अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के प्रतिष्ठित और वैश्विक पटल पर “कविता की शाम : अफ्रीका के नाम” कवि सम्मेलन का सवाई माधोपुर से वर्चुअल आयोजन हुआ। अफ़्रीका एशिया के बाद विश्व का सबसे बड़ा महाद्वीप है। अफ्रीका के उत्तर में भूमध्यसागर एवं यूरोप महाद्वीप, पश्चिम में अंध महासागर, दक्षिण में दक्षिण महासागर तथा पूर्व में अरब सागर एवं हिंद महासागर हैं। पूर्व में स्वेज भूडमरू मध्य इसे एशिया से जोड़ता है तथा स्वेज नहर इसे एशिया से अलग करती है। जिब्राल्टर जलडमरू मध्य इसे उत्तर में यूरोप महाद्वीप से अलग करता है। इस महाद्वीप में विशाल मरुस्थल, अत्यन्त घने वन, विस्तृत घास के मैदान, बड़ी-बड़ी नदियाँ व झीलें तथा विचित्र जंगली जानवर हैं।
यहाँ सेरेनगेती और क्रुजर राष्ट्रीय उद्यान है तो जलप्रपात और वर्षावन भी हैं। एक ओर सहारा मरुस्थल है तो दूसरी ओर किलिमंजारो पर्वत भी है और सुषुप्त ज्वालामुखी भी है। युगांडा, तंजानिया और केन्या की सीमा पर स्थित विक्टोरिया झील अफ्रीका की सबसे बड़ी तथा सम्पूर्ण पृथ्वी पर मीठे पानी की दूसरी सबसे बड़ी झीलहै। यह झील दुनिया की सबसे लम्बी नदी नील के पानी का स्रोत भी है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसी महाद्वीप में सबसे पहले मानव का जन्म व विकास हुआ और यहीं से जाकर वे दूसरे महाद्वीपों में बसे, इसलिए इसे मानव सभ्यता की जन्मभूमि माना जाता है।
यहाँ विश्व की दो प्राचीन सभ्यताओं मिस्र एवं कार्थेज का भी विकास हुआ था। अफ्रीका के बहुत से देश द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्वतंत्र हुए हैं एवं सभी अपने आर्थिक विकास में लगे हुए हैं। अफ़्रीका अपनी बहुरंगी संस्कृति और जमीन से जुड़े साहित्य के कारण भी विश्व में जाना जाता है। उत्तरी अफ्रीका में सात प्रमुख देश हैं, पूर्वी अफ्रीका सबसे बड़ा भाग है और उसमें 19 देश हैं। मध्य अफ्रीका में नौ देश में हैं।
दक्षिणी अफ्रीका पाँच देशों से मिलकर गठित है। पश्चिमी अफ्रीका में सत्रह देश हैं। इस कवि सम्मेलन में सारिका फलोर नैरोबी, केन्या से, डॉ. ममता सैनी तंजानिया, पूर्वी अफ्रीका से, सूर्यकांत सुतार ‘सूर्या’ दार – ए – सलाम, तंजानिया, पूर्वी अफ्रीका से तथा सरिता शर्मा नैरोबी, केन्या से, गाजियाबाद उत्तर प्रदेश से इस संस्था के वैश्विक अध्यक्ष प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव और बाघों की नगरी सवाई माधोपुर से डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी शामिल रहे। इस आयोजन की अध्यक्षता प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव ने की एवं संचालन डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने किया।
डॉ. ममता सैनी ने कविता “कवि कविता लिखता जाता, खुद को जब भी खाली पाता, गमन यहाँ वहाँ वो करके, घड़ जाए एक और कविता, खाली – खाली हो कर के भी एक नया इतिहास रचाता” प्रस्तुत की। सरिता शर्मा ने कविता “मेरे दिलबर तुम्हें मैंने मेरे दिल में बसाया है, तुम्हारी हर अदा ने मुझको क्यूँ पागल बनाया है।” प्रस्तुत की। सूर्यकांत सुतार ‘सूर्या’ ने कविता “तुम्हारे माथे की रंगीली बिंदी
हमारे होते चमक रही है, तुम्हारे हाथों की खनकती चूड़ी हमारे होते खनक रही है” प्रस्तुत की। सारिका फलोर ने कविता “कहे पुकार द्रोपदी, सभासदों सुनो अभी।
विनाश काल आ गया, तभी अचेत हैं सभी।” प्रस्तुत की। डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने गीत “दीवानों से मत पूछो क्यों दीवाने कहलाते हैं, औरों को खुश रखने को अपना दर्द छुपाते हैं।” प्रस्तुत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रज्ञान पुरुष पंडित सुरेश नीरव ने कविता “कौन है जो फसल सारी, इस चमन की खा गया, बात उल्लू ने कही, गुस्सा गधे को आ गया।” प्रस्तुत की।
रविवार देर शाम तक चले इस कवि सम्मेलन को देश – विदेश के विविध क्षेत्रों से असंख्य लोगों ने देखा, सुना और सराहा।