संयोग हुआ है तो वियोग भी होगा यदि जन्म मिला है तो मृत्यु एवं उदय के साथ ही अस्त होना भी अवश्यंभावी है। लाभ-हानि, सुख-दुख, यह दोनों क्रियाएं परस्पर रूप से चलती रहती है लेकिन इन दोनों ही क्रियाओं में मानव को समता का भाव रखना चाहिए। परिस्थितियों का परिवर्तन होना एक स्वाभाविक क्रिया है अतः जीवन में हमेशा क्षमता का अभाव रखना चाहिए उक्त उद्गार विजय मती त्यागी आश्रम में गुरु भक्ति के दौरान दिगंबर जैन आचार्य विनीत सागर महाराज ने व्यक्त किए। आचार्य ने कहा कि वर्तमान में भारतीय संस्कृति में एक विकृति आ गई है किसी को भी आगे बढ़ता हुआ देख अन्य लोग उसको नीचे गिराने अर्थात टांग खिंचाई करने लगते हैं।
जिस प्रकार एक खुले बर्तन में कई केकड़ों को डाल दिया जाए तो उस बर्तन से बाहर कोई भी केकड़ा नहीं निकल पाता है क्योंकि उसे अन्य केकड़े अंदर की ओर खींचने लगते हैं यही सब मानव जीवन में घटित हो रहा है इन सब परिस्थितियों में जो बड़ी सावधानी और दृढ़ता के साथ जो आगे बढ़ता है वहीं सफल हो पाता है। आचार्य ने कहा कि कार्यकर्ताओं को भी समता भाव रखते हुए समाज की सेवा करनी चाहिए।
पिच्छिका परिवर्तन व वर्षा योग निष्ठापन कल आचार्य विनीत सागर वर्षा योग समिति से प्राप्त सूचना के अनुसार वर्षा योग निस्तापन में पीछे का परिवर्तन समारोह कामा के कोट ऊपर स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर के प्रांगण में दोपहर को आयोजित किया जाएगा। जिसमें सीकरी, पहाड़ी, बोलखेड़ा, जुरहरा, फिरोजपुर झिरका, कठूमर खेड़ली, डीग, नगर, भरतपुर, कोसीकला, होडल, पलवल, पुनहाना, हथीन, हसनपुर आदि जैन समाज के पदाधिकारियों के भाग लेने की संभावना है।