सवाई मधोपुर:- पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से देश में फैशन और प्रदर्शन की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। इस कथन में लेशमात्र भी मिथ्या नहीं है। पाश्चात्य सभ्यता इतनी प्रभावशाली हो गई है कि लोगों की विवेकबुद्धि कुंठित हो गई है। क्या सही है, क्या गलत है, यह सोचना ही बन्द कर दिया है। कभी-कभी तो यह फैशन इतना हास्यास्पद प्रतीत होता है कि लोगों की बुद्धि पर दया आती है। फैशन में भी तो एक सन्तुलन होना चाहिए। फैशन के नाम पर भारतीय संस्कृति को तिलांजलि देकर पाश्चात्य संस्कृति को अपनाना अपनी ही जड़ों पर कुठाराघात किया जाने के समान है।
नवीनता लाना या परिवर्तन लाना बुरी बात नहीं है, लेकिन उसमें शालीनता भी होनी चाहिए। फैशन के नाम पर भारतीय समाज एवं संस्कृति में नग्नता, अश्लीलता, मर्यादाहीनता प्रवेश कर रही है इससे समाज में विकृति उत्पन्न हो रही हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि पश्चिमी देशों की नकल करके हम लोग फूहड़ और लज्जाहीन हो गये हैं। पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात करके हम अपने रीति-रिवाजों और श्रेष्ठ परम्पराओं को नष्ट करते जा रहे हैं।
फलस्वरूप समाज में अपराध, अशिष्टता, अश्लीलता, पारिवारिक विघटन उत्पन्न हो रहे हैं। आज के युवा वर्ग को वेलेन्टाइन डे, अप्रैल फूल, रोज डे, मदर्स डे, फादर्स डे आदि तो याद रहते हैं। परन्तु माता-पिता, गुरु, बड़े बुर्जुगों के प्रति आदर भाव याद नहीं रहता है। पाश्चात्य सभ्यता का ही परिणाम है कि शादी के बाद बहुत शीघ्र सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं। हमारे पूर्वजों ने एक लम्बे और गहन अध्ययन के बाद मनुष्य के लिए एक सभ्य समाज की संरचना हेतु हर क्षेत्र में कुछ आदर्श, कुछ मूल्य, कुछ सीमाएँ निर्धारित की थीं। जिनके अनुपालन से भारतीय संस्कृति विश्व में पूजनीय बनी।
परन्तु आज के समय में युवाओं द्वारा उन्हीं आदर्शों की अवहेलना से हमारे नैतिक मूल्यों का निरन्तर पतन हो रहा है। यह पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है कि पति-पत्नी के सम्बन्धों के बीच तीसरे की उपस्थिति न्यायोचित ठहराई जा रही है। शर्म की बात तो यह है कि भारतीय नारी जिसकी सुन्दरता तथा श्रृगांर उसकी लज्जा हुआ करती थी, आज वह लज्जारहित हो रही है। युवक-युवतियों पर माता-पिता का कोई अंकुश नहीं रहा, जिसका परिणाम गर्लफ्रेंड बॉय फ्रेंड आधुनिक फैशन है। देर रात तक घर से बाहर रहना, क्लब में पार्टी, ड्रिंक व डांस करना यह सब पाश्चात्य संस्कृति का ही प्रभाव है। प्रेम विवाह, इसी संस्कृति की देन है।
पाश्चात्य सभ्यता ने माँ को मौम व पिता को डैड कर दिया है। भाई-बहन के अतिरिक्त समाज के अहम व महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध भी इतने दूषित हो गये हैं जिन्हें सुनकर लोग शर्मसार हो जाते हैं। इतिहास साक्षी है कि जब कभी भी किसी देश, समाज, धर्म या समुदाय को हानि पहुँची है तो उसका कारण उसकी सभ्यता व संस्कृति तथा उसके आदर्शों पर कुठाराघात है। भौतिक सुख की पराकाष्ठा को प्राप्त करने की चाहत ने युवाओं की जीवन शैली को अनियंत्रित तथा असंयमित बना दिया है।
आज युवा वर्ग में नशा*खोरी, त*स्करी व से*क्स के प्रति अति संवेदनशीलता व अन्य आपराधिक गतिविधियों में इनकी संलिप्तता आम रूप से देखी जा रही है जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पश्चिमी जीवन शैली के प्रति इनके झुकाव से जुड़ा है। यह निश्चित रूप से स्वस्थ्य समाज की रचना में सबसे बड़ी बाधा है। आज के समय में छोटे शहरों एवं ग्रामीण परिवेश में पली-बढ़ी युवतियां फिल्मों में सस्ती लोकप्रियता व धन के लिए अंग-प्रदर्शन से गुरेज नहीं कर रही है।
फैशन शो तथा ब्यूटी कांटेस्ट का आयोजन छोटे-छोटे शहरों तक पसर चुका है। ये सभी बदलाव पश्चिमी सभ्यता के प्रति युवाओं में बढ़ता आकर्षण का प्रमाण है। इस आंधी में बह कर ये युवा अपने समाजिक उत्तदायित्व का निर्वहन नहीं कर रहे हैं। इस वजह से समाज में कई तरह की बुराईयां उत्पन्न हो गई है, जो हमारे समाज और परिवार को कमजोर बना रही है।
(किरोड़ी लाल मीना)