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नवाचार : लुप्त होती पाती लेखन विधा को पुनजीर्वित करने में प्रयासरत डॉ. नेगी

एक दौर था जब संदेशों का आदान प्रदान पत्रों के माध्यम से होता था। परदेश गए अपनों के पत्रों का बेसब्री से इंतजार हुआ करता था। इधर संचार क्रान्ति के पश्चात संदेश के इस माध्यम की महक जैसे फीकी पड़ने लगी। पिछले पन्द्रह-बीस वर्षों से मोबाईल क्रान्ति, उसके बाद सोशल मीडिया पर बढ़ती सक्रियता ने तो पत्र लेखन विधा को ग्रहण ही लगा दिया है। वैश्वीकरण के दौर में आज पूरी दुनिया जहां एक विलेज बन चुकी है, लेकिन यहां हरेक तन्हा है। पिछले दशक में सर्वाधिक प्रभाव यदि किसी पर हुआ है तो वह है हमारे अपनों के साथ संबंध। संबंधों में आए इस बिखराव को रोकने के लिए राजस्थान प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी और वर्तमान में अतिरिक्त जिला कलेक्टर सवाई माधोपुर डॉ. सूरज सिंह नेगी पाती लेखन विधा को जीवन्त बनाने और पुनजीर्वित करने का प्रयास कर रहे हैं।
डॉ. नेगी ने वर्ष 2018 में :पाती अपनों को” नाम से एक छोटे से अभियान की अलख लगाई, जिसमें आज देश-विदेश के 600 से अधिक प्रबुद्धजन एवं अनेक राज्यों में अध्ययनरत लगभग 6000 स्कूली बच्चे जुड़ चुके हैं। पढ़ने-सुनने में जरूर अविश्वसनीय लगे लेकिन यह हकीकत है। देश के प्रख्यात मैनेजमेन्ट गुरू एन. रघुरामन ने 3 फरवरी 2020 के मैनेजमेन्ट फंडा कॉलम में डॉ. नेगी की पाती मुहिम पर पूरा आर्टिकल लिखा।

Innovation Sawai Madhopur SDM Dr. Negi tried to revive the fading writing method

डॉ. नेगी के पाती लेखन मुहिम में उनका साथ दे रही है उनकी पत्नी डॉ. मीना सिरोला जो शिक्षा संकाय वनस्थली विद्यापीठ में एसोसिएट प्रोफेसर पद पर कार्यरत है। नेगी दम्पत्ति द्वारा चलाई गई इस विशेष एवं अनूठी मुहिम में अब तक अनेक अखिल भारतीय स्तर की पाती लेखन प्रतियोगिताएं सम्पन्न करवाई जा चुकी है, जिनमें “गुरु की पाती शिष्य को”, “पिता की पाती संतान को”, “माँ की पाती बेटी को”, “शिष्य की पाती गुरू को”, “संतान की पाती माता-पिता को”, “पत्र मित्रों को”, “प्रकृति की पाती मानव को”, “पत्र अपनो को”, “एक पाती दादा-दादी”, “नाना-नानी की यादों के नाम” प्रमुख है।
इसके अलावा टोंक जिले के टोडारायसिंह में अप्रैल 2019 में 125 स्कूली बच्चों से बाल-विवाह की रोकथाम के लिए माता-पिता के नाम पत्र लिखवाकर उन तक पहुंचाए गए। मई 2019 में 350 स्कूली बच्चों द्वारा मताधिकार मेरा अधिकार-क्यों करें इससे इन्कार विषय पर अपने अभिभावकों को पत्र लिखे गए।
नवम्बर 2019 में 600 स्कूली बच्चों ने “सिंगल यूज पॉलिथीन को नो” तथा “जल संरक्षण” पर पत्र लिखकर अभिभावकों तक पहुंचाया गया।
सरवाड़ एसडीएम रहते हुए 14 फरवरी 2018 को वैलेन्टाईन डे के अवसर पर “माँ तुम कैसी हो” विषय पर पाती लेखन करवाया गया जिसमें सरकारी कार्मिक से लेकर व्यवसायी, स्कूली बच्चे, राजनेता शामिल हुए। लगभग 500 प्रतिभागियों को माँ के नाम पत्र लिखते समय भावुक होता हुआ देखा गया।
नवम्बर 2018 में एडीएम बूंदी के पद पर तैनात डॉ. नेगी ने बूंदी महोत्सव के दौरान “मैं बूंदी हूं” विषय को केन्द्र में रखकर पत्र लिखवाये। इन पत्रों के माध्यम से आमजन को बूंदी के इतिहास, कला, सांस्कृति-साहित्य से रूबरू होने का मौका मिला।
पाती मुहिम के शीर्षक “पाती अपनो को” के बारे में पूछने पर उन्होंने अवगत कराया कि आज के दौर में सर्वाधिक कठिन काम यदि है तो वह है अपनों को समझना, एक छत के नीचे रहते बरसों बीत जाते हैं लेकिन एक-दूसरे की भावनाओं, दिल की पुकार को नहीं समझ पाते, आज रिश्ते नाम-मात्र के रह गए है। वहीं अपनापन और आत्मीयता तो जैसे है ही नहीं। ऐसे में अपनी भावनाओं को सम्प्रेषित करने का एक सशक्त माध्यम है पत्र लेखन।
परिणाम बहुत सुखद रहे हैं, आज अनेक लोग अपने बच्चों को प्रतिदिन एक पत्र लिखने लगे हैं, जन्म दिवस पर दिए जाने वाले महंगे गिफ्ट के स्थान पर अब पत्र दिए जाने लगे है, जिन स्कूली बच्चों ने कभी पोस्ट कार्ड, लिफाफे-अन्तर्देशीय पत्र नहीं देखे वह प्रत्येक पाती प्रतियोगिता में पत्र लिख रहे हैं। टोडारायसिंह के 35 स्कूलों के 1500 बच्चों ने अपनो के नाम फरवरी 2020 में पत्र लिखे, जिनमें से 91 पत्रों का संकलन “बच्चों के पत्र” नाम से पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है। सात समन्दर पार से पत्र प्राप्त होने लगे है।
खास बात यह है कि प्रत्येक प्रतियोगिता में शामिल पत्रों का मूल्यांकन विशेषज्ञों से करवाया जाता है। प्रत्येक प्रतिभागी को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है और चयनित पत्रों की पुस्तक प्रकाशित करवाई जाती है। अब तक “माँ की पाती बेटी के नाम” “पत्र पिता के” बच्चों के पत्र नाम से पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, “पाती मित्र को” एवं “प्रकृति की पुकार” पुस्तके प्रकाशनाधीन है।
साहित्य को समर्पित डॉ. नेगी पत्र विधा को जीवन्त बनाने के अलावा डॉ. नेगी साहित्य धर्मी भी है। अब तक “पापा फिर कब आओगे” कहानी संग्रह के अतिरिक्त रिश्तों की आंच”, “वसीयत”, “नियति चक्र”, “ये कैसा रिश्ता” शीर्षक से उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। रिश्तों की आंच का उर्दू में एवं नियति चक्र का अनुवाद राजस्थानी भाषा में हो चुका है। ये कैसा रिश्ता का अनुवाद अन्य भाषाओं में हो रहा है। सृजन के लिए राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त कर चुके डॉ. नेगी की रचनाओं के केन्द्र में आम व्यक्ति, जीवन मूल्य, मानवीय संवेदनाएं, प्रकृति चित्रण प्रमुख है।
डॉ. नेगी की रचनाओं पर विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हो रहा है, हाल ही में रेनू बाला, रोहतक (हरियाणा) द्वारा लिखित डॉ. सूरज सिंह नेगी की रचनाओं के विविध पहलू शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित हुई है।

शिक्षा में नवाचार पर जोर:- डॉ. नेगी ने टोंक एवं अजमेर में कार्यरत रहते हुए अनेक विद्यालयों को न सिर्फ गोद लिए अपितु उनमें कई नवाचार भी करवाएं जिनमें, स्टार ऑफ द क्लास, स्टार ऑफ द स्कूल, “मेरा कोना सबसे अच्छा”, “आओ पेड़ गोद ले”, “एक दिन मेहमान का”, “आओ लेख सुधारे”, “मेरी अभिरूचि” प्रमुख रहे। बूंदी जिले में भी यह नवाचार करवाएं गए। इन्ही नवाचारों को सवाई माधोपुर जिले सहित प्रदेश में करवाने के इच्छुक डॉ. नेगी बालकों के अंदर छिपी प्रतिभा एवं सृजन क्षमता को सामने लाने के लिए विभिन्न विधाओं के माध्यम से प्रयासरत है।

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