श्री दिगम्बर जैन चमत्कारजी मंदिर में वाटरप्रूफ पांडाल में उपस्थित जनसैलाब को संबोधित करते हुए सुकुमाल नंदी गुरुदेव ने कहा कि धर्म की परिभाषा अनेक लोग करते हैं लेकिन वास्तविक धर्म तो आत्मा की पवित्रता है।
आचार्य ने कहा कि जो वस्तु का स्वभाव है वही धर्म है। उत्तम क्षमा आदि दशलक्षण धर्म है। रत्नत्रय धर्म है। जीवादि की रक्षा करना धर्म है। मंदिर दर्शन गुरु उपासना यह तो धर्म के साधन है लेकिन वास्तविक धर्म तो आत्मा की पवित्रता है और आत्मा की विशुद्धि ही धर्म है।
आचार्य ने कहा कि जो कंकर से शंकर बना दे, जो नर से नारायण बना दे, पतित से पावन बना दे, शव से शिव की संज्ञा को प्राप्त करा दे, जो पाषाण को परमेश्वर बना दे, जो रागी को वीतरागी बना दे, जो इंसान को भगवान बना दे, वही धर्म है। उन्होने कहा कि मन का उपयोग चिंतन करना है। तन का उपयोग व्रत धारण करना है। वचन का उपयोग हित मित प्रिय वचन बोलना है। कान का उपयोग जिनवाणी श्रवण करना है। मुख का उपयोग मीठे वचन बोलना है। हाथ का उपयोग दान करना है। पैर का उपयोग तीर्थ यात्रा करना है। धन का उपयोग दान करना है।
आचार्य के प्रवचन से पूर्व जोधपुर से पधारी माँ सरोज देवी ने दीप प्रज्वलन किया। जबकि हैदराबाद से आयी निर्मला सुभाष गंगवाल, मंजू मिलाप काला व गुवाहाटी से आयी अंजू रमेश पाटोदी ने मंगलाचरण प्रस्तुत किया। धर्म सभा में नागौर, देवली, सीकर, मालपुरा, नावा सिटी, कीर्ति नगर जयपुर, शांति नगर जयपुर, अहमदाबाद, इंदौर, केसरियाजी उदयपुर, और मुंबई के अनेक श्रद्धालुओं के साथ सवाई माधोपुर के सैकड़ों श्रावक उपस्थित थे।