दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चमत्कारजी आलनपुर में चातुर्मास कर रहे समताशिरोमणि, अध्यात्मयोगी, बालयति, प्रवचन केसरी-आचार्य सुकुमालनंदीजी ने प्रवचन के दौरान श्रावकों को सम्बोधित करते हुए कहा कि व्यक्ति को अपनी शक्ति का सदुपयोग कर दान-धर्म बिना अभिमान के करना चाहिए।
आचार्य ने जिनवाणी के सार को अपनाते हुए प्राणी मात्र के प्रति दया का भाव रखने पर जोर दिया। आचार्य ने धर्म और संस्कारों से जुड़कर संयम धारण करने के लिए लोगों को प्रेरित किया। साथ ही धर्म सभा के मंच पर विराजित मुनि सुनयनंदीजी एवं ऐलक सुलोकनंदीजी ने भी लोगों को उपदेश देकर धर्म की राह पर चलने की बात कही।
चातुर्मास समिति के प्रचार-प्रसार मंत्री प्रवीण कुमार जैन ने बताया कि श्रावकों से खचाखच भरे वर्षायोग पांडाल में चारित्र चक्रवर्ती आचार्य शांतिसागरजी के समाधी दिवस पर उन्हें विनयांजलि अर्पित की गई। आचार्य सुकुमालनंदी ने उनके जीवन पर प्रकाश डाला और गुणानुवाद करते हुए कहा कि वह एक प्रसिद्ध चिंतक, रत्नत्रय के धारी चारित्र चक्रवर्ती, तपस्वी मुनियों के मार्ग को प्रशस्त करने वाले दिगम्बर जैनाचार्य थे। मुनि धर्म मार्ग को गौरवान्वित करने में उनका योगदान अविस्मरणीय है। उनके जीवन आदर्शों को आत्मसात् करते हुए संयम के मार्ग पर चलने के लिए लोगों को प्रेरित किया और रत्नत्रय की पालना कर जीवन का उत्थान करने की बात कही।
जैन ने बताया कि सोमवार सांय आयोजित कार्यक्रमों के दौरान वर्षायोग समिति के पदाधिकारियों के सानिध्य में सुकुमाल एकता मंच के सदस्यों द्वारा आत्मशुद्धि के पर्व पर्युषण के बैनर का विमोचन किया और दसलक्षण महोत्सव के तहत आयोजित होने वाले दैनिक धार्मिक एवं समाज के विभिन्न संगठनों के तत्वावधान में होने वाले प्रेरणास्पद विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों की जानकारी प्रदान की गई। इस अवसर पर आचार्य द्वारा धर्म आराधनापूर्वक पर्युषण पर्व मनाने के लिए लोगों को प्रेरित किया गया।
सांयकाल आयोजित धार्मिक जिज्ञासा समाधान कार्यक्रम में सभी आयुवर्ग के लोगों ने बहुत ही उत्साह के साथ भाग लेकर धर्म सम्बन्धी अपनी जिज्ञासाओं का समाधान पाकर धर्म लाभ लिया। साथ ही धार्मिक प्रश्न मंच के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया।