जैन धर्म के तृतीय तीर्थंकर भगवान संभवनाथ का गर्भ कल्याणक महोत्सव एवं अष्टान्हिका पर्व सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा श्रद्धा व हर्षोल्लास पूर्वक मनाया गया।
इस अवसर पर श्रद्धा व आस्था के रंग से सराबोर नगर परिषद क्षेत्र के जिनालयों में पूजा-अर्चना के कार्यक्रमों में धर्मावलम्बियों ने भक्ति-भावपूर्वक भाग लिया। रणथम्भौर दुर्ग स्थित दिगम्बर जैन मंदिर भगवान संभवनाथ के जयकारों से गूंज रहा था और श्रद्धालु हर्ष व्यक्त कर रहे थे।
समाज के प्रवक्ता प्रवीण कुमार जैन ने बताया कि इस मांगलिक अवसर पर जिनालयों में सर्वप्रथम अभिषेक पाठ प्रारम्भ हुआ। इसके बाद दिव्य मंत्रोच्चार पूर्वक पुनित जल से उत्साह और हर्ष के साथ रजत कलशों द्वारा जिनेन्द्र देव का अभिषेक किया गया।
अभिषेक कार्यक्रमों में इन्द्र के परिवेश में भक्तों ने शुद्धिपूर्वक कतारबद्ध रूप से जयकारों के बीच शामिल होकर पुण्यार्जन किया तथा जन कल्याण की कामना के साथ शांतिधारा कर जिनेन्द्र देव के चरणों में प्रवाहित की गई। इस दौरान इन्द्राणियां करतल ध्वनियों से अभिषेक कार्यक्रम की अनमोदना प्रकट कर रही थीं।
भक्ति और आस्था के रंग में डूबे रणथम्भौर दुर्ग स्थित संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पुण्यशाली इन्द्र-इन्द्राणियों ने देव-शास्त्र-गुरू की पूजन के साथ अपनी निर्मल भक्ति समर्पित करते हुए विशेष रूप से भगवान संभवनाथ एवं अष्टान्हिका महापर्व के अवसर पर नन्दीश्वरदीप की अष्ट द्रव्यों से पूजा-आराधना कर गर्भ कल्याणक का अध्र्य बहुत ही उत्साह के साथ चढ़ाया और जिनेन्द्र देव का गुणगान किया। श्रद्धालुओं द्वारा समर्पित भाव से विधिवत पूजा-अर्चना कर गर्भ कल्याणक व अष्टान्हिका पर्व के प्रति अपनी आस्था प्रकट की।
पूजन के दौरान रानी कासलीवाल व संगीता पांड्या द्वारा जिनेन्द्र भक्ति से ओत-प्रोत एक से बढ़कर एक भजनों की दी गई प्रस्तुतियों ने श्रावकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
शांति पाठ व विसर्जन विधि के साथ पूजन सम्पन्न हुई। पूजन के उपरांत जिनेन्द्र देव की मंगल आरती उतारी गई और भगवान संभवनाथ का गुणगान कर पुण्य का संचय किया।
इस मौके पर दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र चमत्कारजी आलनपुर में जयपुर से पधारे गणधाराचार्य श्री 108 कुंथुसागरजी के शिष्य-बा.ब्र. धर्मेन्द्र भैया ने भगवान संभवनाथ के गर्भ कल्याणक के साथ ही पवित्रता व संयम के पर्व अष्टान्हिका पर सारगर्भित एवं प्रेरणादायी शब्दों में प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि सत्य-अहिंसा को जीवन में अपनाते हुए करूणा का परिचय देना चाहिए। साथ ही भौतिकवाद को छोड़ आध्यात्मिकता की ओर ध्यान देना चाहिए, तब ही जीवन में शांति मिल सकती है।
इस प्रसंग पर अशोक पांड्या, हरकचन्द कासलीवाल, पवन पहाड़िया, पदमचन्द कासलीवाल, ओमप्रकाश श्रीमाल, विमल सौगानी, राहुल पांड्या, सुरेश सौगानी, मनीष पहाडिया सहित काफी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति ने आयोजन को शोभायमान किया।