मीडिया घरानों ने चुनाव परिणाम का जो अनुमान लगाया है उसमें राजस्थान में भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर बताई जा रही है। 2003 और 2013 में अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते हुए जब चुनाव हुए तब मतगणना से पहले मीडिया के एग्जिट पोल में भाजपा की एक तरफा जीत और कांग्रेस की हार बताई गई। लेकिन 2023 में एग्जिट पोल में कांग्रेस की जीत भी बताई जा रही है। हालांकि कई एग्जिट पोल ने भाजपा को पूर्ण बहुमत दिया जा रहा है। ऐसे में राजस्थान में दोनों ही प्रमुख दल सरकार बनाने के दावे कर रहे हैं। कांग्रेस में सरकार बनाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सक्रिय नजर आ रहे हैं तो 1 दिसंबर को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपनी सक्रियता दिखाई है। राजे ने संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों से मुलाकात की तो राज्यपाल कलराज मिश्र से भी मुलाकात की।
अभी यह पता नहीं चला है कि राजे की ये मुलाकातें भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व के निर्देश पर हुई है या फिर राजे ने अपने स्तर पर निर्णय लेकर मुलाकातें की हैं। लेकिन राजे की इन मुलाकातों को राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। हालांकि भाजपा में प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह और प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी की भूमिका महत्वपूर्ण है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री राजे ने जिस तरह से सक्रियता दिखाई है उससे भाजपा में चर्चाएं व्याप्त हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी ने एक बार फिर दावा किया है कि भाजपा को 135 सीटें मिलेंगी। यदि भाजपा का यह दावा 3 दिसंबर को सच होता है तो फिर मुख्यमंत्री का निर्णय राष्ट्रीय नेतृत्व की सहमति से ही होगा। लेकिन यदि भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो फिर जोड़ तोड़ की राजनीति करनी पड़ेगी। ऐसे में वसुंधरा राजे की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
राजे दो बार प्रदेश की सीएम रह चुकी हैं। ऐसे में उनका अपना राजनीतिक अनुभव है। लेकिन यह सच है कि इस बार बीजेपी ने सीएम के लिए वसुंधरा राजे का चेहरा घोषित नहीं किया। जबकि पूर्व के चुनावों में राजे को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया गया था। राजे को भले ही मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न किया गया हो, लेकिन टिकट वितरण में राजे की राय को प्राथमिकता दी गई। हालांकि कुछ लोगों को आशंका थी कि टिकट वितरण के समय राजे का विरोध देखने को मिलेगा। लेकिन राजे ने न केवल टिकट वितरण पर संतोष जताया बल्कि प्रदेश भर में चुनाव प्रचार भी किया। चुनावी सभाओं में राजे ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। सभी सभाओं में राजे ने कहा कि हम सबका लक्ष्य है कि 2024 में नरेंद्र मोदी को तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनाया जाए।
राजे ने चुनावी सभाओं में जिस तरह से पीएम नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की उससे प्रतीत हुआ कि राष्ट्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे के बीच विवाद कम हुआ है। सब जानते हैं कि 2018 के चुनाव परिणाम के बाद राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, लेकिन राजे ने कभी भी राष्ट्रीय राजनीति में रुचि नहीं दिखाई। राजे पूरे पांच साल राजस्थान की राजनीति में ही सक्रिय रहीं। प्रादेशिक नेतृत्व से तालमेल नहीं होने के कारण राजे ने अपने जन्मदिन के मौके पर कई बार शक्ति प्रदर्शन किया। धार्मिक यात्राएं निकाल कर भी अपनी ताकत दिखाई। भाजपा को बहुमत मिलने पर कौन मुख्यमंत्री बनेगा यह अभी तय नहीं है। भाजपा के नेताओं का कहना है कि मुख्यमंत्री का निर्णय विधायक दल की बैठक में होगा। (एसपी मित्तल, ब्लॉगर)