सरकारें कितनी आयी और कितनी चली गई पर हमारे सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय एवं ग्रामीण क्षेत्र की बजट में सदा उपेक्षा बनी रही है। इसको लेकर चर्चा हमेंशा बनी रहती है। नेता कोई भी रहा हमेशा उसका भाव जीतने के बाद ट्रांसफर एवं धन कमाने में रहा सवाई माधोपुर का ठोस विकास नहीं हुआ। सीमेन्ट फैक्ट्री बंद होने के बाद जैसे यहां के उद्योगों का प्राणान्त हो गया। पर्यावरण के नाम पर हमें सदा छला गया। यह एसटी एससी बाहुल्य जिला रोजगार, शिक्षा को तरस गया। यहां कोई एक स्थापित उद्योग, शिक्षा प्रशिक्षण का केन्द्र नहीं है। कहने को तो टाइगर प्रोजेक्ट के कारण हम विश्व विरासत में है, लेकिन टाइगर ट्यूरिज्म से यहां के लोगों को कोई खास रोजगार नहीं मिल रहा है। सारा होटल व्यवसाय बाहरी लोगों के पास है। अपने अपने रसूकात के चलते कई आईएएस, मंत्री, अधिकारियों ने वन विभाग, राजस्व विभाग से मिल कर होटलें खड़ी कर दी। आखिर उनकी अरबों रुपयों की होटलों के बनते समय पर्यावरण कहां चला गया। यही हाल शिक्षा का है काॅलेज में एक भी व्यावसायिक कोर्स नहीं है। सभी विधार्थियों को इसके लिए लाखों रुपये खर्च करके उच्च अध्ययन हेतु बाहार जाना पड़ता है।
शिक्षा सबसे मंहगी हो गई है, विद्यार्थी और उनके अभिभावक बैंकों के कर्जदार हो गए हैं। आज इस जिले को सरकारी स्तर पर इंजिनियरिंग कॉलेज, कृषि कॉलेज, विधि कालेज तथा कई व्यावसायिक कोर्सो की आवश्यकता है ताकि विद्यार्थियों को उच्च अध्ययन के लिए बाहर नहीं जाना पडे़। जिले में सबसे बुरा हाल ग्रामीण परिवहन का है। ग्रामीण क्षेत्रों में परिवहन साधनों का अभाव है उसे पूरा किया जाना चाहिए। यहां का संभाग मुख्यालय बदलकर 100 किमी दूर कोटा से 250 किमी दूर भरतपुर कर दिया गया। चारों ओर अथाह जल कोष है पर मुश्किल से पानी मिल पा रहा है। लोग परेशान हैं लेकिन कोई सुनने वाला नहीं। नेता स्वागत कार्यक्रमों में मस्त हैं उनकी इस ओर कोई सोच ही विकसित नहीं हो रही। जय हो लोकतंत्र की देखते हैं अपने को माधोपुर का हितेषी बताने वाली वितमंत्री एवं उपमुख्य मंत्री इस बजट में सवाई माधोपुर के लोगों की आकांक्षा को कितना पूरी करती है या फिर आशाओं का झुनझुना ही हाथ आयेगा।