राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों की सूची को देखने से साफ जाहिर है कि भाजपा में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और कांग्रेस में मौजूदा सीएम अशोक गहलोत का दबदबा है। यदि भाजपा को बहुमत मिलता है तो वसुंधरा राजे और कांग्रेस को बहुमत मिलने पर अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री होंगे। दोनों नेता अपने अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में सफल रहे हैं। चुनाव परिणाम के बाद विधायकों के बीच शक्ति प्रदर्शन होता है, तो भाजपा में राजे और कांग्रेस में गहलोत को भी सफलता मिलेगी। मौजूदा समय में ये दोनों नेता अपने जिन समर्थकों को टिकट नहीं दिलवा सके हैं, उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ने की छूट दे दी है। इन दोनों नेताओं को पता है कि यदि कोई निर्दलीय उम्मीदवार विधायक बनता है तो लौट कर उन्हीं के पास आएगा। प्रदेश की जनता खासकर भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं ने देखा है कि पिछले पांच वर्ष में वसुंधरा राजे ने भाजपा हाईकमान के सामने शक्ति प्रदर्शन के सिवा कोई काम नहीं किया। चाहे धार्मिक यात्राएं और या फिर जन्मदिन का अवसर। राजे ने यही दिखाने की कोशिश की कि प्रदेश में वे ही भाजपा की सबसे बड़ी नेता है। विधानसभा में भाजपा विधायक दल के नेता गुलाबचंद कटारिया को सबक सिखाने के लिए राजे समर्थक 20 विधायकों ने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष को पत्र भी लिखा। इस पत्र में विधानसभा में कटारिया पर भेदभाव करने का आरोप लगाया।
एक बार तो इन विधायकों के पत्र से खलबली मची लेकिन फिर थोड़े ही दिन में मामला शांत हो गया। जिन विधायकों ने कटारिया के खिलाफ खत लिखा उनमें से अधिकांश को उम्मीदवार बना दिया गया है। इसके अलावा गत चुनाव में पराजित राजे समर्थक नेताओं को इस बार फिर से उम्मीदवार बनाया गया है। राजे को भी पता है कि 200 में से 125 से भी ज्यादा उम्मीदवार उनके पक्के समर्थक हैं। भाजपा का हाईकमान माने या नहीं, लेकिन केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुनराम मेघवाल, कैलाश चौधरी आदि अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में विफल रहे हैं। भाजपा के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी तो चुपचाप तमाशा देख रहे हैं। अपने समर्थक उम्मीदवारों की वजह से वसुंधरा राजे इन दिनों बेहद उत्साहित हे इसलिए प्रदेश भर का दौरा कर अपने समर्थकों को जिताने में लगी हुई है। भाजपा ने भले ही वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित न किया हो, लेकिन आज भी प्रदेश के नेताओं में वसुंधरा रो का चेहरा सबसे बड़ा है।
लगातार शक्ति प्रदर्शन के बाद भी वसुंधरा राजे अपने समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में सफल रही हैं। यही वजह हे कि जब परिणाम के बाद निर्वाचित विधायकों की बैठक होगी तो इस बैठक पर नियंत्रण राजे का ही होगा। यदि राजे के नियंत्रण को कमजोर करने की कोशिश की गई तो फिर भाजपा को बगावत का सामना करना पड़ सकता है। भाजपा में जो वसुंधरा राजे की है वही स्थिति कांग्रेस में अशोक गहलोत की है। गहलोत ने भी अपने अधिकांश समर्थकों को उम्मीदवार बनाने में सफलता हासिल कर ली है। शांति धारीवाल को कोटा से उम्मीदवार बनाए जाने के बाद गत वर्ष 25 सितंबर वाली बगावत का असर भी खत्म हो गया है। जयपुर के हवा महल से भले ही महेश जोशी का टिकट कट गया हो, लेकिन जोशी ने भी घोषित उम्मीदवार आरआर तिवारी का समर्थन कर दिया है । देर सवेर अजमेर उत्तर से आरटीडीसी के अध्यक्ष धर्मेन्द्र राठौड़ भी कांग्रेस के घोषित उम्मीदवार महेंद्र सिंह रलावता का समर्थन कर देंगे।
महेश जोशी हो या धर्मेन्द्र राठौड़ इन दोनों को पता है कि यदि कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री होंगे आरैर फिर गहलोत के शासन में उनकी किसी मंत्री से भी ज्यादा चलेगी। कांग्रेस का हाईकमान भले ही 25 सितंबर 2022 की घटना को लेकर गहलोत से नाराज हो, लेकिन उम्मीदवार तो गहलोत की सिफारिश से ही तय हुए हैं। इसे गहलोत की चतुराई ही कहा जाएगा कि 20-25 पायलट समर्थकों के टिकट क्लीयर करवा कर 135 से भी ज्यादा स्वयं के समर्थकों को उम्मीदवार बना दिया है। यदि कांग्रेस को बहुमत मिलता है तो निर्वाचित विधायक मुख्यमंत्री के नाम पर गहलोत का ही चयन करेंगे। कांग्रेस में मुख्यमंत्री के चयन का अधिकार निर्वाचित विधायक हाईकमान को देते रहे हैं, इस बार कांग्रेस की इस परंपरा को गहलोत ने गत वर्ष 25 सितंबर को तोड़ दिया था। परिणाम के बाद जरूरत होगी तो गहलोत के समर्थक विधायक एक बार फिर कांग्रेस की इस परंपरा हो को तोड़े देंगे। (एसपी मित्तल, ब्लॉगर)