आचार्य नानेश शिक्षक शिक्षा महाविद्यालय सवाई माधोपुर में कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की द्वादशी को संस्कृत के महाकवि कालिदास की जयन्ती पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। प्राचार्य डाॅ. निधि जैन ने बताया कि महाकवि कालिदास के जन्म स्थान और जन्म समय को लेकर विद्वानों में एक मत नहीं है। मेघदूत में उज्जैन के वर्णन और राजा विक्रमादित्य के प्रमुख राजकवि होने के प्रमाण से इन्हे अवन्तिका निवासी और कोई इनके नाम से इन्हे गढवाली होने का प्रमाण देते है। कार्यक्रम का संचालन छात्राध्यापिका मनीषा रैगर ने किया।
कार्यक्रम प्रभारी ने बताया कि महाकवि कालिदास एवं संस्कृत विषय पर व्याख्यान देते हुए संस्कृत साहित्य में इनकी कृतियों के महत्वपूर्ण स्थान को बताया। हमें भी कालिदास के जीवन से प्रेरणा लेकर त्याग, तप एवं परिश्रम द्वारा परमोत्कर्ष को प्राप्त करना चाहिए। मूढ कालिदास ने काली माता की उपासना कर तीक्ष्ण प्रतिभा को प्राप्त किया। व्याख्याता रितु जैन ने भारतीय संस्कृति के संरक्षण में संस्कृत और विभिन्न ग्रन्थों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि बालक के चारित्रिक, नैतिक और जीवन मूल्यों का विकास करने में संस्कृत भाषा का बहुत बड़ा योगदान है। व्याख्याता कन्हैया लाल ने बताया कि महाकवि कालिदास ने 7 प्रमुख ग्रन्थों की रचना की है।
जिनमें 3 नाटक, 2 महाकाव्य और 2 खण्ड काव्य है, महाकवि कालिदास की कृतियों का मुख्य वण्र्य विषय पर्यावरण संरक्षण, प्रकृति-प्रेम और प्रणय-परिणय है। कार्यक्रम में कालिदासों जने-जने, कण्ठे-कण्ठे संस्कृत गीत छात्राध्यापिका समीक्षा मीना, रविना बुरट और धोड़ी मीना, शिल्पा जांगिड़, मनचेता मीना, जय कंवर, रश्मि महावर, ज्योति महावर ने मेघदूत के श्लोक सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध किया। छात्राध्यापिका कविता मीना ने राजा विक्रमादित्य के सभाकवि कालिदास के जीवन से सम्बन्धित प्रसंग सुनाया। कार्यक्रम के अन्तर्गत अन्य सभी व्याख्याताओं ने भी महाकवि कालिदास की रचनाओं एवं जीवन पर प्रकाश डाला।
छात्राध्यापिका कुन्ती मीना ने कालिदास की मूर्खता का प्रमाण देने वाली कहानी को सुनाकर तालियां बटोरी। ग्रामे नगरे समस्त राष्ट्रे रचयेम संस्कृत भवनम्। गीत को छात्राध्यापिका ज्योति कुमारी, पपीता मीना, प्रिया सैनी, साक्षी शर्मा ने सुनाकर सबको मन्त्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अन्त में महाविद्यालय निदेशक ने सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया और बताया कि हमारे जीवन में प्रतिदिन उठने से लेकर सोने तक में संस्कृत और संस्कृति का प्रभाव होता है। सभी ने शान्ति पाठ के साथ इस कार्यक्रम की समाप्ति की और प्रसन्नता प्रकट की।