान के दौरान अपने अंगों का दान करने के लिए सहमति देने वाले रामस्वरूप मीना का शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया।
एक व्यक्ति अपने शरीर के अंगों को दान करके 8 लोगों को जीवन दे सकता है। भागदौड़ भरी इस दुनिया में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो किसी बीमारी या अन्य वजह से अपने खास अंगों को खो देते हैं या उनके अंग खराब हो जाते हैं। ऐसे में समाज कल्याण और लोगों को नया जीवन देने की सोच के साथ बहुत से स्वस्थ लोग अपने जीते या मृत्यु के बाद अंगदान करके लोगों को एक नई जिंदगी देते हैं। अंगदान में शरीर के कुछ अंगों और ऊतकों को दान किया जा सकता है, जैसे कि अंगों में यकृत, गुर्दे, अग्नाशय, हृदय, फेफड़े और आंत को दान किया जाता है, जबकि ऊतकों में कॉर्निया (आंख का भाग), हड्डी, त्वचा, हृदय वाल्व, रक्त वाहिकाएं, नस और कुछ अन्य ऊतकों को भी दान किया जाता है।
उन्होंने बताया कि अंगदान दो तरह का होता है। पहला होता है जीवित अंगदान और दूसरा मृत्यु के बाद अंगदान। जीवित अंगदान में इंसान जीते शरीर के कुछ अंगों को दान कर सकते हैं, जिसमें एक गुर्दा दान में दिया जा सकता है। इसके अलावा अग्न्याशय का हिस्सा और लीवर का हिस्सा दान किया जा सकता है, क्योंकि लीवर समय के साथ फिर से विकसित हो सकता है। मृत्यु के बाद अंगदान में आंख, किडनी, लीवर, फेफड़ा, ह्रदय, पैंक्रियाज और आंत का दान किया जाता है। अंगदान में सिर्फ उम्र ही नहीं, बल्कि शरीर का स्वस्थ होना भी जरूरी है।
हालांकि, यह इस बात पर निर्भर होता है की अंगदान जीते किया जा रहा है या मृत्यु के बाद। 18 साल का कोई भी स्वस्थ व्यक्ति अंगदान कर सकता है, लेकिन शरीर के अलग-अलग अंगों के लिए उम्र सीमा भी अलग-अलग होती है, जो डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही दान किए जा सकते हैं।