इदारा अदब-ए-इस्लामिक सवाई माधोपुर की ओर से त्रैमासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। संस्थान के अब्दुल मजीद सफदर ने बताया कि बरकत मंजिल में आयोजित बैठक की अध्यक्षता इदारा अदब-ए-इस्लामिक के प्रांतीय अध्यक्ष प्रसिद्ध शायर सरफराज बज़्मी ने की और मुख्य अतिथि के रूप में काजी-ए-शहर सवाई माधोपुर निसारुल्लाह निसार मौजूद रहे। अपने अध्यक्षीय भाषण में सरफराज बज़्मी ने रचनात्मक साहित्य सृजन की आवश्यकता बताते हुए इदारा अदब-ए-इस्लामिक का सुंदर परिचय दिया।
अतिथि कवियों में काजी निसारउल्लाह निसार, अब्दुल मजीद सफदर, अब्दुल खालिक शेख, आदिल कागजी, रेहान फारूकी, इस्लामुल्लाह असलम, अमीर अली अमीर ने अपने अशआर प्रस्तुत किये जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। सरफराज बज़्मी ने “जब बचाता हूँ तो गिरती है ज़मीं पर दस्तार और दस्तार बचाता हूँ तो सर सर जाता है” सुना कर वाह वाही लूटी।
वहीं निसार उल्लाह निसार ने “तुम्हारा नाम अगर ना लिखा होता इस फसाने में, ज़बां आज़िज़ ना होती बज़्म में पढ़कर सुनाने में” शेर सुना कर खूब दाद हांसिल की। रेहान फारूकी ने “तेरे ही नाम के उजाले है शबिस्तां में मेरे, मैंने तो शमां रखी तूने हवा रखी है” सुनाया और अब्दुल मजीद सफदर ने करते रहेंगे लोग खुराफात कुछ न कुछ, देंगे ना जब तलक जवाब बात कुछ ना कुछ” तथा अब्दुल खालिक शाइक ने लब हैं खामोश तो आंखों की नमी से पूछो, है यह किस दर्द को आंखों में छुपाए हुए लोग” सुनाया। काव्य गोष्ठी का ऑनलाइन प्रसारण अन्य देशों में भी किया गया।
जिसमें वहां से उर्दू काव्य प्रेमियों ने अपने परिवार और दोस्तों के साथ ऑनलाइन बैठक में भाग लिया और अपनी बात रखी। कार्यक्रम के अंत में प्रवासी भारतीयों द्वारा ऑनलाइन अपने विचार प्रस्तुत करते हुए सफल आयोजन पर प्रसन्नता व्यक्त की। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से इदारा अदब-ए-इस्लामिक सवाई माधोपुर की नियमित संस्था की स्थापना की गई जिसमें अब्दुल मजीद सफदर को जिला अध्यक्ष, काजी निसारुल्लाह साहब का संरक्षक चुना गया। बैठक के मेजबान सैयद फसाहत अली द्वारा की गई। उत्कृष्ट व्यवस्था और प्रतिभागियों की अत्यधिक रुचि के कारण बैठक काफी देर तक चलती रही।