एक कवि, साहित्यकार तथा विचारक आजीवन अपने रचना धर्म का निर्वहन करता रहता है। कुछ रचनाकारों की रचनाएं तो उनके जीवन काल में प्रकाशित हो जाती हैं और उन्हें ख्याति प्राप्त हो जाती है। किंतु कुछ रचनाकार स्वांतः सुखाय लिखते रहते हैं। स्वरचित रचनाओं का एक विशाल भंडार उनके पास होने पर भी प्रचार – प्रसार से दूर रहने के कारण वे अपनी रचनाओं के संकलन को प्रकाशित नहीं करवा पाते हैं।
उनके देवलोक गमन के पश्चात यदि कोई उनकी रचनाओं को एकत्रित कर एक संकलन के रूप में प्रकाशित कर समाज के सम्मुख लाता है तो ऐसे साहित्यकार के प्रति इससे अधिक उत्तम श्रद्धांजलि और कुछ नहीं हो सकती। हिंदी, संस्कृत व ब्रज भाषा में काव्य रचनाकार, प्रकांड विद्वान, प्रख्यात साहित्यकार तथा महान विचारक कीर्ति शेष प्रोफेसर हरि प्रसाद शास्त्री की लुप्त एवं नष्ट होती हस्त लिखित रचनाओं को संकलित, संरक्षित तथा संपादित कर उन्हें पुस्तक रूप में “गाऊंगा मैं गीत” नाम से प्रकाशित करने का पुनीत कार्य प्रख्यात हास्य कवि डॉ. गोपी नाथ ‘चर्चित’ द्वारा संपन्न किया गया। डॉ. गोपी नाथ ‘चर्चित’ के इस सुकृत्य की जितनी भी सराहना की जाए वो कम है।
यदि ये रचनाएं नष्ट हो जाती तो एक महान कवि की अमूल्य साहित्यिक धरोहर से समाज वंचित रह जाता। प्रो. शास्त्री के दोनों सुपुत्रों कुलशेखर तथा विधुशेखर ने भी इस पुनीत कार्य में डॉ. गोपी नाथ ‘चर्चित’ का पूर्ण सहयोग किया। शिक्षाविद् , समाजसेवी एवं सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. मधु मुकुल चतुर्वेदी ने बताया कि एक जनवरी 1934 को जन्मे, प्रत्येक रस व विधा में कविता लिखने में सिद्धहस्त प्रोफेसर हरि प्रसाद शास्त्री अलवर के राजकीय राज ऋषि महाविद्यालय में संस्कृत के विभागाध्यक्ष रहे, राजकीय महाविद्यालय गंगापुर सिटी के प्राचार्य रहे तथा अखिल भारतीय साहित्य परिषद की गंगापुर सिटी इकाई के अध्यक्ष रहे।
अनेक गोष्ठियों एवं कवि सम्मेलनों में प्रो. शास्त्री ने काव्य पाठ किया तथा उनकी रचनाएं विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र – पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। प्रो. शास्त्री ने यों तो सभी प्रमुख रसों में कविताएं लिखी हैं किंतु उनकी रचनाओं का प्रमुख स्वर राष्ट्रवाद ही रहा है।