नई दिल्ली:- आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर के एक लेख में भाजपा को बहुमत से दूर रहने के कारणों का विश्लेषण किया गया है।भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा आम चुनाव – 2024 के लिए 400 पार का नारा दिया गया था। हालांकि, नतीजों में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया है। बीजेपी को 240 सीटें ही मिली है। आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर में बीजेपी की हार का विश्लेषण किया गया है।
रतन शारदा ने अपने लेख में लिखा है कि, “अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं होने की एक वजह बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं का अति आत्मविश्वास बताया गया है। इस लेख में यह भी कहा गया कि पार्टी को अब खुद में कई सुधार करने की जरूरत है।
बीजेपी और संघ के संबंधों पर डाला प्रकाश:-
आरएसएस के सदस्य रतन शारदा ने अपने लेख में बीजेपी और संघ के संबंधों पर भी बात की है। उन्होंने कहा कि, “मैं इस आरोप का जवाब देना चाहता हूं कि इस चुनाव में आरएसएस ने बीजेपी के लिए काम नहीं किया है। मैं साफ-साफ कह दूं कि आरएसएस बीजेपी की कोई फील्ड फोर्स नहीं है।
वास्तव में दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के पास अपने कार्यकर्ता हैं। मतदाताओं तक पहुंचना, पार्टी का एजेंडा समझाना, साहित्य और वोटर कार्ड बांटना आदि जैसे नियमित चुनावी काम उसी की जिम्मेदारी है। आरएसएस लोगों को उन मुद्दों के बारे में जागरूक करता रहा है, जो उन्हें और देश को प्रभावित करते हैं।
आरएसएस ने नहीं की बीजेपी की मदद:-
उन्होंने अपने लेख में आगे कहा कि 1973-1977 के दौर को छोड़कर आरएसएस ने सीधे राजनीति में हिस्सा नहीं लिया है। वह एक असाधारण दौर था और उस चुनाव में लोकतंत्र की बहाली के लिए कड़ी मेहनत की गई थी। 2014 में आरएसएस ने 100 प्रतिशत मतदान का आह्वान किया था। इस अभियान में मतदान प्रतिशत में सराहनीय वृद्धि हुई और सत्ता में बदलाव हुआ।
इस बार भी यह निर्णय लिया गया कि आरएसएस कार्यकर्ता 10-15 लोगों की छोटी-छोटी स्थानीय, मोहल्ला, भवन, कार्यालय स्तर की बैठकें आयोजित करेंगे और लोगों से मतदान करने का अनुरोध करेंगे। इसमें राष्ट्र निर्माण, राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रवादी ताकतों को समर्थन के मुद्दों पर भी चर्चा की गई। अकेले दिल्ली में ही 1 लाख 20 हजार ऐसी बैठकें हुई हैं।
सांसदों और मंत्रियों की आलोचना की:-
लेख में बीजेपी सांसदों और मंत्रियों की भी आलोचना की गई है। शारदा ने कहा है कि, “बीजेपी या आरएसएस के किसी भी कार्यकर्ता और आम नागरिक की सबसे बड़ी शिकायत स्थानीय सांसद या विधायक से मिलना मुश्किल या असंभव होना है।
मंत्रियों की तो बात ही छोड़ दीजिए। उनकी समस्याओं के प्रति असंवेदनशीलता एक और आयाम है। बीजेपी के चुने हुए सांसद और मंत्री हमेशा व्यस्त क्यों रहते हैं। वे अपने निर्वाचन क्षेत्रों में कभी दिखाई क्यों नहीं देते। संदेशों का जवाब देना इतना मुश्किल क्यों है।
(सोर्स : डीएनए/एबीपी न्यूज)