देश के आम लोगों के लिए ट्रेन यात्रियों के लिए सबसे सुगम तथा कम खर्चे का साधन है। लेकिन वर्तमान में आम जनता के लिए इसमें यात्रा करना किसी युद्ध को जीतने से कम नहीं है। लोगों का कहना है कि केन्द्र सरकार ने पहले रेलवे में चलने वाली लाॅकल ट्रेनों को बन्द कर दिया। फिर ट्रेनों में लगने वाले सामान्य डिब्बों को भी धीरे-धीरे कम किया गया और अब धीरे -धीरे कई गाड़ियों से जनरल बोगी हटा दी गई हैं।
ऐसे में लम्बी दूरी की गाडियों में भीड़ के कारण यात्री भेड़-बकरियों की तरह यात्रा करने को मजबूर हैं। इन गाडियों में आरक्षण कोटा खुलते ही भर जाता है मजबूरन प्रति दिन यात्रा करने वाले यात्रियों को जनरल बोगी या रिजर्वेशन में टीटी से सेटिंग करके उनके रहमोकरम पर यात्रा करनी पड़ती है। जनरल बोगियों में तो इतनी भीड़ होती है कि टायलेट में भी जगह नहीं बचती। आदमी धक्के खाता ही रहता है। ट्रेनों के जनरल डिब्बों में परिवार के साथ महिलाओं और बच्चों के साथ यात्रा करना किसी बूरे स्वप्न जैसा लगता है।
किसी का परिवार बिछड़ जाता है। किसी का सामान छूट जाता है। किसी की जेब कट जाती है। पर इन सामान्य यात्रियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। आम लोगों का कहना है कि टिकट जारी होने पर बैठने की व्यवस्था तो होनी चाहिए। लम्बी दूरी की गाड़ियों में सामान्य श्रेणी के डिब्बे एक या डेड़ ज्यादा से ज्यादा होते हैं वो भी खचाखच भरे होते हैं।
लोगों का कहना है कि यदि रेलवे प्रशासन चाहे तो जनरल बोगी 2 की जगह 6 कर दे साथ ही आगे पीछे व मध्य में लगाये तो आम लोगों को यात्रा में सुगमता रहेगी। एक दूसरा उपाय मांगते ही रिजर्वेशन उपलब्ध होना चाहिए इसमें भी कोच बढाये जा सकते हैं। देश के सामान्य वर्ग की आखिर कौन सोचेगा। रेल्वे भी तत्काल कोटे के नाम पर दुगनी से तीन गुनी रकम वसूल कर आम लोगों की मजबूरी का फायदा उठाता है।