तब जयपुर नहीं बसा था। आमेर महाराजा मानसिहं प्रथम का ढूंढाड़ पर शासन था। आमेर के राजपुरोहित जी के पोते की सगाई सांगानेर के पुरोहित खानदान में हुई थी। उन दिनों बरातें कई दिन तक ठहरती थी। जीमण के दौरान आमेर के एक बराती के द्वारा मजाकिया अंदाज में ताना मारने पर बरातियों को मिठाई के स्थान पर पुरसी गई स्वर्ण मोहरों से बावड़ी का निर्माण करवाया गया। उस समय बनी बावड़ी जूठण की बावड़ी के नाम से मशहूर हुई। आमेर के राजपुरोहित श्रीधरजी के पोते की बरात बहुत ही शाही अंदाज से सांगानेर में जोगाजी राज पुरोहित के यहां आई थी। श्रीधरजी पुरोहित की तरफ से आमेर महाराजा सिंह प्रथम विवाह में शामिल हुए थे। बरात जीमने में बैठी तब पुरसगारी में कुछ देर होने पर एक बाराती ने मजाक में कह दिया कि … अजी जोगाजी मोहरां की पुरसगारी करैला काईं।
लड़की के दादाजी जोगाजी ने बराती के इस ताने को सुनने के बाद मिष्ठानों के भंडार पर ताला लगवा दिया और सभी बारातियों की थालियों में स्वर्ण मोहरों की ही पुरसगारी करवा दी। लड्डू जलेबी के स्थान पर मोहरें रखने से अचंभित बारातियों ने कारण पूछा तब … जोगा जी ने कहा कि आपने ही मोहरें जीमाने का का हुकम दिया था। बराती भी कम नहीं निकले नहले पर दहला मारते हुए हाथ धोने के बाद पंगत से उठ गए और कहा कि आपकी स्वर्ण मोहरें जूठण हो गई है। इसलिए झूठी हो चुकी मोहरों को उठाने की व्यवस्था करें । इसके बाद दोनों पक्षों की बैठक हुई और उन मोहरों से सांगानेर में बावड़ी बनाने का निर्णय किया। इतिहासकार रघुनाथ प्रसाद तिवारी ने लिखा है कि इस विवाह में 90 लाख से अधिक का खर्चा हुआ था।