संसार में जब-जब धर्म की हानि होती है, पाप बढ़ता है, अन्याय बढ़ता है, भक्तों के मान- सम्मान की रक्षा नहीं हो पाती है, अर्थात जब जब धर्म खतरे में होता है, तब-तब भगवान मानव रूप में अवतरित होकर धर्म एवं उन्हें भक्तों की रक्षा करते हैं। जहां धर्म होता है वह ईश्वर भी अवश्य होता है। यही परम सत्य है के ईश्वर के होते हुए न तो भक्तों की कोई हानि हो सकती है और नहीं धर्म का नुकसान हो सकता है। यह पवित्र विचार नगर रामलीला मैदान में चल रही संगीत में राम कथा ज्ञान यज्ञ में कथावाचक व्यास महामंडलेश्वर दिव्य मुरारी बापू ने श्रोताओं के सामने प्रकट किए। आयोजन से जुड़े दिलीप शर्मा ने बताया कि कथा के चौथे दिन राम के जन्म की कथा का श्रवण कराया गया जिसमें भगवान के द्वारा धर्म एवं भक्तों की रक्षा के लिए दिए गए वचन के साथ-साथ अध्यात्म से जुड़े विभिन्न पक्षों का खुलकर जिक्र किया।
उन्होंने बताया कि सबसे बड़ा बल है वह व्यक्ति का प्राणायाम का बल है। सबसे बड़ी विद्या आध्यात्मिक विद्या है जो व्यक्ति को ब्रह्म जीव एवं माया का बोध कराती है। दुनिया में कोई व्यक्ति मूर्ख नहीं होता। मूर्ख वही व्यक्ति हैं जो ईश्वर को आत्मा मानता है जबकि सच यह है कि हमारा शरीर नश्वर है, और हमारी आत्मा अजर और अमर है। वह उसी परम ब्रह्म से निकलती है एवं उसी परम ब्रह्म में समाकर एक नया शरीर धारण करती है। कथा के दौरान पूज्य पाद संत द्वारा गाय गए संकीर्तन रसीले भजनों पर श्रोताओं ने जमकर आनंद लिया और मंत्रमुग्ध होकर खूब ठुमके लगाए।