जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर एवं श्रमण संस्कृति के जनक देवाधिदेव भगवान श्री 1008 ऋषभदेव स्वामी के जन्म कल्याणक को संत शिरोमणी आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज एवं परम पूज्य निर्यापक श्रमण मुनी पुंगव श्री 108 सुधा सागर जी महाराज के आदेशानुसार दिगम्बर जैन मन्दिर पिपलाई द्वारा तीर्थंकर जन्म कल्याणक के रूप में मनाया गया l
इस अवसर पर समुदाय के युवाओं के द्वारा कलशो से श्री भगवान 1008 ऋषभदेव स्वामी का अभिषेक कर 64 ऋद्धी -सिद्धी मंत्रो के साथ वृहद शांति धारा की गई l इस अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज के प्रवक्ता बृजेन्द्र कुमार जैन ने बताया कि भगवान ऋषभदेव ने असि मसि-कृषि के मूल्यवान सिद्धांतों का प्रतिपादन कर व्यक्ति के अंतरंग और बहिरंग दोनों ही तलो पर उन्नयन की शिक्षा प्रदान की थी इन्हें दिगम्बर संस्कृति का जनक कहा जाता है l
समाज में स्त्री शिक्षा के महत्व को स्थापित करने के लिए भगवन ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी को लिपि लिखने का एवं सुन्दरी को इकाई, दहाई आदि अंक विद्या सिखाई और अपने पुत्र भरत, बाहुबली को सभी विद्याओं का अध्ययन कराया तथा जीवन में कलाओं के महत्व को स्थापित करने के लिए 72 कलाओं का उपदेश दिया l इस अवसर पर रमेश चन्द जैन, विनोद जैन, मुकेश जैन, सुनील जैन, आशु जैन, जिनेन्द्र जैन, सुमनलता जैन, एकता जैन, आशा जैन, राजुल जैन, ललिता जैन, रजनी जैन, सपना जैन आदि श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे l