साहित्य अकादमी भवन नई दिल्ली में आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में हुआ सृजन पर्व का आयोजन
समाज सेवी, साहित्यकार एवं राजनीतिज्ञ डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी को पंडित दामोदर दास चतुर्वेदी सृजन साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया है। साहित्य शिरोमणि, पत्रकार एवं स्वतंत्रता सैनानी पंडित दामोदर दास चतुर्वेदी की 112वीं जयंती के अवसर पर आजादी का अमृत महोत्सव के तहत अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वाधान में भारत सरकार के साहित्य अकादमी भवन नई दिल्ली में आयोजित सृजन पर्व में डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी को यह प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान अंतरराष्ट्रीय समाज विज्ञानी एवं सुलभ आंदोलन के जनक पद्मभूषण डॉ. विन्देश्वर पाठक तथा समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव द्वारा प्रदान किया गया।
इस कार्यक्रम का अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के वैश्विक पटल से सीधा प्रसारण भी किया गया। हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार, पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी साहित्य शिरोमणि कीर्तिशेष स्वर्गीय पंडित दामोदर दास चतुर्वेदी का जन्म बिहार की शस्य -श्यामला भूमि मलयपुर में 12 अगस्त 1910 को एक साहित्यिक परिवार में हुआ। यह वह दौर था जब लोगों की परवरिश संयुक्त परिवार में हुआ करती थी। उल्लेखनीय है यहीं अपने चाचा हास्य रसावतार पंडित जगन्नाथ प्रसाद चतुर्वेदी की छत्रछाया में बालक दामोदर ने बचपन से ही ब्रज भाषा में कवित्त रचने शुरू कर दिए। यह इतिहास का वह दौर था जब भारत गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए कसमसाने लगा था।
किशोर बालक के मन में भी देशभक्ति हिलोरें लेने लगी और वह अपने भाइयों और बहनों के साथ प्रतिदिन मुहल्लों के युवक-युवतियों के साथ प्रभात फेरी निकालने लगे। कुछ करने की ललक के आगे मलयपुर का आकाश इनके लिए छोटा पड़ने लगा था और इधर सन् 1921-1922 में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन तीव्र हो रहा था। आचार्य कृपलानी, शौकत अली और राजेन्द्र बाबू जैसे तपस्वी नेताओं ने जनमानस में स्वतंत्रता का शंख फूंक दिया था। सरकारी कार्यालय, विद्यालय सभी वीरान हो गये और सभी लोग अपने-अपने ढंग से ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़े हो गये।
इसी बीच किशोर युवक दामोदर दास चतुर्वेदी को कलकत्ते (आज का कोलकाता) से प्रकाशित होने वाले प्रमुख साहित्यिक पत्र ‘विशाल भारत’ के संपादन मंडल से जुड़ने का अवसर मिला और यह किशोर दामोदर मलयपुर से कोलकाता चले आए। कोलकाता स्वयं उन दिनों साहित्य और स्वतंत्रता सेनानियों का प्रमुख गढ़ बन गया था। देश बंधु चितरंजन दास कलकत्ते के पहले मेयर और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस कलकत्ता कार्पोरेशन के सीईओ हुआ करते थे जो बाद में स्वयं भी मेयर बने। यहां रहकर दामोदर दास चतुर्वेदी ने बांग्ला भाषा का खूब अध्ययन किया और फिर नेताजी सुभाषचंद्र बोस के भी संपर्क में आए। “विशाल भारत” के कार्यकाल में मैथिलीशरण गुप्त से लेकर रामधारी सिंह दिनकर सभी का इन्हें निकट सान्निध्य मिला।
क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण आपका काफी समय भटकाव में भी बीता। “विशाल भारत” के प्रकाशन के बंद होने के बाद आपको आगरा से निकलने वाले दैनिक समाचार पत्र “सैनिक” से आमंत्रण मिला और आप कलकत्ता से आगरा चले आए। जहां सैनिक के साथ-साथ आप नोंकझोंक हास्य पत्रिका से भी संबद्ध रहे। इसी बीच आपको ग्वालियर से निकलने वाले शासकीय पत्र “जयाजी प्रताप” से आमंत्रण मिला और आप ग्वालियर चले आए। मध्यप्रदेश बनने के बाद में मध्यप्रदेश सरकार ने इस समाचार पत्र को अधिग्रहीत कर लिया और इस तरह “जयाजी प्रताप” का नाम “मध्यप्रदेश संदेश” हो गया। यहां रहते हुए मध्यप्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग की पत्रिका “प्रगति” और “ग्राम सुधार” के संपादन मंडल से आप सेवानिवृत्त होने तक जुड़े रहे। उल्लेखनीय है कि ग्वालियर में रहते हुए ही आप हैदराबाद की प्रतिष्ठित हिंदी पत्रिका “कल्पना” को भी अपना नियमित लेखकीय सहयोग देते रहे।
बांग्ला के प्रसिद्ध कथाकार ताराशंकर वंदोपाध्याय की कहानियों के अनुवाद की श्रृंखला इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। आपकी अनेक कृतियां प्रकाशित हुईं जिनमें प्रमुख हैं मेघ मल्हार, प्रतिनिधि बांग्ला कहानियां,चंदा मामा, लक्ष्मी स्तवन,कल्लोलिनी, कौमी तराना,ढहते कगारे-उन्मत्त लहरें और गांधी गीता काव्य आदि। एक कर्मयोगी साधक की तरह 76 वर्ष की उम्र में “सीतायन” महाकाव्य लिखते-लिखते मां भारती के यह अविश्रांत साधक देवलोक गमन कर गए। भारत सरकार के साहित्य अकादमी भवन नई दिल्ली में आयोजित गत शुक्रवार देर रात तक चले इस सृजन पर्व कार्यक्रम में देश के अनेक लब्ध प्रतिष्ठित कवियों ने काव्य पाठ किया एवं देश की अनेक विभूतियों को अलंकृत भी किया गया।
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