रणथंभौर बाघ परियोजना की बाघिन ऐरोहेड (टी-84) के गले में गत 13 जुलाई को कैमरा ट्रैप में सेही का कांटा लगा हुआ पाया गया था। बाघिन ऐरोहेड के लगभग दो माह के तीन शावक है। बाघिन एवं शावकों के स्वास्थ्य को मध्यनजर रखते हुए रणथंभौर बाघ परियोजना के वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. सीपी मीना एवं वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. राजीव गर्ग, राजकीय पशु चिकित्सालय के अनुसार बाघिन ऐरोहेड को बेहोश कर कांटा निकालना अत्यंत आवश्यक था। जिस पर कार्यवाही हेतु मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक रणथंभौर बाघ परियोजना टी.सी. वर्मा ने मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक राजस्थान से अनुमति भी मांगी थी। एम. एल. मीणा मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक राजस्थान द्वारा एन. टी.सी.ए. नई दिल्ली तथा भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के अधिकारियों से विचार विमर्श पर गत 16 जुलाई को बाघिन ऐरोहेड (टी-84) को बेहोश कर आवश्यक उपचार करने की अनुमति दी गई थी। जिस पर अनुमति के अनुसार क्षेत्र निदेशक की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया।
जिसमें महेंद्र शर्मा, उप वन संरक्षक, सुमित बंसल उप वन संरक्षक पर्यटन, वरिष्ठ पशु चिकित्सक डॉ. सी.पी. मीणा, डॉ. राजीव गर्ग, दौलत सिंह शक्तावत सेवानिवृत्त उप वन संरक्षक, अभिषेक भटनागर, डब्ल्यू.डब्ल्यू.एफ के प्रतिनिधि एवं ओम सैनी सरपंच शेरपुर को सदस्य नामित किया गया। भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के डॉ. पराग निगम भी विशेष आमंत्रित सदस्य नियुक्त किए गए। गत 16 जुलाई को बाघिन को ढूंढने के प्रयास किया गया लेकिन बाघिन ऐरोहेड नहीं मिली। आज रविवार को को पुनः बाघिन की झालरा वन क्षेत्र में तलाश की गई। तलाश करने पर बाघिन ऐरोहेड पूर्णतः स्वस्थ मिली। टी.सी. वर्मा क्षेत्र निदेशक ने बताया की बाघिन ऐरोहेड के गले से सेही का कांटा भी स्वतः ही निकल गया। उसके गले पर कांटा लगने का निशान था जो समिति के चिकित्सकों के अनुसार हीलिंग वूंड था। बाघिन ऐरोहेड पूर्णतया स्वस्थ है एवं अपने तीनों बच्चों के साथ क्षेत्र में भ्रमण कर रही है।