अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के प्रतिष्ठित वैश्विक फेसबुक पटल पर “एक शाम : विज्ञान कविता के नाम” कवि सम्मेलन की द्वितीय कड़ी का सवाई माधोपुर से वर्चुअल आयोजन हुआ। कवि सम्मेलन में सभी ने विज्ञान पर आधारित कविताएं प्रस्तुत की। इस अवसर पर रुड़की, उत्तराखंड से सुरेंद्र कुमार सैनी, सुबोध पुंडीर, पंकज त्यागी, श्रीनगर उत्तराखंड से नीरज नैथानी, नई दिल्ली से सविता चड्ढा, सवाई माधोपुर से डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी और गाजियाबाद उत्तरप्रदेश से मधु मिश्रा और प्रज्ञान पुरुष पण्डित सुरेश नीरव ने शानदार काव्य पाठ किया।
कवि सम्मेलन का संचालन डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने किया तथा अध्यक्षता पंडित सुरेश नीरव ने की। डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ कवि सम्मेलन का शुभारंभ हुआ। पंकज त्यागी ने अपनी रचना स्वाद को नमकीन करना यूं तो इसका काम है पर रसायन में नमक का एन ए सी एल नाम है, प्रस्तुत की। सुबोध पुंडीर ने अपनी रचना तुम कुचलोगे, मुस्काऊँगी, जड़ काटोगे, लहराऊँगी मैं, हरी- भरी मखमली दूब, अपनी शर्तों पर ही मैं जीवन जीती हूँ , शिव की बेटी हूँ, घोर हलाहल पीती हूँ, प्रस्तुत की। मधु मिश्रा ने अपनी रचना में एक पदार्थ हूँ, दुनियां की प्रयोगशाला का, जिसे समय की टेस्ट ट्यूब में डालकर और समस्याओं के स्प्रिटलेंपकी लौ पर रखकर रोज उबाला जाता है, प्रस्तुत की। सुरेंद्र कुमार सैनी ने अपनी रचना जबसे मैंने दिल को समझा, तबसे मैने इतना माना, चार वाल्व से बना हुआ है, मुठ्ठी भर का दिल ये जाना, प्रस्तुत की। सविता चड्ढा ने अपनी रचना काश कोई ऐसा यंत्र बन पाए, जो देख सके, जान सके, दूसरों के मन का आकार छोटा है या है विशाल, प्रस्तुत की।
डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने कुछ दोहे प्रस्तुत करते हुए कहा अमृत दुग्ध-धौला लिए, बहती गंगा धार, पर मानव की दुष्टता, उसमें भरे विकार, मरते को जो मुक्ति दे, ऐसा निर्मल नीर, वह भी मैला कर दिया, कौन हरे यह पीर, मानव को उत्थान का, है अधिकार प्रचंड, पर नदियों को क्यों दिया, मैलेपन का दंड, प्रस्तुत की। नीरज नैथानी ने अपनी रचना कहने को हम पाती हैं, पर गिनती में ना आती हैं, सिर्फ दंश के किस्से हैं, हर शूल हमारे हिस्से हैं, झोंकों ने तनिक हिला दिया, तन को जरा सहला दिया। हम मस्ती में आ जाती हैं, हम इतने पर इतराती हैं। कहने को हम पाती हैं, पर गिनती में ना आती हैं।
अंत में कवि सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव ने अपनी रचना – परमाणु भी आदमी के चित्त की तरह त्रिगुणात्मक है, जिसका चलन और विचलन भी कलात्मक है, आदमी प्राणी है, परमाणु पदार्थ है, मगर दोनों का एक जैसा यथार्थ है, जबसे यह समानता आई है, संज्ञान में, मुझे दूरियां नहीं दिखती हैं, अध्यात्म और विज्ञान में। गुरुवार देर रात तक चले इस कवि सम्मेलन को हजारों लोगों ने देश और विदेश से अंत तक धैर्यपूर्वक सुना, सराहा और आनंद लिया।