राजधानी जयपुर सहित पूरा राजस्थान भीषण गर्मी से झुलस रहा है। 25 मई से सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश कर रहा है, जिसके साथ ही नौतपा का आगाज होगा। इस दौरान गर्मी प्रचंड रहेगी और पारा 48 डिग्री के भी पार जा सकता है। हालांकि मान्यता है कि नौतपा में जितनी तेज गर्मी पड़ती है, आगे मानसून उतना ही सक्रिय रहता है। इसी वजह से नौतपा को मानसून का गर्भकाल भी माना जाता है।प्रदेश में गर्मी ने लोगों के पसीने छुड़ा दिए हैं। लोग घरों से बाहर निकलने से कतराने लगे हैं और अब नौतपा में सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी और कम हो जाएगी। इस कारण सूर्य देव की तपिश ज्यादा महसूस होगी। इस भौगोलिक घटना को ज्योतिष शास्त्र के अनुसार आगामी मानसून सीजन के नजरिए से भी देखा जाता है। ज्योतिष आचार्य और संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति विनोद शास्त्री ने बताया कि 25 मई से नौतपा शुरू हो रहा है। सुबह 3:17 से सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आएगा। जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में आता है, तब नौतपा शुरू होता है और नाम से ही स्पष्ट है 9 दिन तक सूर्य की तेज तपिश रहती है। इस बार 2 जून तक नौतपा रहेगा. इन 9 दिनों में सूर्य यदि तेज तपता है तो उस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होती है और संवत भी अच्छा होता है।
ऐसे होता है महत्वपूर्ण:-
इन 9 दिन को 15-15 दिन का एक पक्ष माना जाता है। ज्योतिषाचार्य ने बताया कि उत्तर भारत में साढ़े चार महीने का वर्षा ऋतु का काल होता है। नौतपा में यदि पहले दिन सूर्य तपता है तो आषाढ़ महीने के पहले 15 दिन अच्छी वर्षा की संभावना होती है। दूसरे दिन यदि सूर्य तपता है तो आषाढ़ महीने के दूसरे पक्ष में भी अच्छी वर्षा की संभावना होती है। इसी क्रम में आगे सावन, भाद्रपद और आश्विन महीने के दोनों पक्षों का वर्षा कालखंड रहता है, इसलिए नौतपा बहुत महत्वपूर्ण होता है। उन्होंने रोहिणी नक्षत्र को ब्रह्म स्वरुप बताते हुए कहा कि जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र पर आता है तो ज्योतिषविद् और किसान भी संवत फलादेश का अनुमान लगाते हैं। जिस दिन वर्षा या आंधी आ जाती है, उस दिन का आकलन पक्ष अनुसार करते हुए ये मान लिया जाता है कि वर्षा नहीं होगी। यदि बारिश हुई तो वो अति वृष्टि होगी, जो किसानों के लिए अहितकारी साबित होगी। ज्योतिषाचार्य योगेश पारीक ने बताया कि यदि नौतपा के मध्यकाल में वर्षा का संकेत हो या तूफान आए तो आगे खंडवृष्टि और अकाल पड़ने की भी संभावना होती है। साथ ही उन्होंने बताया कि नौतपा के दौरान भगवान शिव की पूजा करने और जल अर्पित करने का भी महत्व होता है। इसी दौरान सहस्त्रघट, जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक भी होता है। इसी वजह से सनातन धर्म में ज्योतिष और देवी देवताओं को जोड़कर भूमिका बनाई गई।
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