शासन प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की गंभीर उदासीनता से उपखंड मुख्यालय के बाशिंदे लंबे समय से बिजली व पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। क्षेत्र की सबसे बड़ी जनप्रतिनिधि विधायक इन दिनों गांवों में जाकर जनसुनवाई जरूर कर रही है लेकिन मुख्यालय पर व्याप्त मूलभूत बिजली व पानी की समस्या का आज तक कोई समाधान नहीं हो पाया है।
दिन में कई बार बिजली का गुल होना व जब चाहे आना जाना आम बात हो गई है। एक दिवस के अंतराल की जलापूर्ति दो दिवस के अंतराल पर भी समय से उपभोक्ताओं को नहीं मिल रही। भरी सर्दी में लोग पेयजल को तरस रहे हैं। कस्बे में कहीं भी मीठे पानी के पेयजल स्त्रोत नहीं होने से लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए केवल नलों के पानी पर आश्रित हैं जो भी उन्हें पर्याप्त रूप से समय से नहीं मिल रहा है। जलदाय विभाग द्वारा जो जल आपूर्ति की जा रही है उसमें उपभोक्ताओं का सर्दी के दिनों में भी काम नहीं चल रहा। तो आखिर आने वाली गर्मी में क्या हाल होगा। ये सोच कर लोग अभी से चिंतित रहने लगे हैं।
लोगों का कहना है कि विधायक द्वारा अपने रिपोर्ट कार्ड जारी करके क्षेत्र का चहुंमुखी विकास करने के दावे भले ही किए जा रहे हों लेकिन आम जनता मूलभूत सुविधाओं बिजली, पानी, परिवहन, चिकित्सा आदि से जूझ रही है। विधायक द्वारा गांवों में जाकर आम जनता की समस्याएं सुनना तो ठीक है लेकिन जब मुख्यालय की बिजली व पानी की समस्या का ही समाधान नहीं हो पा रहा तो ग्रामीण विधायक द्वारा दिए गए आश्वासनों पर कैसे विश्वास करेंगे।
लोगों का कहना है कि विधायक को आमजन की समस्याएं सुनने से पहले आमजन की मूलभूत सुविधाओं की समस्याओं की ओर ध्यान देना चाहिए।
मुख्यालय पर पहले विभाग दो दिवस के अंतराल पर बूस्टिंग के जरिए आधा घंटे की जलापूर्ति करता था। अब एक दिवस के अंतराल पर मात्र 15 मिनट की जलापूर्ति करने का दावा करता है लेकिन करीबन डेढ़ माह से एक दिवस के अंतराल की जलापूर्ति पूरी तरह लड़खडाई हुई है। वर्तमान में उपभोक्ताओं को दो दिवस के अंतराल पर तीस मिनट की जगह मात्र 15 मिनट का पेयजल मिल रहा है उसमें भी समय निर्धारित नहीं है। उपभोक्ता सुबह से शाम तक नलों में पानी आने का इंतजार करते रहते हैं। नलों से पानी कब आजाए और कब चले जाए लोग इस चक्कर में वही पहले की तरह अब घर नहीं छोड़ रहे। जब टैंकरों से कस्बे में जलापूर्ति होती थी वही हालात आज पैदा हो गए है। करोड़ों रुपए खर्च हो बीसलपुर परियोजना के शुरू होने के बाद भी वही टैंकरों वाली जलापूर्ति के हालात बन गए हैं।
गौरतलब है कि इस बिगड़ी जलापूर्ति को सुधारने के लिए विभाग द्वारा ऐसी पाइप लाइनें बिछाई गई जिससे टंकिया बनने के बाद भी उपभोक्ताओं को एक साथ जलापूर्ति नहीं हो पाई। विभाग बूस्टिंग के जरिए जलापूर्ति करता रहा। इसमें भी जब लोगों को पेयजल नहीं मिलने लगा तो विभाग ने फिर पाइपलाइन बिछाने के लिए विधायक से बजट पास करवाया तथा दोबारा पाईप लाइन डाली गई। लेकिन उसके बाद भी हालात जस के तस हैं।
आमजन का आरोप है कि जलदाय विभाग द्वारा बिछाई गई पाइप लाइनों की गहनता से उच्चाधिकारियों व एसीबी से जांच कराई जाए तो दूध का दूध पानी का पानी हो सकता है। बौंली की पेयजल स्कीम के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च होने के बाद उपभोक्ता आज भी पेयजल को तरस रहे हैं आखिर इसके पीछे क्या कारण है इसकी गहनता से जांच होनी चाहिए।
ऐसे ही हालात विद्युत निगम के बने हुए हैं जिसमें निगम द्वारा मरम्मत और मेंटेनेंस के नाम पर लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी मुख्यालय पर आंख मिचौली का खेल चल रहा है। गांव के हालात तो और भी ज्यादा खराब हैं। किसानों को फसलों की सिंचाई के लिए तीन फेस विद्युत आपूर्ति की बात तो छोड़ो गांव में घरेलू बिजली भी समय से नहीं मिल रही। मनचाहे समय पर कटौती करना व मनचाहे समय पर विद्युत आपूर्ति शुरू कर देना निगम वालों का हाल बना हुआ है। बिजली की समस्या को लेकर गत दिनों उपखंड मुख्यालय व विद्युत निगम ग्रेडों पर धरने प्रदर्शन किए गए। ज्ञापन भी दिए गए। लेकिन हालात नहीं सुधर रहे।
बुधवार को ही मुख्यालय पर सुबह 7 बजे गुल हुई बिजली 11 बजे आयी और फिर 12:30 बजे गुल हो गई। दिन में भी आने-जाने का क्रम चलता रहा। इससे जलापूर्ति में भी व्यवधान पैदा होता है।
कहने को यहां कई जनप्रतिनिधि मौजूद है लेकिन कोई भी आमजन की मूलभूत सुविधाओं के लिए आगे आने को तत्पर नहीं। ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुनकर आम जनता अपने आप को ठगा सा महसूस कर रही है।