आमजन करीब डेढ़ महीने से लाॅकडाउन के बीच अपने घरों में कैद है। जिसके चलते छोटे मोटे रोजगार करने वाले, छोटे व्यापारी, फेरी वाले, मोची, नाई का कार्य करने वाले, चाय वाले सहित अनेक दैनिक मजदूरी करने वाले लोगों का जीवन यापन करना मुश्किल होता जा रहा है। कोरोना महामारी के पहली लहर के समय विभिन्न सामाजिक, धार्मिक जन संगठनों तथा सरकार की ओर से भी जनप्रतिनिधियों के माध्यम से सार्वजनिक राशन प्रणाली के जरिये आम गरीब, दिहाड़ी मजदूर लोगों को सूखी खाद्य सामग्री उपलब्ध करायी थी। कोरोना की दूसरी लहर आने के कारण सरकार द्वारा एक बार पुनः लाॅकडाउन जैसी सख्ती कर दी गई। आम लोग घरों में कैद हो गए। वहीं दैनिक मजदूरी करने वाले गरीब लोगों के सामने संकट खड़ा हो गया। पूर्व की भांति इस बार सरकार ने कोई भी भूखा न सोये अभियान के तहत इन्दिरा रसोई के माध्यम से भोजन पैकेट तो उपलब्ध कराये लेकिन वे गरीब आम जनता को राहत देने के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं थी।
कुछ विशेष स्थानों पर तो लोगों को भोजन के पैकेट उपलब्ध कराये गये लेकिन छोटे मोटे धंधे, मजदूरी करने वाले लोगों को तथा खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब लोगों को इस प्रकार की कोई राहत नहीं मिल सकी। सामाजिक संगठनों की ओर से भी कोई विशेष अभियान इस बार देखने को नहीं मिले। और तो और जनप्रतिनिधी भी इस बार गरीब एवं बैसहारा लोगों की इस संकट की घड़ी में सेवा करने में चुप्पी साधे हुए है। ऐसे में इस बार गरीब जनता के कोरोना महामारी से बच गए तो भूख से मरने की नौबत खड़ी होती दिखाई दे रही है।