![Police cannot send jail in cases punishable by up to seven years - Advocate Rajendra Singh Tomar](https://vikalptimes.com/wp-content/uploads/2022/06/Police-cannot-send-jail-in-cases-punishable-by-up-to-seven-years-Advocate-Rajendra-Singh-Tomar.jpg)
सात साल तक की सजा वाले मामलों में पुलिस नहीं भेज सकती जेल – एडवोकेट तोमर
जेलों में बढ़ती हुई बंदियों की भीड़ को देखते हुए और मानवता के आधार पर तथा झुंठे आरोपों का सामना करने वाले को राहत देते हुए हर मामले में पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लोगों को थानों की हवालातों में बंद करने व उन्हें जेल भेजने पर एक अहम फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया जा चूका है। परन्तु आज भी अधिकतर पुलिसकर्मी इसे नहीं मानते है या यूँ कहें की अपनी हेकड़ी दिखाते हुए इसका जान बूझ कर उल्लंघन करते हैं। क्योंकि समाज की और विशेषकर गांव देहात की भोली भाली आम जनता को भी इस आदेश की जानकारी नहीं है। कानूनहित, जनहित और न्यायहित में इस आदेश को जानना बहुत जरूरी है।
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हिंदुस्तान शिवसेना के राष्ट्रीय प्रमुख और दिल्ली हाई कोर्ट के एडवोकेट राजेन्द्रसिंह तोमर राजा भईया ने इस अहम फैसले की जानकारी देते हुए बताया कि सुप्रीम कोर्ट कि डबल बेंच के दो वरिष्ठ न्यायाधीशो चंद्रमौली कुमार प्रसाद और पिंकी चंद्रा घोष ने एक क्रिमिनल अपील संख्या 1277–2014 में केस टाईटल अरनेश कुमार बनाम बिहार राज्य सरकार वगैरा में यह फैसला दिया है कि बिना गिरफ्तारी वारंट और मजिस्ट्रेट के आदेश से यदि किसी भी आरोपी या सस्पेक्ट व्यक्ति को संज्ञेय अपराध की धारा के मामले में एफआईआर दर्ज होने के बाद यदि गिरफ्तार किया जयेगा तो उसे थाने की हवालात या जेल में नहीं भेजा जायेगा बल्कि संबन्धित पुलिस अधिकारी उसे सीआर पीसी की धारा 41(1) का नोटिस दे कर पूछताछ के बाद यदि विशेष परिस्थियां ना हों और गिरफ्तारी अत्यंत आवश्यक ना हों तों, कोर्ट में हाजिरी के लिए पाबंदीनामा भरवा कर या पुलिस बेल पर छोड़ देगा।
राजा भैया ने बताया कि यह आदेश वर्ष 2014 में दिया जा चूका है और कोर्ट आदेशानुसार इसकी प्रतियां देश के सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को पालना कराने हेतु भिजवाई जा चुकी है परन्तु अधिकतर पुलिसकर्मी इस आदेश को नहीं मानते है। एडवोकेट राजेन्द्र सिंह ने कहा कि यदि इस आदेश की ठीक से पालना की जाये तो जेलों और अदालतों में काफी हद तक भीड़ भाड़ कम हों जाएगी है और साथ ही साथ दुर्भावना वश किसी निर्दोष को यदि आरोपी बना दिया गया है तो उसे भी जेल या थाने की हवालात में रहने और जिल्लत उठाने से बचाया जा सकता है। जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी इस ओर ध्यान देने और इस आदेश की कड़ाई से पालना कराने की आवश्यकता है।