तीन कैबिनेट मंत्रियों को मंच पर 40 मिनट तक खड़े रखा
देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कल मंगलवार अपने को स्कूल के दिनों की याद दिला दी, जब होमवर्क किए बिना क्लास में जाने पर मास्टरजी सजा दिया करते थे। सजा होती थी, कक्षा में खड़ा कर देना। मुर्गा बना देना या क्लास से बाहर निकाल देना। स्कूल के दिनों में तो अनेक बच्चों को ऐसी सजा मिलती रहती है। लेकिन ये कल ही पता चला कि मंत्रियों को भी ऐसी सजा दी जा सकती है। यह अपने आप में अभूतपूर्व भी है और राजनीति में काबिलेतारीफ भी। राजस्थान के तीन मंत्रियों चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर, सामाजिक न्याय मंत्री अविनाश गहलोत और खाद्य मंत्री सुमित गोदारा कल शाह की क्लास में बिना होमवर्क किए पहुंच गए, तो गृहमंत्री ने उनके साथ ठीक वहीं व्यवहार किया जो स्कूलों में मास्टरजी अपने विद्यार्थियों से किया करते हैं। फिर शाह तो भाजपा नामक स्कूल के हैडमास्टर हैं। जिसके प्रिंसिपल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। भले ही जेपी नड्डा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हो, लेकिन वह सिर्फ चेहरा ही है।
संगठन की असली ताकत अमित शाह के हाथ में ही है। मंगलवार को बीकानेर में कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान जब शाह ने तीनों मंत्रियों से बूथ प्रमुख, पन्ना प्रमुख सहित लोकसभा चुनावों के मद्देनजर संगठनात्मक दृष्टि से अन्य सवाल किया, तो तीनों जवाब नहीं दे पाए। गहलोत (चूरू लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी) और गोदारा (श्रीगंगानगर लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी) ने जब ये कहा कि उन्हें प्रभारी की जिम्मेदारी कुछ समय पहले मिली है। इसलिए अब काम शुरू करेंगे। लेकिन खींवसर ने साथ में ये भी कहा कि वह बीकानेर लोकसभा क्षेत्र के प्रभारी बनने के बाद पहली बार बीकानेर आए हैं। ये सुनते ही शाह भड़क गए और तंज कसते हुए फटकार लगाते हुए बोले – मंत्री हो, इसलिए समय नहीं मिलता है क्या? फिर पूछा लोकसभा चुनाव के लिए कमेटी का गठन कब तक होगा? खींवसर बोले, एक सप्ताह में। इस पर शाह ने कहा की आज रात तक कमेटियों के गठन सहित सारी सूचना मेरे दफ्तर में पहुंच जानी चाहिए।
बताया जाता हैं इसके बाद भी शाह ने तीनों मंत्रियों को वापस बैठने को नहीं कहा और जब तक पौन घंटे बैठक चलती रही। खींवसर, गहलोत और गोदारा मंच के नीचे खड़े रहे। फिर तीनों मंत्रियों ने बैठक के बाद यह सूचना देर रात तक शाह दफ्तर भिजवा दी। दरअसल, भाजपा के तेजी से विस्तार और विकास का कारण यही है कि वहां अनुशासन सख्ती से लागू किया जाता है। हालांकि कुछ लोग इसे तानाशाही भी कहते हैं। लेकिन पार्टी में नेताओं, विशेष रूप से मंत्रियों को निरंकुश होने से रोकने के लिए यह सख्ती जरूरी भी है। आमतौर पर कांग्रेस सहित दूसरे दलों में सरकार में मंत्री बनने के बाद नेता संगठन को भाव नहीं देते और ना ही संगठन की परवाह करते हैं। लेकिन भाजपा में इसके उलट है।
वहां संगठन को सर्वोपरि माना जाता है और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार पार्टी फोरम पर खुद को भी कार्यकर्ता कहते हैं। मंत्री बनकर मौज करना और अकड़ में रहना कांग्रेस व अन्य दलों के नेताओं की पहचान रही है। लेकिन मोदी और शाह की भाजपा में मुख्यमंत्री और मंत्रियों को भी चैन की सांस नहीं लेने दी जाती है। उन्हें सत्ता के साथ-साथ संगठन के विस्तार से भी जुड़े रहना पड़ता है और उसकी दिल्ली से निगरानी भी की जाती है। क्या कांग्रेस में इस बात की कल्पना भी की जा सकती है कि किसी राज्य के मंत्री से केंद्र का मंत्री शाह की तरह सवाल-जवाब कर फटकार सके।
वहां तो जब कांग्रेस की सरकार थी,तब केंद्र से आने वाले मंत्रियों को भी कई स्थानों पर कार्यकर्ताओं की बदतमीजी और धक्कामुक्की का शिकार होना पड़ता था। कई ऐसे वाकये हुए हैं,जब केंद्र के नेताओं को बैठकें छोड़कर जाना पड़ा। कांग्रेस में स्थानीय क्षत्रप भी विभिन्न कारणों से केंद्र पर हावी रहते थे। राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे अशोक गहलोत इसके बड़े उदाहरण हैं। लेकिन भाजपा में यह संभव नहीं रहा। जिसने भी केंद्रीय आलाकमान के खिलाफ आवाज उठाने या खुद को ज्यादा महत्वपूर्ण बताने की हिम्मत की,उसे किस तरह ठिकाने लगाया गया,यह पिछले विधानसभा चुनाव में सबने राजस्थान में वसुंधरा राजे, मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में रमन सिंह जैसे क्षत्रपों के साथ होते हुए देखा है।
सोचिए, जो मंत्री खुद अपने घर और दफ्तर के बाहर लोगों को मिलने के लिए घंटों खड़ा रखते हैं और तमीज से बात नहीं करते। उन्हें जलील करते हैं। उन्हें कल खुद सजा और फटकार खाने पर कैसा महसूस हुआ होगा? हिट फिल्म धमाल का एक डायलॉग है हर बाप का एक बाप होता है। तो,राजस्थान के सभी मंत्रियों और भाजपा नेताओं को शाह की डांट से समझ में आ गया होगा कि वह भले ही मंत्री बनने के बाद खुद को मतदाताओं का माईबाप समझते हो।
लेकिन दिल्ली में उनके भी माईबाप हैं। जो एक मिनट में उन्हें उनकी औकात दिखा सकते हैं। शाह संगठन के माहिर माने जाते हैं। उनके लिए कहा जाता है कि वे जिस राज्य में भी जाते हैं, वहां के संगठन की जानकारी उनकी अंगुलियों पर होती है। ऐसे में उनके सामने बहानेबाजी या लापरवाही की सजा वही है,जो तीन मंत्रियों को मिली।